कई बार कुछ गलत काम करते हुए या शरारत करने के बाद अक्सर घर में एक बात सुनने को मिलती थी. ये क्या करेंगे बड़े होकर.. इनसे क्या हो पाएगा… आज की पीढ़ी पता नहीं क्या कर पाएगी. ये सवाल अक्सर हर किसी ने सुने हैं या अभी भी सुन रहे होंगे. लेकिन आज जब देश में एक अलग ही दर्जे का माहौल चल रहा है और हर कोई प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अपनी राजनीतिक राय को दुनिया के सामने रख रहा है तो वही देश का ‘नालायक युवा’ अपने वर्तमान और भविष्य के लिए लड़ाई लड़ रहा है.
बड़ों के द्वारा अक्सर अपने जमाने के उदाहरण दिए जाते हैं और कहा जाता है कि हमने तुम्हारे लिए ये किया, वो किया या फिर हमारे जमाने में समाज के लिए ये काम किया गया. अगर अभी के या कुछ समय के इतिहास को उठाकर भी देख लें तो भी उदाहरण कुछ ऐसे ही मिलेंगे जहां समाज सिर्फ अपने लिए लड़ रहा है, कोई आरक्षण मांग रहा है, कोई पैसा मांग रहा है, कोई कुछ मुआवजा चाहता है. लेकिन आज के युवा एक कदम आगे बढ़कर उस चीज की रक्षा की मांग की है जिसके लिए आजादी की जंग लड़ी गई वो है संविधान.
भले ही हम बचपन में घर में सुनते हुए बड़े हुए हों कि मुस्लिम के घर का मत खाना, जो सफाई करने आता है उसके गिलास में पानी मत पीना. लेकिन जब वही बच्चा कुछ बड़ा होता है और घर, रिश्तेदार के बेड़ियों से बाहर निकलकर असली दुनिया में कदम रखता है तो उसे ये सबकुछ दिखाई नहीं देता है. क्योंकि उसके कॉलेज में बगल में बैठा उसका दोस्त पता नहीं कौन-सी जाति का है लेकिन जब उसके पास पेन नहीं था तो उसका कोई रिश्तेदार नहीं बल्कि वही काम आया था.
मेट्रो में सफर करते वक्त जब गलती से फोन गिर गया था तो बगल में बैठे एक टोपी लगाए हुए आदमी ने तुरंत उसके फोन को उठाकर उसे थमा दिया था तब उसने ये नहीं सोचा था कि ये दूसरे धर्म का है और अब वह इस फोन का इस्तेमाल नहीं करेगा. अब वक्त बदल चुका है और युवा पढ़ने-लिखने वाला भी है तो उसे संविधान की कुछ बातों के बारे में पता भी है.
जब संविधान के पहले पन्ने से लेकर आखिरी के पन्ने तक सबको बराबरी का हक देने की बात कही गई है, तो फिर डर कैसा. लेकिन अगर इसपर कुछ खतरा आता है या फिर कुछ बातें इससे इतर आपके दिमाग में घुसाई जाती हैं तो फिर आपके समाज का कोई भी व्यक्ति इसको बचाने के लिए खड़ा नहीं होगा. क्योंकि इससे ना तो आपको मुआवजा मिलेगा, ना ही आपको आरक्षण मिलेगा. वही नालायक युवा आज देश के संविधान पर होते हमले से बचाने के लिए खड़ा होने को है.
जब क्लास के कुछ बच्चे मिलकर बंक मारने की सोचते हैं तो कुछ डर नहीं होता है, क्योंकि एक बात साफ रहती है कि किसी की परवाह किए बगैर हर बच्चा उसके साथ होगा. हमारे बड़े की तरह कोई पड़ोसी, रिश्तेदार क्या सोचेंगे इस बात पर जोर नहीं देगा. वही बात अब आइने में दिखाई दे रही है जब एक, दो, तीन, चार… दस…सौ…हजार.. लाखों छात्र इस बात को समझ रहे हैं और अपनी बात को रख रहे हैं. आप किसी से भी मिलिए वो अपने बड़ों की तरह डरेगा नहीं, पड़ोसी-रिश्तेदार की परवाह नहीं करेगा. अगर कुछ पसंद नहीं है तो उसके लिए मना कर देगा, अगर मुंह पर नहीं बोल पाएगा तो अपने एक्शन से या फिर सोशल मीडिया पर बताकर अपनी बात आपतक पहुंचा ही देगा. लेकिन चुप नहीं रहेगा.
जिस मोबाइल के चक्कर में बड़ों से काफी गालियां खाई हैं उसी मोबाइल की ताकत के कारण सरकार या समाज के किसी भी फैसले, सोच को बदलने की ताकत इसी युवा में है. फिर चाहे वो टपरे के पास सिगरेट फूंकता नौकरी की तलाश वाला कोई 27 साल का लड़का हो या फिर स्टारबक्स में बैठकर प्रेजेंटेशन तैयार करने वाला आईटी का बंदा. वह कुछ भी लिख सकता है और अपनी बात रख सकता है क्योंकि वो बेखौफ है. वक्त आने पर अपने हक की बात करता है, पुलिसवालों को भले ही चालान से बचने के लिए पैसे खिला दे, लेकिन कुछ बातों पर वह पूरी तरह से नियमों की बात करता है.
आज की पीढ़ी अपने से पहले की पीढ़ी को खुलकर कह सकती है कि वह अपने से अलग, अपने भविष्य, अपने मूल्यों और विचारधारा के बारे में भी सोच रही है. ये युवा सिर्फ फोन, नेटफ्लिक्स, ट्विटर तक ही सीमित नहीं रहता है ये आवाज उठाता भी है और बात मनवाता भी है. फिर भले ही रिश्तेदारों की नजर में इसे नालायक का तमगा ही क्यों ना मिला हो. आप यकीन कर सकते हैं कि आने वाले पीढ़ी हमसे बहुत आगे वाली पीढ़ी होगी.
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