हाँ, भारत एक हिंदू राष्ट्र है. कोई शक…

यह बात मैं पूरे दावे के साथ कह सकता हूं कि भारत हिन्दू राष्ट्र है, ज्यादातर लोग मुझसे असहमत हो सकते है, जिसका उन्हें पूरा हक है, मगर मेरा अनुभव यही कहता है कि यह देश संविधान की प्रस्तावना में भले ही ‘पथ निरपेक्ष’ राष्ट्र कहा गया है, सरकारी किताबों में भले ही इसे एक सेकुलर स्टेट बताया जाता है मगर हकीकत में यह एक हिन्दू राष्ट्र है.

आप दक्षिणी राजस्थान, लगभग पूरे गुजरात और मध्यप्रदेश के विभिन्न शहरों, कस्बों अथवा गांवों में जाईये, हमारे, कथित धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र को चिढ़ाते हुए यह बोर्ड आपको मिलेंगे जिन पर लिखा होगा- ‘हिन्दू राष्ट्र के अमुक गांव में आपका स्वागत है.’ सब इन बोर्ड को देखते है, किसी की आंखों में यह नहीं चुभता, किसी को भी यह नहीं लगता कि यह हमारी संवैधानिक पंथनिरपेक्ष प्रतिबद्धता के खिलाफ खुला द्रोह है, जिसे देशद्रोह की श्रेणी में भी रखा जा सकता है.
मान लीजिये किसी गांव में आपको यह लिखा मिले कि मुस्लिम राष्ट्र के अथवा ईसाई राष्ट्र के या सिख राष्ट्र के फलां फलां गांव में आपका स्वागत है. कैसा लगेगा आपको? मुंह का स्वाद कसैला हो जायेगा ना? उपरोक्त शब्द कर्णप्रिय नहीं लगते हमको, मगर हिन्दू राष्ट्र में स्वागत करवाते हुए तो अच्छा लगता है.
चलिये, छोड़िए चंद सिरफिरे किसी सेना, कमाण्डो फोर्स के मैम्बरों ने ये बोर्ड लगा दिये होंगे, इससे क्या होता है, हम तो महान धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र है और रहेंगे, हां, जी जरूर रहेंगे, मुझे भी आपकी इस सद्इच्छा से सौ फीसद सहमति है, मगर चारों तरफ नजर उठाकर देखता हूं तो मुझे इस मुल्क में हिन्दू राष्ट्र अथवा धार्मिक राष्ट्र राज्य के लक्षण ही ज्यादा दिखाई पड़ते है, कहीं ऐसा तो नहीं कि मेरी सेकुलर आंखों को थियोक्रेटिक स्टेट का मोतियाबिंद होने लगा है अथवा बचपन में निकर पहनकर शाखा में घुमाई लाठी का असर विचारों पर पुनः छाने लगा है. पता नहीं, मगर कुछ तो हो रहा है, क्या हो रहा है यह बताना जरा मुश्किल है.
मेरे देखे धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र की सीधी सादी परिभाषा यह है कि राष्ट्र राज्य किसी भी धर्म का पक्ष नहीं लेगा, प्रमोट नहीं करेगा, उसके तौर तरीकों व परम्पराओं तथा रीति रिवाजों और आस्थाओं के आधार देश को संचालित नहीं करेगा, यहीं समझ में आता है हमें तो धर्म निरपेक्षता से. पर यह तो विचार की धर्म निरपेक्षता है, सिद्धान्ततः, व्यवहार की धर्म निरपेक्षता जरा दूसरे किस्म की है, आईये इस छद्म धर्म निरपेक्षता पर गौर करें और मन करे तो बलि बलि जाये अथवा बलिदान ही हो जायें.
आसपास की स्कूलों से शुरू करते है जहां पर देश के भावी नागरिकों का निर्माण किये जाने की पुख्ता सूचना है, इन विद्यालयों में सरस्वती मां की मूर्तियां है, तस्वीरें तो खैर है ही, सैंकड़ो विद्यालयों में सरस्वती के मंदिर तक बने हुये है, ये सभी सरकारी विद्यालय है (आरएसएस के सरस्वती शिशु मंदिर नहीं). इनमें सुबह की शुरूआत ‘‘वीणा वादिनी वर दे’’ प्रार्थना से होती है यानि कि मां शारदे से, माता सरस्वती से, बुद्धि, प्रज्ञा की याचना करने से. कोई धर्म भीरू बताये मुझे कि यह विद्या की देवी सरस्वती जी खुद कितनी पढ़ी लिखी थी? इनकी लिखी हुई कोई कविता, कोई श्लोक, कोई मंत्र, कोई ऋचा किसी आदि ग्रंथ से लेकर अब तक के ग्रंथों में आपको मिला? मां शारदे की लिखी हुई कोई किताब कहीं मौजूद है? शायद नहीं. पूछने को जी करता है कि विद्या और ज्ञान की देवी सरस्वती जिस देश में मौजुद हो, जिसकी पूजा और प्रार्थना हर दिन की जा रही हो, उसी देश में दुनिया के सर्वाधिक जाहिल, निरक्षर और अनपढ़ लोग क्यों मौजुद है?
यही मैं सोच-सोच हैरान, परेशान और पशेमान हूं कि सरस्वती के देश में निरक्षरता और लक्ष्मी के देश में इतनी गुरबत क्यों है? धन की देवी जिस देश में रहती है वहां पर बीपीएल बनने की लम्बी लाईनें क्यों लगी हुई है? महिसासुरमर्दिनी शक्ति स्वरूपा के रौद्ररूप् से यवन, मुगल, तुर्क और फिरंगी क्यों नहीं डरे? सैकड़ों साल की गुलामी और हजारों हारों की दास्तां हमारे हिन्दू राष्ट्र के उन्नत भाल पर क्यों अंकित है?
खैर, छोडिये मूल बात पर लौटते है, हां तो मुझे घर से निकलते ही, या यों मानिये कि कुछ दूर चलते ही और कई बार तो बिना घर से निकले या बिना चले भी लगता हे कि हमारा देश तो हिन्दू राष्ट्र ही है. मैं अपने साम्प्रदायिक दोस्तों से कहना चाहता हूं, सुबह शाम लट्ठ घुमाने में क्यों वक्त जाया करते हो? किसी अच्छे काम में लगो, यह देश तो पहले से ही हिन्दू राष्ट्र है, इसे और कितना हिन्दू राष्ट्र बनाओगे?
यहां हर सरकारी विभाग की बिल्डिंग बनने की शुरूआत भूमिपूजन से होती है, सरकारी आयोजनों की शुरूआत दीप प्रज्वलन से की जाती है, नारियल, अगरबत्ती, तिलक लगाना, लच्छा बांधना सब कुछ तो होता है, अक्सर पंडितजन मंच संचालन करते है और पगड़ी बांधकर या धर्मस्थलों के भगवे दुपट्टे पहनाकर स्वागत सत्कार किये जाते है. मंत्रोच्चार तो आम बात है.
विद्यालयों से लेकर विधानसभाओं तक में सूर्य नमस्कार करवाये जा रहे है और ओम सवितृ सूर्यनारायणाय नमः, रविये नमः, सूर्याय नमः के मंत्र बोले जा रहे है, तमाम किस्म के बाबा लोग कथाएं कर रहे है अथवा योग सिखा रहे है तथा हमारे केंद्रीय से लेकर प्रादेशिक सरकारों तक के मंत्री इन बाबाओं के ईशारों पर शीर्षासन कर रहे है.
मंदिरों की सार संभाल, देखरेख, जीर्णोंद्वार करने के लिये देवस्थान विभाग काम कर रहा है, किसी भी सार्वजनिक महत्व वाली जमीन पर मंदिर बनाईये, किसी की अनुमति की जरूरत नहीं है. जब चाहें, जहां चाहे यज्ञ के नाम पर आग में हजारों टन घी उलट कर धुंआ निकालिये, बडे़ पुण्य का काम माना जाएगा. अगर आप संयुक्त हिन्दू परिवार है तो टैक्स में छूट मिलेगी, कैलाश मान सरोवर यात्रा में रियायत मिलेगी, सारे धार्मिक ट्रस्ट करमुक्त है, सुबह 4 बजे ही आपका ब्रह्म मुर्हूत प्रारम्भ हो सकता है, जब धर्म स्थलों पर लगे भौपूं चीख सकते है, अपनी-अपनी श्रृद्धा और क्षमतानुसार आप हम सरीखे अधार्मिक लोगों की नींद खराब कर सकते है.
अपनी भावनाओं के नाम पर आप किसी भी बात पर दंगा कर सकते है, मरी हुई गाय को बचाने के लिए जिंदा दलितों को मार सकते है, जिन्दा गायों के नाम पर घुमन्तु समुदायों की आजीविका छीन सकते है, सरकारी जमीनें गौशालाओं के नाम पर कब्जा सकते है, सब छूट है, कोई कुछ नहीं कहेगा.
आप चाहे तो अल्पसंख्यक बस्ती पर हुए हमले में उन्हीं की दुकानें जलाये, उन्हें ही नुकसान पहुंचाये मगर फिर भी बहुसंख्यक होने का लाभ लेते हुये छूट जाएं, इस देश में हिन्दू होना बड़ा फायदेमंद है और राजनीतिक हिन्दू होना तो और भी फायदेमंद है.
सरकारी हो अथवा गैर सरकारी तमाम कार्यालयों में हमारे देवी देवता विराजमान है, हमारी कार्यपालिका, प्रेसपालिका, न्यायपालिका और विधायिका अक्सर और अधिक हिन्दू होने लगी है, हमारे हर आचरण से हिन्दू राष्ट्र की बू आती है इसलिये मैं कहता हूं या कहना चाहता हूं कि आप चाहे जितनी बार इस संविधान में सेकुलर शब्द लिख दें, हम तो हिन्दू राष्ट्र थे, है और रहेंगे. क्योंकि हमारी नजरों में भारत एक हिन्दू राष्ट्र है.

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