सरकार की बदनीयती और ज़मीन अधिग्रहण

बिहार में किसान आंदोलन कोई नई बात नहीं है. आजादी की लड़ाई से लेकर आज आजाद भारत में पिछले 63 वर्षों से किसान आंदोलन और उनका प्रतिरोध लगातार जारी है. भले ही किसानों द्वारा उठाए जाने वाले मुद्दों में परिवर्तन हो गया हो लेकिन उनकी आवाज को दबाने और उनके आंदोलनों के दमन में आज तथाकथित सुशासन की सरकार में भी वही बर्बरता है जैसी अंग्रेजों के समय में थी.

बिहार राज्य के दूसरे क्षेत्रों की बात तो दूर राजधनी पटना और पटना जिले में इस बर्बरता को नजदीक से देखा जा सकता है. सुशासन सरकार की दोमुंही बातें और घोषणाएं जो कल्याणकारी कम और लूट की सामंती मानसिकता को अधिक उजागर करती है, ने कभी बाढ़ तो कभी सुखाड़ झेल रहे किसानों के साथ-साथ भूमिहीनों को भी नहीं बख्शा. पंचायत से लेकर प्रखंड, प्रखंड से अनुमंडल और अनुमंडल से जिले तक सुशासन सरकार ने कुछ काम भले किया हो, लेकिन आम जनता को उससे कुछ राहत मिली हो या न मिली हो, पदासीन लोगों और बिचैलियों को फायदा जरूर हुआ है. शासन की कार्यशैली के चलते पूरी की पूरी राजनैतिक और प्रशासनिक व्यवस्था में एक समांनातर बिचैलिया तंत्र विकसित हो गया है. जो बहुत बड़े पैमाने पर चलाई जा रही कल्याणकारी योजनाओं की राशि की बंदरबाट और दलाली में संलग्न हैं.
बिचैलियों की कोई जात या प्रवृत्ति हो ऐसा भी नहीं है. समय और परिस्थिति के अनुरूप ये बिचैलिये प्रशासन में उपर से नीचे तक, राजनीति में पार्टी कार्यकर्ता से मंत्री तक और पत्रकारिता में रिपोर्टर से संपादक के स्तर तक देखने को मिलते हैं. जो भारी मात्रा में गरीबों के कल्याण और अन्य राहत योजनाओं की राशि डकार जाते हैं. साथ ही साथ विभिन्न जनमंचों पर सरकार के थोथे विकास का गुणगान करना भी नहीं भूलते.
सरकार के दोहरे चरित्र का ऐसा ही एक मामला बिहार की राजधानी और पटना जिले के नौबतपुर प्रखंड में प्रकाश में आया. जहां तथाकथित सुशासन की सरकार ने वर्ष 2007 में किसानों की 96 एकड़ उपजाउ भूमि का अधिग्रहण चीनी मिल लगाने के झूठे वादे के साथ शुरू तो किया. लेकिन बाद में उक्त जमीन को विजय माल्या के स्वामित्व वाली यूवी ग्रुप ऑफ कम्पनीज को शराब फैक्टी लगाने के लिए दे दी. स्थानीय किसान चीनी मिल के नाम पर ली गई जमीन पर शराब फैक्टी लगाने का विरोध तो लंबे समय से करते चले आ रहे थे. किसानों ने सरकार की इस वादाखिलाफी के खिलाफ पटना उच्च न्यायालय का दरवाजा भी खटखटाया लेकिन महंगे वकीलों और उंची दलीलों के चलते फैसला कम्पनी के हित में चला गया.
दरअसल हुआ यूं कि 2007 में सरकार ने प्रखंड के कोपा कला और दरियापर गांव के किसानों से चीनी मिल लगाने के नाम पर उनकी उपजाउ जमीन के अधिग्रहण के लिए सहमतिपत्र पर हस्ताक्षर करा लिए थे. जिससे इस 96 एकड़ भूमि के अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू हो गई थी. अबतक तो अधिकांश किसानों को इसका मुआवजा भी मिल चुका है. लेकिन सरकार की बदनीयती के चलते इस जमीन पर चीनी मिल तो नहीं बन सकी. वर्ष 2011 में सरकार ने किसानों की जमीन बिहार राज्य औद्योगिक क्षेत्र विकास प्राधिकार के माध्यम से यूीव ग्रुप ऑफ कम्पनीज को शराब फैक्टी लगाने के लिए दे दी.
ताजा घटनाक्रम में 29 अगस्त को जब कम्पनी के अधिकारी पूरे प्रशासनिक अमले के साथ जमीन की घेराबंदी करने पहुंचे तो पहले से क्रुद्ध किसानों का आक्रोश फूट पड़ा. जिससे मौके पर कम्पनी तथा सरकार के अधिकारियों को किसानों के गुस्से का सामना करना पड़ा. गांव में दौ सौ की संख्या में पुलिस बल की तैनाती कर दी गई, जिससे पूरा का पूरा गांव छावनी में तब्दील हो गया. वहीं सैकड़ों की संख्या में किसान भी अपनी जमीन से हटने को तैयार नहीं हुए और हाथ में केरोसीन लेकर आत्मदाह करने और जान देंगे पर जमीन देंगे जैसे गगनभेदी नारे लगाते रहे.
कोपाकला गांव के किसान कामता प्रसाद, मुन्ना सिंह, देवेन्द्र सिंह, रितेश सिंह आदि ने बताया कि चीनी मिल के नाम पर हमसे यह जमीन ली गई. गांव में चीनी मिल लगती तो आसपास गन्ने की खेती होती और किसानों के साथ-साथ क्षेत्र का विकास होता. लेकिन सरकार ने हमारे साथ छल किया और जमीन को शराब फैक्टी लगाने के लिए कम्पनी दे दी. ऐसे में हम तब तक अपनी जमीन से नहीं हटेंगे जब तक सरकार दोबारा चीनी मिल लगाने का वादा नहीं करती. किसानों के आक्रोश और प्रशासनिक अधिकारियों की समझबूझ से उस समय तो पूरा अमला खाली हाथ लौट गया लेकिन जल्द ही किसी अप्रिय घटना से इंकार नहीं किया जा सकता.

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