रिफ़त को इंतज़ार है सज्जादुर्रहमान की रिहाई का

पिछले कई सालों से गुलाम कादिर वानी से हो रही मुलाकातों में रिफत को जाना. और अब यूपी की सरकार को भी उसे जानना चाहिए. रिफत सज्जादुर्रहमान की मंगेतर है. पिछले चार सालों से वह सज्जाद का इन्तजार दूर किश्तवाड़ जम्मू-कश्मीर में कर रही है. अक्टूबर 2007 में उसकी सगाई सज्जादुर्रहमान से हुयी थी और दिसम्बर में सज्जाद को यूपी की कचहरियों में हुए धमाकों के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया.

रिफत से यह पूछने पर कि क्या इस बीच रिश्ते आए या फिर कही और निकाह करने के लिए लोगों ने कहा तो रिफत कुछ पलों के लिए ठहर कर बोली कि बहुत रिश्ते आए पर मैंने मना कर दिया.
सज्जादुर्रहमान देवबन्द में पढ़ाई कर रहा था. वर्ष 2007 के दिसम्बर में वह बकरीद की छुट्टियों में घर गया था. उसके पिता गुलाम कादिर वानी बताते हैं कि 20 दिसम्बर 2007 को स्थानीय पुलिस ने बेटे को उठा लिया था. पुलिस ने उसकी गिरफ्तारी मो. अख्तर वानी के साथ 27 दिसम्बर 2007 को दिखाई थी.
अख्तर के पिता मोहम्मद साबिर का चेहरा आज भी मुझे याद है. बेटे की गिरफ्तारी के सिलसिले में चार साल पहले वो लखनउ आए थे तो हमने जब उनसे कहा कि वो अपनी जर्सी उतार दें तो उन्होंने इस बात पर बिना कोई जवाब देते हुए अपने वकील मोहम्मद शोएब की तरफ इशारा करते हुए कहा कि मैं बहुत गरीब हूं और मेरा यहां ‘पंजाब’ आना बहुत नहीं हो पाएगा. आप लोग मेरे बेटे को बचा लीजिए मेरा बेटा बेगुनाह है. हमने जब उनसे कहा कि यह पंजाब नहीं यूपी है तो वे इसे मानने से इन्कार कर दिए. फिर उनसे कभी मुलाकात नहीं हो पाई. बाद में सज्जादुर्रहमान के पिता गुलाम कादिर वानी ने बताया कि बेटे के गम में दिल की बीमारी ने उन्हें ले लिया.
मोहम्मद साबिर बेटे के उस पुलिस रिकार्ड को निकलवाना चाहते थे जिसमें उसने 16 नवम्बर 2007 को एक वाहन दुर्घटना की थी और 24 नवम्बर तक पुलिस की हिरासत में था. जबकि पुलिस उसे 23 नवम्बर 2007 के कचहरी धमाकों में आरोपी बता रही है. पर अफसोस वो नहीं रहे.
पुलिस के अनुसार सज्जादुर्रहमान ने ही लखनऊ की कचहरी में विस्फोटकों से भरा बैग रखा था. पुलिस ने सज्जादुर्रहमान के खिलाफ देशद्रोह, षड्यंत्र रचने, हत्या का प्रयास करने और विस्फोट अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया था. लेकिन पुलिस के सामने दिये गए बयान के अलावा उसके खिलाफ कोई सुबूत नहीं था. जिसके चलते आरोपियों के वकील और मानवाधिकार कार्यकर्ता एडवोकेट मोहम्मद शोएब ने कोर्ट में डिसचार्ज की याचिका दायर की.
इस याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने 14 अप्रैल को सज्जादुर्रहमान को लखनउ की कचहरी में हुए विस्फोट के मामले से बरी कर दिया. यहां यह सवाल उठाना लाजिमी है कि जिन आरोपियों में सज्जादुर्रहमान ने चार साल का समय जेल में गुजारे उसका दोषी कौन है?
सज्जादुर्रहमान के पिता गुलाम कादीर वानी इस फैसले को खुद की नेमत मानते हैं. किस्तवाड़ में एक छोटे से किसान गुलाम कादीर की आर्थिक हैसियत गंवारा नहीं करती की वह लखनउ जेल में बंद अपने बेटे से समय-समय पर मिल सके. सज्जाद की गिरफ्तारी के बाद गुलाम कादीर के पास वकील करने के लिए भी पैसे नहीं थे. गुलाम कहते हैं कि ‘‘शुक्र है कि मोहम्मद शोएब ने उनके बेटे का पूरा केस बिना किसी फीस के लड़ा. और भी इंसाफपसंद लोग हमारे साथ थे, तभी हमें इंसाफ मिल सका.’’ इतना सब कुछ होने के बाद भी गुलाम को न्यायप्रक्रिया पर पूरा भरोसा हैं. वह कहते हैं ‘‘पुलिस ने जिस तरह से उसे उठाया था, और आरोप लगाए हमें नहीं लगा कि वह छूट पाएगा. लेकिन अल्लाह ने हमारी सुन ली. हमें भरोसा ही की सज्जाद फैजाबाद कचहरी विस्फोट के आरोप से भी बरी होगा.
रिफत फातिमा की तो खुशी का ठिकाना नहीं रहा. रिफत से पूछने पर कि क्या वो कभी सज्जाद से मिलने यूपी आयीं उनका जवाब था नहीं बहुत दूर है न. सवाल के अन्दाज में उन्होंने कहा कि वहां बहुत गर्मी पड़ती है न? कब तक वो छूट जाएंगे?
उनका सवाल और दर्द लाजिमी है. आतंकवाद के नाम पर जेलों में बंद इन लड़कों को हाई सिक्योरिटी के नाम पर 23-23 घंटे जेलों में बंद रखा जाता है. गर्मियों में जेल के कमरे प्रेसर कूकर की तरह हो जाते हैं.
23 नवम्बर, 2007 में उत्तर प्रदेश की लखनउ, फैजाबाद और बनारस की कचहरियों में विस्फोट हुए थे. इस मामले में पुलिस ने पांच मुस्लिम युवकों को अलग-अलग जगहों से उठाया. इसमें आजमगढ़ के सम्मोपुर गांव के तारिक कासमी, जौनपुर के मडियाहूं से मो. खालिद मुजाहिद, पश्चिम बंगाल से आफताब आलम और जम्मू-कश्मीर के किस्तवाड़ जिले के मो. अख्तर वानी और सज्जादुर्रहमान शामिल थे. जन दबावों के चलते ही तत्कालीन मायावती सरकार को खालिद मुजाहिद और तारिक कासमी की गिरफ्तारियों की जांच के लिए जस्टिस निमेष की अध्यक्षता में जांच कमेटी गठित करना पड़ा. और अब सपा सरकार उन्हें छोड़ने की बात कह रही है. इसलिए इन दोनों कश्मीरी लड़कों का सवाल भी प्रमुख हो जाता है. क्योंकि ये दोनों भी इन्हीं केसों में जेल में हैं.
कचहरियों में हुए विस्फोटों का कथित ‘मास्टर माइंड’ आफताब आलम पहले ही बरी हो चुका है. दिसम्बर 2007 में जिस आफताब आलम उर्फ राजू उर्फ मुख्तार को हूजी का आतंकी बताते हुए पं बंगाल से गिरफ्तार किया था, उसे एक महीने से कम समय में ही कोर्ट ने बाइज्जत बरी कर दिया. तब आफताब के पास से आरडीएक्स, हथियार के अलावा बड़ी मात्रा में बैंक बैलेंस भी दिखाया गया था. बाद में मानवाधिकार संगठनों की सक्रियता के चलते मात्र 22 दिन बाद ही एसटीएफ ने कोर्ट में नाम में गलतफहमी होने का तर्क देते हुए माफी मांग ली थी.
कचहरियों में विस्फोटों पर पुलिस की कहानी पर पहले से ही सवाल उठते रहे हैं. पुलिस ने इन विस्फोटों में हूजी और अन्य इस्लामिक आतंकी संगठनों का हाथ बताया था. गिरफ्तार आरोपियों को भी इन्हीं संगठनों का आतंकी बताया गया था. जबकि कई लोगों का मानना है कि इन विस्फोटों में हिंदुत्ववादी संगठनों का हाथ रहा है. फैजाबाद की कचहरी में शेड नम्बर 4 और शेड नम्बर 20 के नीचे रखे गए विस्फोटकों में धमाके हुए जो भाजपा के जिला पदाधिकारी विश्वनाथ सिंह और महेश पाण्डे की थीं और ये दोनों ही उस समय वहां से गायब थे. पुलिस ने इन दोनों से कभी भी पूछताछ की जरुरत महसूस नहीं की.
25 दिसम्बर 2007 को उत्तर प्रदेश के एडीजी बृजलाल ने प्रेस कॉफ्रेंस कर इन विस्फोटों के तकनीक की तुलना हैदराबाद की मक्का मस्जिद में हुए विस्फोटों से की थी. असीमानंद की स्वीकृतियों और राष्ट्रीय जांच एजेंसी की तहकीकात में मक्का मस्जिद विस्फोट में हिंदुत्ववादी संगठनों की संलिप्तता उजागर हुई है. अगर बृजलाल की इन बातों को सही माना जाए तो कचहरी विस्फोटों में भी हिंदुत्ववादी संगठनों का ही हाथ है.

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