राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून: कुछ अहम चिंताएं

संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान माना जा रहा है कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा क़ानून को भी पारित कराने का प्रयास सरकार की ओर से किया जाएगा.

चिंताजनक यह है कि खाद्य सुरक्षा क़ानून के मसौदे में सरकार ने इतनी ज़्यादा कमियां रखी हैं कि उनके दम पर एक प्रभावी क़ानून की ओर बढ़ने की कल्पना भी करना मुश्किल है. इतने लचर क़ानून को लाने से अच्छा इसे न लाना होगा.
इस मसौदे के प्रावधानों को लेकर कई जनसंगठनों ने लगातार अपनी आपत्तियां सरकार से दर्ज कराई हैं पर सरकार इस ओर से मुंह फेरकर बैठी है.
ऐसे में पिछले दिनों रोटी का अधिकार अभियान ने कई अन्य संगठनों के साथ मिलकर दिल्ली के जंतर-मंतर पर जनमंच का आयोजन किया और सरकार के सामने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा क़ानून को लेकर कुछ अहम चिंताओं और संशोधनों के लिए एक प्रस्ताव भी रखा.
इस प्रस्ताव का हिंदी अनुवाद हम यहां प्रस्तुत कर रहे हैं.
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पिछले ढाई साल से रोजी-रोटी अधिकार अभियान लगातार एक व्यापक राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून बनाए जाने की पैरवी कर रहा है, जिसमें न सिर्फ सबके लिए जन आपूर्ति की व्यवस्था (पीडीएस) हो, बल्कि लोगों के भोजन के अधिकार की रक्षा के दूसरे उपायों जैसे (1) सबको पोषण, स्वास्थ्य और आईसीडीएस के तहत छह साल से कम उम्र के बच्चों को प्री-स्कूल एजुकेशन की व्यवस्था (2) 6-14 साल की उम्र के बच्चों के लिए पोषण युक्त और पका हुआ मिड-डे मील (3) गर्भवती और दुग्धपान कराने वाली महिलाओं के लिए मातृत्व हकदारी और दूसरी सुविधाएं (जैसे नवजात शिशुओं और बच्चों को उचित दुग्धपान कराने संबंधी परामर्श व सहायता) (4) भूखा रह जाने के खतरे में जी रहे वंचित समूहों और समुदायों/लोगों को विशेष सहायता (सामाजिक सुरक्षा पेंशन सहित). इसके साथ-साथ, यह अभियान स्थानीय खेती का पुनरुद्धार करने, न्यूनतम समर्थन मूल्य सुनिश्चित करने, विकेंद्रित खरीद व भंडारण और जन वितरण प्रणाली (पीडीएस) में दालों, खाद्य तेल और मोटे अनाज को शामिल करने की वकालत करता है.
सिंतबर, 2011 में खाद्य मंत्रालय द्वारा तैयार राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक के मसौदे को प्रतिक्रियाओं के लिए मंत्रालय की वेबसाइट पर सार्वजनिक किया गया था. विधेयक का यह मसौदा उपरोक्त मांगों को पूरा नहीं करता बल्कि राष्ट्रीय सलाहकार परिषद् (एनएसी) द्वारा प्रस्तावित अति साधारण हकदारियों में भी कांट-छांट करता है. ऐसा लगता है कि इस ड्राफ्ट का मुख्य लक्ष्य सरकार के दायित्व को कम से कम करना, लोगों की हकदारी को सीमित रखना और किसी भी तरह की जवाबदेही से बचना है.
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक के मसौदे के इन पहलुओं से हम खासतौर पर चिंतित हैं-
1. खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने लिए एक दृष्टिकोण जरूरी है लेकिन यह विधेयक जन वितरण प्रणाली-पीडीएस को खाद्यान्न तक सीमित रखने के संकीर्ण दृष्टकोण पर आधारित है.
2. इस संकीर्ण एप्रोच में भी विधेयक बहुत-सी खामियां से युक्त हैं.
3. इस विधेयक ने राशन की हकदारी प्राथमिकता वाले कुटुंब के लिए प्रति माह 7 किलोग्राम अनाज प्रति व्यक्ति और सामान्य कुटुंब के लिए प्रति माह 3 किलोग्राम प्रतिव्यक्ति पर सीमित कर दी है. जबकि आईसीएमआर के मानकों के बताते हैं कि एक व्यस्क हर महीने 14 किलो खाद्यन्न का उपभोग करता है.
4. यह विधेयक बच्चों के अधिकारों को नजरअंदाज करता है (खासतौर पर छह साल से कम उम्र के बच्चे), आईसीडीएस के सब तक पहुंचाने जैसे अधिकारों को भी जिन पर सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिए हुए हैं.
5. शिकायत निवारण के प्रावधान बहुत कमजोर हैं.
6. यह विधेयक केंद्र सरकार को खुद की शर्तों पर भोजन के स्थान पर नकद भुगतान करने की छूट देता है, बगैर किसी सुरक्षात्मक उपाय किए.
7. स्कूलों और आंगनबाड़ी केंद्रों पर भोजन की आपूर्ति में व्यावसायिक हस्तक्षेप से बचाने के उपाय इस विधेयक में नहीं हैं.
8. यह विधेयक केंद्र सरकार को एकतरफा शक्तियां देता हैं जिसमें अधिकांश हकदारियों को बदलने और सभी प्रासंगिक योजनाओं के लिए बाध्यकारी दिशा-निर्देश सुझाना शामिल है.
9. इस प्रस्तावित कानून को लागू करने की कोई समय-सीमा तय नहीं है.
हमारी चिंता है कि यह विधेयक आबादी को तीन समूहों (प्राथमिक, सामान्य और वंचित) में बांटने पर निर्भर है, इन समूहों की पहचान कैसे होगी, इस बारे में कोई स्पष्टïता नहीं है. संभवत: पूर्ववर्ती बीपीएल जनगणना का ही सुधरा रूप सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना (एसईसीसी) इस उद्देश्य के लिए बहुत ही अपर्याप्त है. जो लोग आज जंतर-मंतर पर हमारे साथ आए उनमें बहुत से गरीब लोग हैं जिन पर एसईसीसी के स्कोरिंग सिस्टम के दोषपूर्ण स्वरूप के चलते प्राथमिक समूह से बाहर छूट जाने का खतरा मंडरा रहा है.
हम एक व्यापक राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून की अपनी मांग दोहरा रहे हैं जिसके मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं:
1. सार्वजनिक वितरण प्रणाली-पीडीएस सबके लिए हो जिसमें दालें, खाद्य तेल और मोटे अनाज भी शामिल रहें. खाद्य हकदारी आईसीएमआर के मानकों के अनुरूप हो जिससे कि सभी, खासतौर पर भूखमरी के खतरे में रहने वाले, कमजोर और वंचित लोग न सिर्फ इसमें शामिल हों बल्कि पर्याप्त पोषण भी हासिल करें.
2. उचित समर्थन मूल्य और विकेंद्रीकृत खरीद, न सिर्फ चावल और गेहूं की बल्कि मोटे अनाज और दालों की भी हो.
3. कानून को गरीबी के आधिकारिक अनुमान पर आधारित किसी भी \’तय सीमा’ से न जोड़ा जाए.
4. आईसीडीएस \’सबके लिए हो और गुणवत्ता के साथ’, इसमें सभी बच्चों के लिए स्थानीय तौर पर तैयार पौष्टिक भोजन का प्रावधान शामिल होना चाहिए.
5. छह महीने के लिए सबको बिन शर्त मातृत्व हकदारी मिले.
6. निर्बल समूहों की हकदारी जैसे बुजर्गों, एकल महिलाओं और विकलांगों के लिए पेंशन, मातृत्व हकदारी और सामुदायिक रसोई.
हम आप से आग्रह करते हैं कि यह राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक ससंद में पेश न हो और इस मौजूदा स्वरूप में कानून नहीं बने.
The Steering Committee of the Right to Food Campaign:
Annie Raja (National Federation for Indian Women), Anuradha Talwar,  Gautam Modi and Madhuri Krishnaswamy (New Trade Union Initiative), Arun Gupta and Radha Holla (Breast Feeding Promotion Network of India), Arundhati Dhuru and Ulka Mahajan (National Alliance of People’s Movements), Asha Mishra and Vinod Raina (Bharat Gyan Vigyan Samiti), Aruna Roy, Anjali Bharadwaj and Nikhil Dey (National Campaign for People\’s Right to Information), Ashok Bharti (National Conference of Dalit Organizations), Colin Gonsalves (Human Rights Law Network), G V Ramanjaneyulu (Alliance for Sustainable and Holistic Agriculture), Kavita Srivastava and Binayak Sen (People’s Union for Civil Liberties), Lali Dhakar, Sarawasti Singh, Shilpa Dey and Radha Raghwal (National Forum for Single Women’s Rights), Mira Shiva and Vandana Prasad (Jan Swasthya Abhiyan), Paul Divakar and Asha Kowtal (National Campaign for Dalit Human Rights), Prahlad Ray and Anand Malakar (Rashtriya Viklang Manch), Subhash Bhatnagar (National Campaign Committee for Unorganized Sector workers), Jean Dreze and V.B Rawat (Former Support group to the Campaign,  Ritu Priya (JNU)
Representatives of Right to Food (State campaigns):
Veena Shatrugna, M Kodandram and Rama Melkote(Andhra Pradesh), Saito Basumaatary and Sunil Kaul (Assam), Rupesh (Bihar), Gangabhai and Sameer Garg (Chhattisgarh), Pushpa, Dharmender, Ramendra, Yogesh, Vimla and Sarita (Delhi), Sejal Dand and Sumitra Thakkar (Gujarat), Abhay Kumar and Clifton (Karnataka), Balram, Gurjeet Singh and James Herenj (Jharkhand), Sachin Jain (Madhya Pradesh), Mukta Srivastava and Suresh Sawant (Maharashtra), Tarun Bharatiya (Meghalaya), Chingmak Chang (Nagaland) Bidyut Mohanty and Raj Kishore Mishra, Vidhya Das, Manas Ranjan (Orissa), Ashok Khandelwal, Bhanwar Singh and Vijay Lakshmi (Rajasthan), V Suresh (Tamil Nadu), Arundhati Dhuru and Bindu Singh (Uttar Pradesh)

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