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राजस्थानः बेटियों की हत्या आखिर कबतक?

Oct 1, 2011 | अरुण वर्मा

वर्ष 2011 की जनगणना ने एक बार फिर सभी को चौंका दिया है. प्रति 10 वर्ष में घोषित जनगणना के आंकड़ों से निरन्तर गायब होती जा रही बेटियों की संख्या से सभी शर्मसार हुए हैं.

 
इस दृष्टि से भारत का बाल लिंगानुपात (0-6 वर्ष तक की आयु वर्ग में प्रति 1000 लड़कों पर लड़कियों की संख्या) में वर्ष 2001 के 927 की तुलना में वर्ष 2011 के 914 के आंकडो़ में 13 के अंतर को स्पष्ट देखा जा सकता है.
 
राजस्थान में यह अन्तर 26 का हो गया है. वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार राजस्थान में 0-6 वर्ष आयु वर्ग में प्रति 1000 लड़कों पर मात्र 883 लड़कियां रह गई हैं. लड़कियों की संख्या में आ रही भारी गिरावट के कारण राजस्थान की लगभग 7 लाख लड़कियां गायब हैं.
 
राजसमंद जिले में, (जहां वर्ष 2001 में लिंगानुपात- प्रति 1000 पुरुषों पर महिलाओं की संख्या भी 1000 थी और जिसे जिले के लिए गर्व का सूचक माना जाता था) बाल लिंगानुपात के आंकडो में आए 45 के अन्तर ने जहां एक ओर हम सभी को हिलाकर रख दिया, वहीं दूसरी ओर सरकारी व गैर सरकारी व अन्य संगठनों द्वारा इस दिशा में किए जा रहे प्रयासों पर सवाल खड़ा कर दिया है.
 
राजसमंद में वर्ष 2001 में बाल लिंगानुपात 936 था जो कि वर्ष 2011 में घटकर 891 रह गया है. जिले की जनसंख्या में से 10026 बेटियां गायब है जबकि वर्ष 1991 में अलग जिले के रुप के अस्तित्व में आने के बाद पिछले 20 वर्षो में राजसंमद में साक्षरता के साथ-साथ संसाधन और जानकारी भी बढ़ी है.
 
राज्य के डूंगरपुर, जयपुर, सीकर, टोंक, झुंझनू, अलवर, दौसा, भरतपुर, करौली और सवाई माधोपुर जिले में भी बाल लिंगानुपात तेजी से घटा है. 
 
बेटियों की निरन्तर घटती जनसंख्या इस बात की ओर संकेत देती है कि राज्य में पीसीपीएनडीटी कानून के सही क्रियान्वयन में कमी है. सरकार, स्वयंसेवी संस्थाओं और प्रशासन द्वारा किए जा रहे प्रयास काफी नहीं हैं.
 
राज्य में अनचाही लड़कियों को अस्वीकार करने के लिए प्रयोग की जा रही अल्ट्रासाउण्ड तकनीक का प्रयोग निरन्तर बढ़ता जा रहा है. यह जानकरी तब प्रकाश में आई जब वर्ष 2006 में एक निजी चैनल द्वारा करवाए गए स्ट्रींग ऑपरेशन से राज्य के 22 जिलों में 100 से भी अधिक चिकित्सकों को पकड़ा गया था. 
 
इसके बाद राजस्थान मेंडीकल काउंसिल द्वारा की गई कार्यवाही के बावजूद राज्य में सोनोग्राफी मशीनों का प्रयोग बदस्तूर जारी है. राज्य के लोग पड़ोसी राज्यों में जाकर गर्भ में पल रहे शिशु की लिंग जांच का काम धड़ल्ले से करवा लेते हैं और यह पता चलने पर कि गर्भ में लड़की है, गर्भपात करवा देते हैं.
 
इसी विषय पर काम कर रही स्वयंसेवी संस्था सीफार द्वारा 13 जिलों में विभिन्न संस्थाओ और संगठनों के साथ किए जा रहे कार्य के दौरान स्पष्ट हुआ कि राज्य में 1651 निजी क्लीनिक एंव 122 सरकारी अस्पताल अल्ट्रासाउण्ड केन्द्र के रुप में पंजीकृत हैं. 1000 से अधिक पंजीकृत निजी क्लिनिकों में लिंग जांच का काम धड़ल्ले से जारी है. (सीफार – 2010)
 
लड़का पैदा होने की इच्छा, लड़कियों के जन्म पर खुश न होने की परम्परा, दहेज प्रथा, बाल विवाह और छोटी आयु में गर्भधारण करना और महिलाओं की शिक्षा में कमी जैसे महत्वपूर्ण कारण इस सामाजिक असमानता के प्रति जिम्मेदार हैं.
 
सवाल मानसिकता में बदलाव का है और बेटियों की गरिमा को पुर्नस्थापित करने का है. पीसीपीएनडीटी एक्ट के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए सभी को आगे आना होगा. इसके लिए व्यापक प्रसार-प्रचार की जरुरत है. इसे जन-जन का मुद्दा बनाया जाना जरुरी है. आम जनों को भी इस जानकारी से परिचित होना आवश्यक है कि गर्भ में पल रहे शिशु की लिंग जांच करवाना कानूनन अपराध है और इसके लिए सजा का प्रावधान है.
 
दूसरी ओर बेटियों की महत्ता को बढ़ाने के लिए हर स्तर पर प्रयास किए जाने चाहिए. जन्मोत्सव के साथ ही उसके समुचित पालन-पोषण, शिक्षा व सम्मान का सुनिश्चितकरण समाज में उनकी गरिमा को बढ़ाने में सहायक होगा.
 
अन्त में खास सबक उन जिलों से भी लें जहां विगत 10 वर्षों की जनगणना में बाल लिंगानुपात पहले की अपेक्षा बढ़ा है, जैसे श्रीगंगानगर. वहां की सफल प्रेक्टिसिस का पता लगाकर यह जाना जा सकता है कि किस तरह से उन्होने यह संभव कर दिखाया. इसके लिए आम व्यक्ति द्वारा ली जाने वाली जिम्मेदारी सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है.

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