देश में जारी भ्रष्टाचार और कॉर्पोरेट लूट के खिलाफ मंगलवार को दिल्ली में छात्रों-युवाओं के एक 100 घंटे लंबे प्रदर्शन की शुरुआत हुई.
दिल्ली में नौ अगस्त से 13 अगस्त तक 100 घंटों के लिए देशभर से आए छात्रों-युवाओं के इस प्रदर्शन का आयोजन ऑल इंडिया स्टूडेंस एसोसिएशन (आइसा) की ओर से किया गया है.
विरोध प्रदर्शन के क्रम में तीन मुख्य बातों की ओर इन युवाओं ने सरकार और देश का ध्यान आकर्षित किया है. छात्रों ने अपनी इस घेरेबंदी को भ्रष्टाचार और कॉर्पोरेट लूट के खिलाफ लोकतंत्र के लिए संघर्ष का नारा दिया है.
वैसे दिल्ली में पिछले कुछ महीनों के दौरान कई भ्रष्टाचार विरोधी प्रदर्शन हुए हैं पर वो प्रदर्शन कम और मीडिया मैनेज्ड नुमाइशें ज़्यादा साबित हुए हैं.
मंगलवार को जिस स्पष्ट राय और तैयारी के साथ छात्रों-युवाओं के इस आंदोलन का दिल्ली में आगाज़ हुआ, उसे देखकर लगा कि इसमें स्फूर्ति भी है, संभावना भी और ईमानदारी भी.
दिल्ली में देश के कोने-कोने से सुबह से ही छात्रों और युवाओं के पहुंचने का सिलसिला शुरु हो गया था. दोपहर होते-होते 3000 से भी ज़्यादा छात्र जंतर-मंतर पर पहुंचे चुके थे.
इनमें केरल, गुजरात, तमिलनाडु, पूर्वोत्तर, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, पंजाब, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, उत्तराखंड और दिल्ली के कई छात्र-युवा शामिल थे.
भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्रसंघ अध्यक्ष संदीप ने बताया कि मुख्य मांग देश में एक प्रभावी जन लोकपाल क़ानून लाने की है. देश को तत्काल एक प्रभावी लोकपाल क़ानून की ज़रूरत है और सरकार इस मांग को दरकिनार नहीं कर सकती है.
इसके अलावा दो और बहुत अहम बाते हैं.
पहली यह कि सरकार तत्काल भ्रष्टाचार के ताज़े मामलों में शामिल पाई गई कंपनियों, कॉर्पोरेट समूहों की सूची सार्वजनिक करते हुए उन्हें ब्लैकलिस्ट करे.
दूसरी यह कि विदेशों में जिन भारतीय लोगों, समूहों या संस्थाओं का काला धन जमा है और सरकार के पास उनकी सूची भी है. इस सूची को तत्काल सार्वजनिक किया जाए.
उन्होंने स्पष्ट किया कि जनलोकपाल की मांग का मतलब देश में एक प्रभावी और भ्रष्टाचार से लड़ने वाला क़ानून लागू करना है. इसका यह मतलब नहीं है कि हम सरकार या अन्ना में से किसी के भी ड्राफ्ट को मान रहे हैं.
मसौदे पर मतभेद
संदीप ने बताया कि उनकी पार्टी अन्ना, सरकार व एनसीपीआरआई के ड्राफ्टों का विश्लेषण कर रही है. इनपर विचार विमर्श के बाद ही पार्टी अपनी राय को स्पष्ट तौर पर सामने रखेगी लेकिन इतना तो तय है कि देश में एक प्रभावी लोकपाल के लिए पार्टी संघर्ष करेगी.
विरोध-प्रदर्शन करने आए छात्रों का कहना है कि प्रधानमंत्री को इस क़ानून के दायरे से बाहर रखने की बात सोचना भी बेईमानी है.
पिछले दिनों में जो घोटाले हुए हैं, उनमें प्रधानमंत्री कार्यालय की भूमिका भी संदिग्ध है और ऐसे में लोकपाल के दायरे से या किसी प्रभावी भ्रष्टाचार निवारक क़ानून के दायरे से प्रधानमंत्री को बाहर रखने की बात तर्कहीन है.
सीपीआई (माले) की केंद्रीय समिति की सदस्य, कविता कृष्णन ने आए हुए युवाओं और छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि देश में सबसे ज़्यादा लूट और भ्रष्टाचार के माहौल में छात्र और युवा कैसे शांत रह सकते हैं. सरकार को जगाने और उसे घेरने की ज़रूरत है ताकि नागरिक अधिकारों के साथ रोज़ खेल रही सरकार को रोका जा सके.
उन्होंने कहा कि युवाओं का यह विरोध प्रदर्शन एक बड़ी लड़ाई के तहत है. अन्ना का संघर्ष कॉर्पोरेट लूट या उद्योग घरानों के प्रति चुप्पी साधे हुए है लेकिन यह आंदोलन केवल सतही लड़ाई के लिए नहीं है बल्कि भ्रष्टाचार की जड़ पर वार करने के लिए है.
माना जा रहा है कि बुधवार तक कई अन्य राज्यों से भी बड़ी तादाद में छात्र और युवा दिल्ली पहुंचेंगे और यह आंदोलन और तेज़ी पकड़ेगा.
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