मेजर प्रभाकर सिंह ( से. नि.)
सन 1971 की भारत पाकिस्तान जंग ने भारतीय उपमहाद्वीप का नक्शा बदल दिया था। यही नहीं इस एतिहासिक युद्ध में भारतीयों ने एकजुटता की मिसाल कायम की थी। हर धर्म और समुदाय के लोगों ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया था। इस युद्ध के प्रमुख सेनापतियों की फेहरिस्त तो देखिए: तदैव जनरल यस यच यफ जे मानेकशॉ (पारसी), एयर मार्शल लतीफ (मुस्लिम), लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा (सिख), लेफ्टिनेंट जनरल जे यफ आर जेकब (इसाई) और लेफ्टिनेंट जनरल के वी कृष्णाराव ( हिन्दू)। एक बात तो स्पष्ट नज़र आती है कि यह युद्ध भारतीयों ने लड़ा था न कि हिन्दू, मुस्लिम, सिख, इसाई या अन्य ने।
कोई सिख कोई जाट मराठा कोई गुरखा कोई मद्रासी
सरहद पर मरने वाला हर वीर था भारतवासी।
भारत के प्रचुर धन धान्य ने हमेशा से आक्रांताओं और अप्रवासियों को आकर्षित किया है। आर्य, द्रविड, अहोम, सिद्दी, यहूदी, पारसी, हूण, शक, कुशाण, मुस्लिम, फ्रे्ंच, डच एवं ब्रिटिश तथा अन्य जिनमें अधिकतर आक्रांता थे, भारत के ही होकर रह गये बल्कि भारतवासी हो गये। जैसा कि एक भारतवासी से उम्मीद की जाती है वैसे ही वे अपनायी मातृभूमि के प्रति कर्त्तव्यों से कभी पीछे नहीं हटे यहां तक कि प्राणोत्सर्ग करने में आगे रहे। इतिहास में झांक कर देखें तो पता लगता है कि महाराणा प्रताप के सेनापति हकीम खां सूरी ने अपने पुत्रों के साथ हल्दी घाटी में शहादत का दर्जा हासिल किया था। वहीं झांसी में रानी लक्ष्मीबाई के तोपखाना कमांडर गुलाम गौस खां ने मातृभूमि के लिए शहादत का वरण किया। स्वतंत्रता संग्राम में सभी धर्मों एवं समुदायों ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया। अंडमान की जेल में उद्धृत स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों में हर धर्म एवं समुदाय के लोग हैं। अतः भारत में प्रत्येक धर्म एवं समुदाय का योगदान बराबरी का है।
भारत पिछले 70 वर्षो की अथक मेहनत और निरंतर प्रयास से विश्व में अपनी जगह बनाने में कामयाब हो चुका है और एक महाशक्ति के रूप में उभर रहा है। इस प्रगति दर में किसी भी प्रकार की रूकावट एक तरह से राष्ट्र को नीचा देखने पर मजबूर कर देगी। हम हर प्रकार की रूकावट को दूर करने में सक्षम हैं फिर भी महाशक्ति एक ऐसा खतरा है जिससे कहीं घबराहट महसूस होती है। इस ध्रुवीकरण ने हजार वर्षों के लिए हमें गुलाम बना दिया था। उसी ध्रुवीकरण ने दूसरे रूप में फिर से देश में पांव पसारने शुरू कर दिए हैं।
यह ध्रुवीकरण हिन्दू राष्ट्र और धर्म आधारित है। भारत जैसे विभिन्न समुदायों, धर्मों, जातियों एवं भाषाओं वाले देश में मिलजुल कर रहने से ही शक्ति संचार होता है अन्यथा विखंडन। कुछ अंदरुनी और बाहरी शक्तियां फलते फूलते भारत को बर्दाश्त नहीं कर पा रही हैं और वे ध्रुवीकरण को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर बढ़ावा दे रही हैं। याद रहे कि हर आक्रान्ता ने भारत में तत्कालीन ध्रुवीकरण का पूरा फायदा उठाया और आसानी से विजय हासिल की।
अहमद शाह अब्दाली ने सिर्फ 30,000 सैनिकों के बल पर पानीपत में एक लाख से ज्यादा मराठा सेना पर जीत हासिल की थी। वहीं बाबर ने मात्र 10,000 सैनिकों के दम पर मुगल साम्राज्य की नींव डाल दी थी। ध्रुवीकरण का पूर्ण रूप से दोहन अंग्रेजों ने किया था। मुठ्ठी भर अंग्रेज़ बनिये प्लासी में भारतीयों को आपस में लड़ाने में सफल हो जाते हैं और बंगाल में कब्जे के साथ भारत में अंग्रेज शासन पूरे देश में पांव पसारने लगता है। यही नहीं, अंग्रेजों के शीर्ष काल में भारत में सिर्फ 68,000 अंग्रेज थे और भारतीयों की संख्या 38 करोड़ से भी ज्यादा थी।
इन भारतीयों में राजपूत, पठान, मराठा, बलूच, मुगल, सिख, गुरखा,यादव, नायर, तैलंग, कुर्ग, अहोम, पासी, खटिक और महार जैसे जांबाज एवं खूंखार योद्धा थे। ये सब अंग्रेज़ो की ध्रुवीकरण नीति का शिकार होकर मेमने बन गए थे और नतीजा 200 वर्षो की गुलामी। यही नहीं, चलते चलते ध्रुवीकरण के तहत उन्होंने भारत के टुकड़े कर दिए। विभाजन की विभीषिका तो वही जानते हैं जिन्होंने भोगी है। लाखों की संख्या में हत्याये, बलात्कार एवं उजड़े घर ध्रुवीकरण की अपने अंदाज में एक नायाब भेंट थी। यह ध्रुवीकरण की विभीषिका यूरोप में यहूदियों ने, रूस में कम्युनिस्ट पार्टी के विरोधियों ने और चीन में बुर्जुआ विचार धारा के लोगों ने तो हम से कई गुना ज्यादा झेली है।
इतिहास को झुठलाया नहीं जा सकता क्योंकि जो घट चुका है वह अब हमारे हाथ में नहीं है और न ही होगा। हां, हम दोबारा लिख कर अपने आप को धोखा दे सकते हैं और अपनी खामियां ढंक सकते हैं परन्तु खामियां दूर नहीं कर सकते हैं। हमने अक्सर ध्रुवीकरण को प्रश्रय दिया है चाहे वो जातिवाद या धर्मवाद आधारित हो या समुदाय प्रेरित हो और परिणाम भी हजार वर्ष तक भोगा है। अब फिर धर्म आधारित ध्रुवीकरण तेजी से पैर पसार रहा है। हमें इसे रोकना ही पड़ेगा नहीं तो हम कहीं के नहीं रहेंगे। टूटने में कितनी देर लगती है।
ध्रुवीकरण का निदान धर्म निरपेक्ष एवं जातिविहीन भारत राष्ट्र में है।
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