भगवा, पुलिस और गुर्जरों का निशाना बने अल्पसंख्यक

मानवाधिकार संगठन पीयूसीएल की अंतरिम जांच के बाद स्पष्ट हो गया है कि राजस्थान के भरतपुर जिले के गोपालगढ़ गांव में 14 सितंबर को हुई पुलिस फायरिंग में मारे गए लोगों और घायलों में अधिकांश के अल्पसंख्यक समुदाय के होने से पुलिस व प्रशासन की निष्पक्षता संदेहास्पद है.

पीयूसीएल की ओर से गोपालगढ़ भेजी गई जांच दल की सदस्य और संगठन की महासचिव कविता श्रीवास्तव कहती हैं कि हमारी चिंता इस बात को लेकर सबसे अधिक है कि किस प्रकार पुलिस ने दो लोगों के आपसी विवाद में भाग लेते हुए एक खास समुदाय को निशाना बनाया.
गोपालगढ़ की इस वीभत्स घटना में आठ लोग मारे गए और अधिकारिक रूप से 23 लोग घायल हुए. जिन आठ मृतकों की शिनाख्त हुई है, वे सभी अल्पसंख्यक समुदाय से आते हैं. जो 23 लोग घायल हुए, उसमें से 19 लोग अल्पसंख्यक समुदाय के हैं.
सवाल यह उठता है कि यदि पुलिस ने सही कदम उठाते हुए गोलीबारी की है तो यह एक पहेली है कि मरने वाले सभी एक ही समुदाय के कैसे हो सकते हैं.
पीयूसीएल का कहना है कि पुलिस ने 219  राउंड गोलियां चलाईं. गोलीबारी से पहले सिर्फ आंसू गैस के गोले छोड़े जाने का उल्लेख है लेकिन लाठीचार्ज या रबर बुलेट का कोई जिक्र नहीं आया है.
पीयूसीएल ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि मृतकों और घायलों की स्थिति देखकर इस बात का साफ अंदाजा लगाया जा सकता है कि सिर्फ गोलीबारी ही नहीं, बल्कि लोगों को निशाना बनाकर उन्हें जलाया भी गया. चूंकि गोलीबारी के बाद मस्जिद परिसर पुलिस के नियंत्रण में था इसलिए यह जांच करने की जरूरत है कि यह किसने किया.
प्रत्यक्षदशियों के आरोप हैं कि इस घटना के पीछे स्थानीय पुलिस के अलावा गुर्जर नेता और आरएसएस, बजरंग दल और विहिप के कार्यकर्ता भी शामिल हो सकते हैं. आरोप यह लगाया गया है कि ये लोग घटना से पहले ही थाने में थे, जहां दोनों समुदायों के बीच समझौते के लिए बैठक चल रही थी तथा इन्हीं लोगों ने दबाव बनाकर कलेक्टर से फायरिंग के आदेश लिखवाए. इसकी भी जांच करवाए जाने की आवश्यकता है.
रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि गोपालगढ़ स्थित मस्जिद की दीवारों पर गोलियों के निशान थे. हर चीज को तहस नहस कर दिया गया था. खून के धब्बे चारों ओर फैले हुए थे. लोगों को मारने के बाद घसीटने के भी सबूत मिले. ऐसा कैसे हो सकता है कि पुलिस के नियंत्रण में जो स्थान है, उसमें दूसरे समुदाय के कुछ लोग घुसकर नुकसान पहुंचाए और लाशें और लोगों को जिंदा जला दिया जाए.
राजस्थान पीयूसीएल के अध्यक्ष प्रेम कृष्ण शर्मा इस बाबत कहते हैं कि यदि समय रहते प्रशासन गंभीरता दिखाते हुए हजारों की भीड़ पर काबू करने की कोशिश करता तो बेगुनाहों की जान नहीं जाती. लेकिन पुलिस ने भीड़ को बढ़ने दिया. पुलिस फायरिंग शुरू होने से पहले दो समुदाय की आपसी झड़प में एक भी जान जाने की रपट नहीं है लेकिन प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, जब पुलिस ने फायरिंग की तो लोगों के मरने का सिलसिला जारी हुआ.
पीयूसीएल ने राज्य सरकार से मांग की है कि जो व्यक्ति लापता हैं,  उन्हें तुरंत खोजा जाए. इसके अलावा मारे गए लोगों की बॉडी का पोस्टमार्टम डॉक्टरों के स्वतंत्र और उच्चस्तरीय पैनल से कराया जाए.
इतना ही नहीं, घायलों की सरकारी लिस्ट में उनका नाम भी जोड़ी जाए जो डर के मारे रिपोर्ट नहीं लिखवा पाए या फिर गांव छोडकर चले गए. गोपालगढ़ से अपने घर छोड़कर चले गए लोगों को फिर से लाया जाए. स्थानीय पुलिस थाने के सभी कर्मचारियों को तुरंत बदला जाए. उनकी जगह पर सभी समुदाय और जाति के पुलिसकर्मियों को भर्ती किया जाए. मस्जिद की मरम्मत करते वक्त स्थानीय लोगों को भरोसे में लिया जाए. तत्कालीन कलेक्टर, पुलिस अधीक्षक, अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक, एसएचओ, सीओ के अलावा तहसीलदार की भूमिका की भी न्यायिक जांच करवाई जाए तथा अगले सात दिनों के अंदर मामले की फाइल सीबीआई को सौंपी जाए.
उधर प्रशासन के आला अफसरों का कहना है कि पुलिस की गोली से कोई नहीं मरा. राजस्थान सरकार भी गोपालगढ़ में मारे गए आठ लोगों की मौत के कारणों को लेकर अनजान बनी हुई है.
राजस्थान के मुख्य सचिव एस अहमद का कहना है कि अभी तक दो मृतकों का पोस्टमार्टम किया गया है, जिनमें एक की मौत धारदार हथियार से और एक की मौत विस्फोटक या छर्रे लगने से हुई है. अन्य छह लोगों की मौत का कारण ज्ञात नहीं हो सका है.
अहमद ने मीडिया से बात करते हुए कहा, पुलिस की गोली चलती तो बुलेट मिलती, जबकि एक मृतक के शरीर से छर्रे निकले हैं. छर्रे देशी कट्टे या अन्य हथियार से ही लगे हैं, ऐसे में यह पुलिस की गोली से हुई मौत नहीं हो सकती. दो शवों का पोस्टमार्टम किया जा चुका है लेकिन अभी अन्य छह मृतकों का पोस्टमार्टम बाकी है.
हालांकि, राज्य की सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी इस मामले में राज्य के मुख्य सचिव और डीजीपी के बयान से सहमत नहीं है. कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष डॉ. चंद्रभान कहते हैं कि गोपालगढ़ की घटना में पुलिस प्रशासन की कमियां जरूर रही हैं.
उन्होंने कहा कि यदि पुलिस प्रशासन पहले से सचेत होता तो इस घटना को टाला जा सकता था इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि पुलिस और प्रशासन के स्तर पर कोई कमी नहीं रही.

Recent Posts

  • Featured

Palestinian Writers Have Long Explored Horrors Of Amputation

Words fail as 2,000-pound bombs shred lives and limbs. The sheer number of children killed in Israeli attacks on Gaza…

9 hours ago
  • Featured

MCC Turned Into ‘Modi Code Of Conduct’ Under BJP Rule: Mamata

On Tuesday, May 7, West Bengal Chief Minister Mamata Banerjee alleged that the Election Commission had turned a blind eye…

12 hours ago
  • Featured

How Bioengineering Saved A Himalayan Road From Floods

On 14 August 2023, heavy rainfall in North India triggered flash floods and landslides, devastating the region. Kishori Lal, the…

12 hours ago
  • Featured

Media Coverage Of Campus Protests Focuses On The Spectacle

Protest movements can look very different depending on where you stand, both literally and figuratively. For protesters, demonstrations are usually…

1 day ago
  • Featured

MDBs Must Prioritize Clean & Community-Led Energy Projects

Multilateral Development Banks (MDBs), governments, and corporations across 160 countries consider or approve more than one investment per day in…

1 day ago
  • Featured

How News Gatherers Can Respond To Social Media Challenge

Print and electronic media are coping admirably with the upheavals being wrought by social media. When 29-year-old YouTuber Dhruv Rathee…

1 day ago

This website uses cookies.