ब्रह्मोस, ब्रदरहुड, बैंड और बुद्धिजीवियों का क्लब

दिल्ली में प्रेस क्लब है. मैं भी उसका एक सदस्य हूं. आए दिन आना-जाना होता है. पिछले बरस का एक वाकया याद आता है. बांग्लादेश से कुछ पत्रकारों का एक प्रतिनिधिमंडल प्रेस क्लब में शाम को आराम और दोस्ती के कुछ क्षण बिताने आया था. वे प्रेस क्लब के प्रांगण में उन्हीं दिनों लगाए गए ब्रह्मोस मिसाइल के मॉडल को देखकर आश्चर्यचकित थे. ब्रह्मोस को ऐसे सजाकर रखा गया है जैसा कि इंडिया गेट पर अमर जवान ज्योति और जलियावाला बाग में अविरत जलती मशाल को भी नहीं.
मुझे और मेरे कई दोस्तों को लगातार यह मिसाइल का मॉडल नागवार गुज़रता रहा. पर कहा गया कि दुधारू गाय की लात है. जिसने टुकड़ा फेंका है, उसकी टोपी तो पहननी ही पड़ेगी. बिना सिर ढके तो बंग्ला साहेब में लंगर नहीं मिलता फिर यहाँ तो ब्रह्मोस वालों ने लाखों दिए हैं. अच्छा जी, तो लाखों लेकर कुछ भी करवाने के लिए प्रेस क्लब तैयार है. बीच में एक जीबीएम में इसकी भी चर्चा हो रही थी कि यहाँ कैफे कॉफी डे खुले और लोग उसमें बैठकर कॉफी पिएं.
मैं कल्पना करके ही थर्रा जाता हूं कि कहीं विजय माल्या ने प्रेस क्लब को दो-तीन साल के लिए मुफ्त में शराब दे दी तो उसकी मूर्ति बीचोंबीच प्राण प्रतिष्ठित कर दी जाएगी. या मुकेश अंबानी अपने बाप का चौखटा वहाँ लगवा सकते हैं. बदले में प्रेस क्लब की इमारत कॉस्टीट्यूशन क्लब जैसी शानदार बनवा सकते हैं. इस दौरान किसी ने एक रात ब्रह्मोस को उखाड़ फेंका. किसने… अरे किसी ने. न जाने किसने. पर जिस किसी ने… साधुवाद का पात्र है. मेरा विरोध बहुत मुखर रहता था इस बाबत इसलिए आरोप मुझपर लगे. ऐसे वीरतापूर्ण आरोपों का स्वागत करता हूं. सनद रहे कि कुछ ही घंटों में ब्रह्मोस को फिर से प्राण प्रतिष्ठित कर दिया गया था और उसके लगने के पीछे जो रक्षा मामलों के पत्रकार सक्रिय थे, वे ऐसे रो रहे थे जैसे वो उनका बच्चा हो और उसे कंस ने मार दिया हो. उनके प्रति सहानुभूति.
आज की बात का सिलसिला क्यों छिड़ा, अब इसपर आय़ा जाए. हुआ यूं कि पिछले हफ्ते की एक शाम प्रेस क्लब में पाकिस्तान का बैंड- लाल अपनी प्रस्तुति दे रहा था. प्रगतिशील सोच का यह बैंड फ़ैज़ और हबीब जालिब जैसे कवियों को गाता है. इसकी प्रस्तुति पर सैकड़ों जुटे. सब झूमे. लाल सलाम का नारा कई बार गूंजा. पर जब जब लाल बैंड के मंच की ओर नज़र गई, मुंह चिढ़ाता हुआ ब्रह्मोस दिखाई दिया.
क्या हम पत्रकारिता को एकदम ग़ैर-ज़िम्मेदार और बिकाऊ दुकान बनाने पर तुले हैं. यह काम अखबारों के लाला लोग बदस्तूर कर ही रहे हैं. कुछ पत्रकार इसकी पीड़ा को समझते हैं और गाहे-बगाहे कहते हैं. पर यह क्या कि हरी घास के गलीचे पर ग्रेनाइट जड़वाने के लिए हमने प्रेस क्लब में मिसाइल खड़ी कर ली. जैसे रक्षा मंत्रालय का मुख्यालय हो. ब्रह्मोस कंपनी का हेडक्वार्टर हो और रक्षा सौदों के लिए प्रोडक्ट डिस्प्ले किया जा रहा हो.
क्या एक बार भी ख्याल नहीं आया कि हम वहाँ कलम लगाएं, किसी किताब का मॉडल लगाएं. अमन का पैगाम देती कोई कलाकृति लगाएं. रूपयों के चेक के आगे लार टपकाते हुए अपनी संवेदनाओं को और निरपेक्षता, निष्पक्षता को भीख के गूदड़ में छिपा देना कहां की समझदारी है. क्या ज़रा भी शर्म नहीं आती जब यह दिखता है कि दक्षिण एशिया और दुनिया के बाकी हिस्सों के पत्रकार उस क्लब के खुले दालान में बैठकर बातें करते हैं जहाँ ब्रह्मोस का नमूना सजाकर रखा गया है. इस दोगलेपन को क्या कहा जाए कि आप लाल बैंड को न्यौता भी देंगे और ब्रह्मोस को भी चमकाते रहेंगे.
दरअसल, पत्रकारिता का यही ताज़ा चलन है. दोनों पैरों में दो अलग-अलग रंगों का जूता पहनो और दोनों को चमकाते रहो. रीढ़ की हड्डी को घर में अपनी हेकड़ी के लिए रखो और बाकी वक़्त नॉन कॉर्डेट रहो.
अफसोस, कि हम उस खेल को अनदेखा करते चल रहे हैं जिसमें इस तरह के उपकारों के पीछे की कथा छिपी है. कैसे कोई रक्षा मामलों का पत्रकार रक्षा मंत्रालय, सेना और आयुध कंपनियों का पीआरओ बन जाता है. अपनी इस दलाली को वो राष्ट्रवाद की वारनिस लगाकर चमकाता है और फिर हैलीकॉप्टर में घूमने के, ग्लेशियरों पर चढ़ने के, आर्मी ऑफीसर्स मेस में दारू पीने के, आर्मी का बैंड बजवाने के और उनके गुणगान गाने के काम में लग जाता है. निजी और छोटे-बड़े स्वार्थों की यह महात्वाकांक्षा पत्रकारिता की चौड़ी थाती को कोठे पर बैठा देती है.
इनका मुजरा चालू है. वही दरोगा हैं, वही वकील हैं और वही अपराधी भी. किसी को कुछ कहने का हक़ नहीं. पत्रकारिता का ज्ञान न तो हैंगओवर से पहले था और न हैंगओवर के बाद में है.

Recent Posts

  • Featured

Caught Between Laws And Loss

Indigenous families living in Mumbai’s forested belt fear the possibility of eviction after the Forest Department served notices labelling their…

6 hours ago
  • Featured

Is AI Revolutionising The Fight Against Cancer And Diabetes?

Artificial intelligence (AI) could be revolutionising how scientists study cancer and Type 1 diabetes and discover ways to fight them.…

6 hours ago
  • Featured

In Gaza, Israel Faces Formal Genocide Claims From UN-Backed Experts

A panel of independent experts commissioned by the United Nations Human Rights Council (UNHRC) has released a detailed report accusing…

23 hours ago
  • Featured

Human-Animal Conflict: Intensifying Efforts To Tackle The Threat

Kerala has declared human-wildlife conflict a state-specific disaster, with compensation mechanisms, draft legislation, and multiple forest department missions underway. Experts…

1 day ago
  • Featured

When Compassion For Tigers Means Letting Go

The recent capture of Chhota Matka, a famous tiger in Tadoba, reignites the debate over whether unwell wild tigers should…

1 day ago
  • Featured

NHRC Notice To Assam Police Over Assault On Journalist In Lumding

The National Human Rights Commission (NHRC) has taken suo motu cognisance of a disturbing incident involving the assault of a…

2 days ago

This website uses cookies.