बिहार में न न्याय, न विकास: दीपंकर भट्टाचार्य

बथानी टोला जनसंहार की 16 वीं बरसी पर आयोजित ‘न्याय रैली’ को संबोधित करते हुए भाकपा-माले के राष्ट्रीय महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने कहा कि सोलह साल पहले दिन-दहाड़े जिस वक्त गरीब-मेहनतकशों की आवाज को हमेशा के लिए खामोश करने की नीयत से बथानी जनसंहार किया गया था, उसी वक्त न्याय की एक बड़ी लड़ाई के लिए बिहार के मजदूर-किसान और तमाम लोकतंत्रपसंद-न्यायपसंद लोग संकल्प ले रहे हैं.

दीपंकर ने कहा कि लालू राज में जनसंहार हुआ और नीतीश राज में न्यायिक जनसंहार हुआ. नीतीश की जो सरकार दलितों-अल्पसंख्यकों, पिछड़ों को न्याय देने के वादे के साथ सत्ता में आई थी, उसने दूसरी बार सरकार बनते ही दर्जनों जनसंहारों के अभियुक्त ब्रह्मेश्वर को जमानत दे दी और फिर बथानी जनसंहार के तमाम अभियुक्तों को हाईकोर्ट से रिहाई हुई. इसलिए भाकपा-माले इस सरकार पर भरोसा करने के बजाए खुद सुप्रीम कोर्ट गई है, जिसके दबाव में सरकार को भी सुप्रीम कोर्ट जाना पड़ा है. दीपंकर ने कहा कि भाकपा-माले को न्यायालयों से भी ज्यादा भरोसा बिहार के गरीब मेहनतकश जनता के संघर्षों पर है, इसीलिए कानूनी लड़ाई के साथ ही जनसंघर्षों के जरिए न्याय की लड़ाई को तेज किया जा रहा है.
दीपंकर ने कहा कि बथानी जनसंहार के बाद एक से बढ़कर एक जनसंहार हुए, उस वक्त लालू क्या कर रहे थे, यह जनता को पता है. पर आज नीतीश सरकार क्या कर रही है, इसे भी लोग देख रहे हैं. भैयाराम यादव की हत्या हो या छोटू कुशवाहा की हत्या- दोनों में सुनील पांडेय और रणविजय शर्मा जैसे सत्ताधारी विधायकों का नाम आ रहा है. ये राजनीतिक हत्याएं हैं. जब 2 मई को छोटू कुशवाहा की हत्या की सीबीआई जांच की मांग को लेकर औरंगाबाद में प्रदर्शन हुआ तो ठीक फारबिसगंज की तर्ज पर पुलिस ने महिलाओं, नौजवानों और आंदोलन के नेताओं को, यहां तक कि दो बार विधायक रह चुके चर्चित माले नेता का. राजाराम सिंह की एसपी ने खुद पिटाई की, लेकिन जब रणवीर सेना के संस्थापक की हत्या के बाद 2 जून को पटना में आगजनी और तोड़फोड़ की गई तो पूरी हुकूमत ही जैसे गायब हो गई.
माले महासचिव ने कहा कि बिहार को गुजरात बनाने की साजिश थी, लेकिन यह बिहार की जनता की ताकत है, जिसके कारण वे बिहार को गुजरात नहीं बना पाये. उन्होंने कहा कि आज दसियों हजार लोग आरा आए हैं, पर कहीं कोई आतंक नहीं है, लेकिन 1-2 जून को मुट्ठी भर लोग सत्ता की शह पर आरा से पटना तक आतंक मचाते रहे.
दीपंकर ने कहा कि सरकार ने अमीरदास आयोग को भंग करके रणवीर सेना के राजनीतिक संरक्षकों को बचाने की कोशिश की थी, लेकिन ब्रह्मेश्वर की हत्या के बाद सत्ताधारी गठबंधन के विधायकों और नेताओं से लेकर शासकवर्गीय विपक्षी पार्टियों के बीच मातमपुर्सी की जो होड़ लगी, उससे यह खुलासा हो गया कि कौन लोग हत्यारों को संरक्षण देते रहे हैं. उन्होंने कहा कि संकट के समय ही पता चलता है कि कौन कहां है. छोटू कुशवाहा राजद से जुड़े हुए थे, लेकिन लालू ने उनकी हत्या की सीबीआई जांच की मांग नहीं की, पर ब्रह्मेश्वर की हत्या के तुरत बाद उन्होंने सीबीआई जांच की मांग कर दी. माले महासचिव ने कहा कि जब भैयाराम यादव, छोटू कुशवाहा और फारबिसगंज में अल्पसंख्यकों की हत्या की सीबीआई जांच की मांग को लेकर माले का प्रतिनिधिमंडल नीतीश कुमार से मिला था तो उन्होंने यह कहकर सीबीआई जांच कराने से मना कर दिया कि सीबीआई जांच की मांग फैशन बन गया है, लेकिन ब्रह्मेश्वर की हत्या की सीबीआई जांच की अनुशंसा करने में उन्होंने पूरी तत्परता दिखाई.
दीपंकर ने कहा कि यह सरकार सिर्फ कलम थमाकर दलितों को विकास का सपना दिखाती है, लेकिन जब उन छात्रों पर हमला हुआ और उनके कमरे और सामान जलाए गए, तो इस सरकार ने दोषियों के विरुद्ध न कार्रवाई की और न ही छात्रों को कोई मुआवजा दिया, पर ब्रह्मेश्वर के श्राद्ध में गैस सिलेंडर फट गए तो उसके लिए आठ लाख मुआवजा दिया. इससे यह साबित होता है कि यह सरकार सामंती शक्तियों के आगे झुकी हुई सरकार है. सरकार और जिन शासकवर्गीय पार्टियों ने दलित छात्रावास जलाए जाने के खिलाफ कुछ नहीं किया, वे दरअसल दलितों का वोट लो और चोट दो की नीति का अनुसरण कर रही हैं.
दीपंकर ने कहा कि इस वक्त बिहार में एक बड़ी लड़ाई की जरूरत है और जब-जब बिहार में बड़ी लड़ाई की जरूरत हुई है तो भोजपुर खड़ा हुआ है. ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ कुंवर सिंह के संग्राम से लेकर 1942 के लसाढ़ी के शहीदों तक और साठ-सत्तर के दशक में सामंतवाद के विरुद्ध मास्टर जगदीश, रामेश्वर यादव, बुटन मुसहर, का. रामनरेश राम, का. जौहर के संघर्ष की जो विरासत है, माले उस विरासत की वाहक है. जिस लाल झंडे को खत्म करने के लिए भोजपुर की धरती को बच्चों, महिलाओं और गरीबों, दलितों, अल्पसंख्यकों के खून से लाल किया गया, उस लाल झंडे के तले गरीबों ने वोट देने का अधिकार हासिल किया और उसी के जरिए सामाजिक न्याय, धर्मनिरपेक्षता और विकास की लड़ाई को आगे बढ़ाया जा सकता है. माले का झंडा गरीबों-मेहनतकशों, किसान-मजदूरों की एकता का झंडा है, माले का झंडा न्याय का झंडा है. इस झंडे के तले सारा दमन और हिंसा झेलते हुए भी भोजपुर की बहादुर जनता ने अपना संघर्ष जारी रखा है. भोजपुर ने झुकना नहीं सिखाया है, बल्कि बहादुरी से मुकाबला करना सिखाया है. इसी कारण आज बिहार में न्याय, लोकतंत्र और विकास की एक बड़ी लड़ाई छेड़ने के लिए पूरे बिहार के न्यायपसंद लोग भोजपुर आए हैं.
दीपंकर ने कहा कि नरेंद्र मोदी के खिलाफ बयानबाजी करके नीतीश कुमार बिहार की जनता को गुमराह कर रहे हैं, जबकि उसी मोदी की पार्टी के साथ मिलकर उनकी सरकार चल रही है, जो सरकार मिथिलांचल में अल्पसंख्यकों नौजवानों को आतंकी बताने की साजिश में संलिप्त है. माले महासचिव ने कहा कि आज 74 से भी बड़े आंदोलन की जरूरत है. लोहिया, जेपी, कर्पूरी ठाकुर और जगदेव प्रसाद का यह सपना नहीं था कि उनका नाम लेने वाले सामंती-सांप्रदायिक शक्तियों की गोद में बैठ जाएं. आज बथानी टोला, अमौसी, फारबिसगंज, औरंगाबाद की आवाज एक साथ गूंज रही है. आने वाले दिनों में जहां भी सामंती जुल्म, सांप्रदायिक हिंसा, पुलिस जुल्म, किसानों की जमीन से बेदखली तथा नौकरशाहों और जनप्रतिनिधियों द्वारा लूट की जाएगी, वहां जोरदार लड़ाई होगी और लड़ते हुए जनता आगे बढ़ेगी.
जनसंहार और हिंसा के शिकार लोगों ने भी न्याय की मांग की
न्याय रैली को संबोधित दिवंगत छोटू कुशवाहा के ससुर उमेश कुशवाहा ने कहा कि वे अपने छोटू कुशवाहा की हत्या के खिलाफ न्याय की आकांक्षा को लेकर इस रैली में आए हैं, क्योंकि माले ही है जो उनके दामाद की राजनीतिक हत्या की साजिश के खिलाफ लगातार लड़ रही है, उन्हें सरकार पर कोई भरोसा नहीं रह गया है. जिन सामंती शक्तियों ने जगदेव प्रसाद जैसे नेता की हत्या की थी, उन्हीं सामंती शक्तियों ने आज छोटू कुशवाहा की हत्या की है. उन्होंने नीतीश कुमार के खिलाफ नारे भी लगाए.
शहीद भैयाराम यादव की पत्नी उषा यादव ने कहा कि उनके पति की हत्या के खिलाफ संघर्ष जारी है, जिन लोगों ने उनकी हत्या की है, जनता उन्हें जरूर दंडित करेगी.
बथानी जनसंहार के गवाह नईमुद्दीन, जिनके छह परिजन उस जनसंहार में मारे गए थे, उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट के फैसले के बाद भी न्याय की लड़ाई थम नहीं गई है. यह लड़ाई अब सुप्रीम कोर्ट में चली गई है. बिहार की सरकारें और जो पार्टियों हत्यारों के पक्ष में खड़ी हैं, वे जनता के सवालों और आक्रोश से बच नहीं सकतीं.
औरंगाबाद जेल से पूर्व विधायक राजाराम सिंह और लालदेव यादव का संदेश पढ़ा गया
छोटू कुशवाहा की हत्या के विरोध करने के कारण पुलिस दमन का शिकार बनने वाले पूर्व विधायक और अखिल भारतीय किसान महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजाराम सिंह तथा लालदेव यादव द्वारा जेल से भेजा गया संदेश भी रैली में पढ़ा गया. राजाराम सिंह की कामना है कि भोजपुर की महान धरती से गरीबों के लिए न्याय का विकल्प सामने आए तथा भ्रष्ट सामंती-सांप्रदायिक भाजपा-जदयू शासन को उखाड़ फेंकने का आगाज हो. उनके अनुसार न्याय का यह संघर्ष सामंतवाद और साम्राज्यवाद के खिलाफ गरीबों, दलितों, पिछड़ों और प्रगतिशील लोगों का संघर्ष है.
लालदेव यादव ने औरंगाबाद में संघर्ष से भाग जाने और ब्रह्मेश्वर की सीबीआई जांच की मांग करने के लिए लालू की आलोचना की और माले के झंडे तले चल रहे न्याय के संघर्ष की सफलता की कामना की.
माले के कई राष्ट्रीय नेताओं ने रैली में शिरकत की
न्याय रैली में माले पोलित ब्यूरो सदस्य स्वदेश भट्टाचार्य, रामजी राय, कविता कृष्णन, राजाराम, रामजतन शर्मा, राज्य सचिव कुणाल समेत कई राष्ट्रीय नेता भी मौजूद थे. सभा को संबोधित करते हुए खेमस के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व सांसद रामेश्वर प्रसाद ने कहा कि यह वक्त है जब पहचान लेना चाहिए कि कौन सी राजनीतिक ताकतें हैं, जो गरीबों, दलितों, खेत मजदूरों और मेहनतकश किसानों के साथ हैं. जिन लोगों ने बेगुनाह गरीबों, दलितों, अल्पसंख्यकों की हत्या की उनका पक्ष लेने वाले कभी भी बिहार का विकास नहीं करेंगे, बल्कि उन सामंती ताकतों की मदद से जनता का खजाना लूटने की राजनीति करेंगे, इसलिए आज जरूरत है कि इनके खिलाफ संघर्ष तेज हो.
माले केंद्रीय कमेटी सदस्य केडी यादव ने कहा कि नीतीश कुमार खुलकर अपराधियों को संरक्षण दे रहे हैं, जननेताओं की हत्या के संबंध में सीबीआई जांच की मांग करने पर उन्होंने मना कर दिया. वे बिहार को पीछे धकेलने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन जिस तरह सामंती हिंसा के खिलाफ संघर्ष करते हुए बिहार की जनता आगे बढ़ रही है, उसे देखते हुए यही लगता है कि लालू की तरह उनकी सरकार को भी जाना होगा.
माले की केंद्रीय कमेटी सदस्य और एपवा नेता सरोज चैबे ने कहा कि बिहार में महिलाओं का उत्पीड़न और उनकी असुरक्षा बढ़ी है. बथानी से लेकर फारबिसगंज तक महिलाएं सामंती और पुलिसिया हिंसा का शिकार बनी हैं. नीतीश सरकार की पुलिस अपनी मांगों को लेकर प्रदर्शन करने वाली महिलाओं को दौड़ा-दौड़ाकर पीट रही है. उन्होंने कहा कि सामंतवादी और सांप्रदायिक शक्तियों से समझौता करने वाली कोई सरकार महिलाओं की हितैषी नहीं हो सकती. सरकार जितना ही महिला विकास का ढोल पीट रही है, उतनी ही महिला उत्पीड़न की घटनाएं सामने आ रही हैं. बथानी की मृत महिलाओं के लिए न्याय का जो संघर्ष है, वह बिहार की सारी महिलाओं के अधिकार से जुड़ा हुआ संघर्ष है.
भाकपा-माले राज्य कमेटी सदस्य सुदामा प्रसाद ने कहा कि बथानी टोला जनसंहार सामंती घृणा और नृशंसता का उदाहरण था. जिन लोगों ने गर्भवती महिलाओं का पेट फाड़कर हत्या की थी, मासूम बच्चों को तलवारों से काट डाला था, उन्हें बचाने वाले किसी भी स्थिति में जनपक्षधर नहीं हो सकते. ऐसे हत्यारों और उनके संरक्षकों को सजा मिलनी ही चाहिए. जनसभा का संचालन खेमस के महासचिव धीरेंद्र झा ने किया तथा अध्यक्षता खेमस के जिला अध्यक्ष सिद्धनाथ राम ने की.
74 के आंदोलन और सिविल सोसाइटी मूवमेंट से जुड़े लोगों ने माले के संघर्ष से एकजुटता जाहिर की. 74 की आंदोलन से जुड़ी चर्चित महिला नेता कंचनबाला ने मौजूदा राजनीतिक परिस्थितियों की चर्चा करते हुए माले के संघर्ष के प्रति अपनी एकजुटता जाहिर की. सिविल सोसाइटी आंदोलन से जुड़े नैय्यर फातमी ने भी न्याय और लोकतंत्र के संघर्ष का समर्थन किया.
बथानी शहीद स्मारक पर श्रद्धांजलि दी गई
रैली से पहले स्वदेश भट्टाचार्य, अरुण सिंह, राजाराम और कामता प्रसाद सिंह के नेतृत्व में बथानी टोला के शहीद स्मारक पर पुष्पअर्पण करके उन्हें श्रद्धांजलि दी गई. रैली स्थल भी दो मिनट का मौन रखकर शहीदों को श्रद्धांजलि दी गई. हिरावल और युवानीति के संस्कृतिकर्मियों ने शहीद गीत पेश किया.
न्याय रैली का संकल्प
‘भोजपुर की क्रांतिकारी धरती, जिसने हर मौके पर अन्याय, लूट और शोषण-उत्पीड़न के खिलाफ बड़े-बड़े जनसंघर्षों को जन्म दिया, उसी धरती पर अपने महान शहीदों से प्रेरणा लेते हुए हम बिहार में सामंती-सांप्रदायिक हिंसा की राजनीति और जनसंहारों के शिकार तमाम लोगों को न्याय दिलाने के अंतिम दम तक संघर्ष चलाने तथा इस राज्य में कायम अन्याय, अत्याचार, लूट, दमन, भ्रष्टाचार और अपराधतंत्र को खत्म करके लोकतंत्र, न्याय और विकास के लिए निर्णायक संघर्ष चलाने का संकल्प लेते हैं.’
जनगीतों में गूंजी न्याय की मांग
माले की इस रैली में जनगायक निर्मोही और हिरावल-युवानीति के संस्कृतिकर्मियों के अतिरिक्त विभिन्न इलाकों से आए कई गायकों ने अपने गीतों के जरिए भी न्याय की मांग को बुलंद किया.
माले की रैली में आए गरीब-मेहनतकशों ने अनुशासन का उदाहरण पेश किया
माले की रैली में आए गरीब मेहनतकशों ने अनुशासन का अभूतपूर्व उदाहरण पेश किया. कहीं से किसी अप्रिय घटना की सूचना नहीं आई. दसियों हजार लोग रात से ही कतारबद्ध होकर सड़क और रेलमार्ग से आते रहे और मैदान में बैठकर नेताओं का भाषण सुना और बीच-बीच में उत्साह के साथ तालियां भी बजाते रहे.
प्रशासन की लापरवाही से एक व्यक्ति की मौत हुई
माले की रैली में हजारों लोगों के जुटने की सूचना होने के बावजूद प्रशासन ने पहले से चिकित्सा की कोई व्यवस्था नहीं की थी, जिसके कारण तरारी प्रखंड के पटखौली गांव के 65 वर्षीय राजेश्वर ठाकुर की आकस्मिक मौत हो गई. भाकपा-माले ने पार्टी और न्याय की लड़ाई के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को सलाम करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि दी है और कहा है कि यही अगर किसी सत्ताधारी पार्टी की रैली होती, तो प्रशासन उनकी सेवा में हाजिर रहती, लेकिन उसने माले की रैली के लिए कोई व्यवस्था नहीं की, जिसके कारण राजेश्वर जी की अचानक मृत्यु हुई.

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