बाबा राहुल ‘विवेकानंद’ गांधी के प्रति…

केवल मायावती को ही नहीं, मुझे भी इस बयान पर हंसी आती है. एक कच्चा और कमज़ोर राजकुमार अचानक से विवेकानंद हो गया है. फूलपुर पहुंचा और उत्तर प्रदेश के लोगों से कहा कि उठो, जागो. अपराधियों को राजनीति से बाहर करो. युवा वर्ग कबतक भीख मांगेगा. राहुल जी, मैं समझ सकता हूं कि आपके लिए भाषण की यह स्क्रिप्ट एकदम नई है पर प्रदेश के, देश के लोग इस तरह के भाषणों के प्रति निश्चेष्ट और निर्पेक्ष हो चुके हैं. इनको सुनकर अब न तो बांछें खिलती हैं और न रगों में खून के साथ-साथ विश्वास डोलता है. लोग मुस्कराते हैं. गाली निकालते हैं और आगे बढ़ जाते हैं. हम अब ऐसे भाषणों को अंगूठी और शिलाजीत बेंचने वालों के बहलावे से ज़्यादा कुछ नहीं समझते.
आपका यह भाषण उत्तर प्रदेश में आपकी पार्टी के चुनावी बिगुल का मंगलाचरण है. चुनाव जीभ लपलपा रहा है. पार्टियां गोटियां फेंट रही हैं. खिलाड़ी सांप-सीढ़ी की बाज़ियों को ज्योतिषी और खगोलशास्त्रियों की तरह ताड़ रहे हैं. सूबा ऊर्जावान हुआ जाता है. सबके निहितों की पंजीरी इसी दौरान बंटनी शुरू होती है. समीकरण रेत की ढेरियों की तरह अपनी पीठ का कूबड़ बदलते नज़र आने लगे हैं. कुछ सदा सुहागन शैली वाले राजनीतिक खेमे बहेलिए की तरह सही वक्त की टोह में बैठे हैं. इन सबके बीच राहुल बाबा बोले हैं. जागो. जागो. जागो.
पर जागरण की इस कथित महासिंहनाद के गुरुत्व को समझते चलना चाहिए. राहुल बाबा के लिए उत्तर प्रदेश कोई बड़े चमत्कार की रणभूमि बनने वाला नहीं नज़र आ रहा. रास्ता बहुत कठिन है और दो दशकों से धूल छान रही पार्टी से ज़्यादा राहुल की अपनी प्रतिष्ठा दांव पर लगी है. राहुल के कुछ पूर्व अनुभव अच्छे नहीं हैं. दूसरे राज्यों में उनकी रणभेरी की हवा निकलते लोगों ने देखी है. राहुल के रोड शो और रैलियां पंचर टायर साबित हुई हैं जिनसे पार्टी कहीं भी पहुंचती नहीं मिली. ऐसा ही कुछ उत्तर प्रदेश के मामले में भी है. रास्ता कठिन है और घोड़ा नया.
जागिए आप, क्योंकि भट्टा परसौल से ज़्यादा बड़ा मुद्दा महंगाई साबित होगा. डीजल पैट्रोल के दाम, दालें और आटा, सबने लोगों को बहुत मारा है. लोग बदला लेंगे और आक्रामक होकर लेंगे. राज्य के सिर से ज़्यादा इनका ठीकरा केंद्र पर फूटेगा और केंद्र में आपकी सरकार है. जागिए आप, क्योंकि भ्रष्टाचार के खिलाफ चले अभियान में हवा राज्य से ज़्यादा केंद्र सरकार के खिलाफ बही है. जागिए आप, क्योंकि लोगों को इस बात की आस कम ही है कि आप प्रदेश में कोई चमत्कार करके सत्ता के लिए आवश्यक बहुमत पा लेंगे. ऐसे में वोट कम ही लोग बर्बाद करना चाहेंगे. जागिए आप, क्योंकि लड़ाई के लिए ईमानदार और समर्पित, कर्मठ, मेहनती और ज़मीनी कार्यकर्ताओं की ज़रूरत होती है. इनसे नाता तोड़े आपको दो दशक हो चुके हैं. आपके इर्द-गिर्द है दलालों, चापलूसों, तारीफबाज़ो, चारणों, मौकापरस्तों की फौज… जो न तो आपको सच देखने देती है और न ही सच्चे लोगों से मिलने देती है. नेतृत्व के तने के नीचे की खोखली सतह लेकर आप खुद भी बहुत देर खड़े रह पाने की स्थिति में नहीं हैं.
राज्य की राजनीति और सत्ता के आपराधिक चरित्र की दुहाई से राहुल ने अपने चुनावी प्रचार की शुरुआत की. अच्छी बात है. जिसने भी लिखा है, अच्छा लिखा है. पर केंद्र में सत्तारूढ़ सरकार के प्रिंस को क्या अपनी सरकार के द्वारा मानवाधिकार उल्लंघन और नागरिक अधिकारों के प्रति बरती गई बर्बरता नहीं दिखाई देती. क्या वो भूल गए कि आपराधिक तत्वों को राजनीति में लाने वालों में और राजनीतिक व्यक्तियों की जीवन शैली को आरामतलब, लग्ज़री, चमक-दमक और अति अभिजात्य बनाने में उनकी पार्टी की भूमिका सर्वाधिक रही है. इसके लिए उनकी पार्टी क्या प्रयास कर रही है और कितनी गंभीर है, इस बारे में क्या वो सोचते हैं.
चलिए, माना कि आप सबसे कम अपराधियों को टिकट देने का रिकॉर्ड कायम करने की दिली हसरत रखते हैं. चलिए, माना कि आप साफ और ईमानदार छवि वालों को भी टिकट देने की कोशिश करेंगे. पर साफ छवि तो मनमोहन सिंह की भी है और पी चिदंबरम की भी. नक्सली हिंसा के दमन के नाम पर और संसाधनों पर कब्ज़े के नाम पर आपकी सरकार ने और इन दो महान राजनीतिज्ञों ने पिछले कुछ बरसों में जो किया है, उससे शर्मनाक और आपराधिक और कुछ हो सकता है क्या. क्या राजनीति के आपराधिक चरित्र की पहचान केवल राइफलधारी दबंग और माफिया नेता हैं या कॉर्पोरेट शैली का एक बड़ा, व्यापक और अधिक प्रभावशाली अपराधी भी इस श्रेणी में आता है. उसके लिए क्या सोचते हैं आप राहुल जी. राजनीति के अपराधीकरण की परिभाषा को, उसके पोषकों को, उसके नियंताओं को, उसके चेहरों को, उसके वर्चस्व को पहचानने का प्रयास कीजिए और फिर मैदान में नारे उछालिए.
रही बात युवाओं के भीख मांगने की तो इसके लिए आप ज़रा अपने गरेबां में झांककर देखें. मनमोहन सिंह के आर्थिक उदारीकरण के मॉडल ने इस देश में सबसे ज़्यादा बेरोज़गारी और आर्थिक अराजकता फैलाई है. पश्चिम के पिट्ठुओं ने रोज़गार पैदा करने की संभावनाओं के मुहाने पर बहुराष्ट्रीय कंपनियों का कंक्रीट उगल दिया है. रोज़गार गारंटी की 100 दिन की आस ने आपको एक बार सत्ता में वापस ज़रूर भेजा है पर उसकी भी स्थिति बहुत बेहतर नहीं रही है. राष्ट्रीय सलाहकार परिषद के बार-बार कहने पर भी यूपीए-2 ने न्यूनतम मजदूरी दिए जाने प्रस्ताव को लगातार नकारा है. आर्थिक नीतियों के कारण देश रोज़गार सृजन के स्तर पर और खोखला, कमज़ोर, बांझ होता गया है. पूरा देश आपके द्वारा दिए गए प्रधानमंत्री की वजह से भीख मांग रहा है. मायावती को कोसकर बहुत कुछ हासिल नहीं होगा क्योंकि लोग आपकी पार्टी की भूमिका भी समझते हैं और उससे परिचित हैं.
देश में भावी प्रधानमंत्री का चेहरा बनाते वक्त आपकी पार्टी सबसे ज़्यादा आपका ही नाम लेती है पर यूपी में फेल हो गए तो किस मुंह से गद्दी पर बैठेंगे. इसलिए वक्त पर जाग जाइए. अभी बहुत देर नहीं हुई है. अपने आसपास से सत्ता लोलूपों का जमघट कम करें, दलालों को रास्ता दिखाए, रोज़गार सृजन के प्रयासों वाली आर्थिक नीति के बारे में सोचें, मनमोहन-मोंटेक-चिदंबरम जैसे आर्थिक सलाहकारों, विश्वकर्माओं, सारथियों से मुक्ति पाएं और इस कॉर्पोरेट अपराधियों की चंडाल चौकड़ी को चलता कीजिए. तभी आप नेता बन पाएंगे, तभी आपकी ललकार में ईमानदारी दिखेगी. तभी आप राजनीतिक भविष्य बचा पाएंगे.

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