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न्यायिक आयोग करे आतंकी घटनाओं की जांच

Sep 20, 2011 | Pratirodh Bureau

दिल्ली के बाटला हाउस एनकाउंटर की तीसरी बरसी पर आज़मगढ़ ज़िले के संजरपुर गांव में अन्याय और मानवाधिकार हनन के खिलाफ़ एक देशव्यापी अभियान छेड़ने का फैसला लिया गया.

 
इस गांव और ज़िले को जिस तरह तीन वर्ष पहले यानी 19 सितंबर, 2008 को दिल्ली पुलिस ने कथित मुठभेड़ के बाद आतंक की राजधानी कहलवाना शुरू कर दिया था, उस पूरी सोच और रवैये पर कड़े शब्दों में सोमवार को हुए कार्यक्रम में सवाल उठाए गए. 
 
बाटला हाउस एनकाउंटर के बाद देशभर में पैदा हुई स्थितियों को याद दिलाने और इस बहाने तेज़ हुए सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को लेकर एक बड़े कार्यक्रम का आयोजन संजरपुर में किया गया.
 
सांप्रदायिक ध्रुवीकरण और न्यायिक सांप्रदायिकता के खिलाफ आयोजित सम्मेलन को संबोधित करते हुए तहलका के संपादक रहे वरिष्ठ पत्रकार अजीत शाही ने कहा कि बाटला जैसे फर्जी मुठभेड़ों के खिलाफ देश के सेकुलर समाज और मुसलमानों को सड़क पर उतरना होगा.
 
उन्होंने कहा कि सरकार पिछले 10 साल की तमाम आतंकी घटनाओं में पकड़े गये लोगों को न्याय दिलाने के लिए एक न्यायिक आयोग का गठन करे. इस आयोग द्वारा जांच का काम सुप्रीम कोर्ट के किसी मौजूदा जज के नेतृत्व में होना चाहिए और एक साल के भीतर रिपोर्ट तैयार की जानी चाहिए.
 
इस मौके पर संजरपुर पहुंची, वर्ष 2004 में गुजरात पुलिस द्वारा फर्जी मुठभेड़ में मार दी गई इशरत जहां की मां, शमीमा कौसर ने कहा कि उनकी बेटी के साथ जो हुआ और लोगो के साथ न हो, इसके लिए यह लड़ाई हम लड़ रहे हैं. जिन लोगों ने हमारी बेटी को मारा है, उन्हें सजा दिलाने के लिए हम लोग लड़ रहे हैं. इस लड़ाई में हमें लोगों का साथ चाहिए.
 
इशरत के भाई अनवर इकबाल ने कहा कि सरकार की नाइंसाफी के खिलाफ हम सब एकजुट होकर इस लड़ाई को लड़ेंगे. 
 
पौने चार साल बाद उत्तराखंड की जेल से रिहा हुए मानवाधिकार नेता और पत्रकार प्रशांत राही ने कहा कि सरकार सिर्फ मुसलमानों को ही नहीं, बल्कि आदिवासियों और दलितों जैसे तमाम वंचित तबकों के लोगों को, जो अपने हक और अधिकार के लिए खड़े हो रहे हैं, उन्हें रोकने के लिए फर्जी एनकाउंटरों में लोगों को निशाना बना रही है.
 
उन्होंने कहा कि वंचित तबकों का मनोबल तोड़ने के लिए सरकारों ने पुलिस को खुली छूट दी है. बाटला हाउस प्रकरण इसी का उदाहरण है.
 
प्रशांत राही ने कहा कि देश संविधान के तहत चले इसके लिए जरूरी है कि एक तमाम वंचित तबके एकजुट होकर सड़कों पर उतरें.
 
वरिष्ठ माकपा नेता और पूर्व सांसद सुभाषिनी अली ने कहा कि आज जब मोदी अहमदाबाद में उपवास का ढोंग कर रहे हैं, ऐसे में इशरत जहां, जिसको मोदी की सरकार ने फर्जी मुठभेड़ में मार डाला, उनकी मां और भाई-बहन का संजरपुर में आना काफी महत्वपूर्ण है.
 
उन्होंने उम्मीद जताई कि उनकी न्याय की लड़ाई मोदी को सलाखों के पीछे पहुंचा देगी. बस जरूरत है कि न्याय की लड़ाई निरंतर चलती रहे.
 
पीयूसीएल के राष्ट्रीय सचिव चितरंजन सिंह ने कहा कि न्यायपालिका में बढ़ती सांप्रदायिकता देश की न्याय व्यवस्था के लिए खतरनाक है. उन्होंने कहा कि पीयूसीएल आतंकी घटनाओं की जांच के लिए न्यायिक आयोग की मांग को लेकर देशव्यापी अभियान चलाएगा.
 
इसी बात को आगे बढ़ाते हुए दिल्ली से आए मानवाधिकार नेता महताब आलम ने कहा कि
संजरपुर के इस आयोजन के साथ ही पूरे देश में ‘इंडिया अगेस्ट टेरिरिज्म’ का अभियान चलाया जाएगा जिसमें न्यायिक आयोग की मांग प्रमुख होगी. जिसकी जिम्मेदारी हर तरह की आतंकवादी घटनाओं, चाहे उसमें हिंदू बंद हों या मुसलमान, सबपर अपनी रिपोर्ट देनी होगी.
 
लखनऊ से आये अधिवक्ता मोहम्मद शोएब ने कहा कि जिस तरह आतंकवाद के सवाल पर
न्यायालयों ने बिना किसी ठोस सबूतों के लंबे समय तक मुदकमों को लटकाया है, उसमें आम आदमी के मानवाधिकारों का हनन हो रहा है.
 
आज़मगढ़ के ही तारिक़ कासिमी और खालिद मुजाहिद की गिरफ्तारी पर गठित आरडी निमेष जांच आयोग की रिपोर्ट को लटकाए रखा गया है और कोर्ट में लंबे समय से कोई गवाही नहीं
करवाई जा रही है. नतीजा यह है कि वे जेलों में घुटने के लिए मजबूर हैं, जहां उन्हें खराब खाना व पानी दिया जा रहा है, जिससे वे धीरे-धीरे मौत के मुंह में जा रहे हैं.
 
एसआर दारापुरी ने कहा कि पुलिस के सांप्रदायिक भेदभाव की वजह से ही न जाने कितने निर्दोष मुसलमान जेलों में बंद हैं. आज ज़रूरत है कि पुलिस महकमे के सांप्रदायिक हो चले स्वरूप के खिलाफ आवाज उठे.
 
बनारस से आए सुनील सहस्र बुद्धे ने कहा कि आतंकवाद की राजनीति व्यवस्था की देन है. इसलिए आतंकी घटनाओं पर सवाल उठाने के साथ पूरी व्यवस्था पर सवाल उठाना भी ज़रूरी है.
 
अयोध्या से आए महंत युगल किशोरशरण शास्त्री ने कहा कि हिंदू धर्म के नाम पर जो लोग राजनीति करते हैं, उनका खूफिया एजेंसियों और पुलिस के साथ वैचारिक एका है. इसको बेनकाब करना है. आतंकवाद की राजनीति के खिलाफ होने वाले किसी भी आंदोलन का जरूरी हिस्सा बनना चाहिए.
 
कार्यक्रम की अध्यक्षता हरिमंदिर पाण्डेय ने की. कार्यक्रम संचालन पीयूसीएल के प्रदेश मंत्री मसीरूद्दीन संजरी ने किया. सम्मेलन के शुरूआत में तमाम आतंकी घटनाओं में मारे गए लोगों की याद में एक मिनट का मौन रखा गया.
 
इस कार्यक्रम के बाद एक सात सूत्री प्रस्ताव भी पारित किया गया. इस प्रस्ताव की प्रमुख बातें इस प्रकार हैं.
  1. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा बाटला हाउस मुठभेड़ को फर्जी मानने के बाद दोषी पुलिस कर्मचारियों और अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जाए.
  2. आतंकवाद के नाम पर कई वर्षो तक जेल मे रहने के बाद बेकसूर साबित होने वालों को मुआवजा दिया जाए.
  3. इंडियन मुजाहिद्दीन पर श्वेत पत्र जारी किया जाए.
  4. पिछले दस सालों में हुई आतंकी घटनाओं और आतंकवाद के नाम पर हुई मुठभेड़ों की उच्चतम न्यायालय के कार्यरत न्यायाधीश से जांच कराई जाए.
  5. आतंकवाद के आरोप में बंद युवकों की जेलों में सुनवाई न करके फास्ट ट्रैक कोर्ट में सुनवाई की जाय.
  6. मानवाधिकार कार्यकर्ता व पीयूसीएल की नेता सीमा आजाद और उनके पति विश्व विजय को तत्काल रिहा किया जाए.
  7. आजमगढ़ के लोगों का पासपोर्ट बनने में पैदा की जा रही बाधाओं को तत्काल रोका जाए.
 

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