जेपी थर्मल प्लांट बघेरी पर एक खुला पत्र

प्रिय साथियों,
जेपी थर्मल प्लांट बघेरी पर मुझे सब के नाम यह पत्र इसलिए लिखना पड़ रहा है क्योंकि आज कल हिमाचल के हिन्दी और अंग्रेजी अखवारों में बयानबाज़ियों का भूचाल सा आ गया है. ये सभी राजनीतिक वक्तव्य पिछले पांच साल पुराने आंदोलन के दौरान कहीं नहीं दिखे. इसलिए मैंने यह अपनी भुक्तभोगी जानकारी सब के साथ बांटने के लिए लिखा है.
हिमाचल हाईकोर्ट ने जेपी एसोसिएट्स के बघेरी थर्मल संयंत्र पर एक अभूतपूर्व निर्णय दे कर यह आभास कराया है कि प्रदेश में संसाधनों की कॉरपोरेट लूट मची है और इस काम में यहां के राजनेता-अधिकारी वेशर्मी से शामिल हैं. हाईकोर्ट ने दूसरी बार इस परियाजना को वर्तमान मंत्रिमंडल से मिली मंजूरी पर भी सवाल उठाया. यह भी पिछले कुछ बर्षों में पहली बार हुआ है कि किसी बड़े कॉरपोरेट को भूमि, वन और पर्यावरण के कानून तोड़ने पर एक सौ करोड़ से ज्यादा का जुर्माना हुआ. निर्मित ढांचे को तोड़ने का आदेश और कानूनी हेराफेरी करने वाले अधिकारियों व संस्थाओं की जांच का आदेश दिया गया.
वेदान्ता, पॉस्को, लवासा से ले कर देश में बन रही तमाम परमाणु ऊर्जा सयंत्रों, थर्मल पावर प्लांट और पनबिजली प्लांटों में ऐसी ही धांधलियां हो रही हैं. सरकारें कंपनियों को कानून तोड़ने की खुली छूट दे रही है. प्रभावित जनता व देश के ईमानदार जनपक्षधर लोग जब इन विनाशकारी परियोजनाओं का विरोध कर रहे हैं तो नेता उन्हें देशद्रोही करार दे रहे हैं. न्यायालयों की भूमिका भी सब जगह ठीक नहीं लगती है. नव-उदारवाद के दौर में लोकतंत्र का सच यही है कि विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका जनता के साथ खड़ी नहीं दिखाती बल्कि पूंजीपतियों के हितों की रक्षक बन कर रह गई है. इसलिए भी हिमाचल हाईकोर्ट का यह फैसला अलग तरह का फैसला है, जिसकी हम तारीफ करते हैं.
हिमाचल प्रदेश में पिछले डेढ़ दशक से खासकर विकास के नाम पर कॉरपोरेट लूट खुले-आम चल रही है. तमाम जलविद्युत परियोजनाओं व अन्य व्यवसायिक इकाइयों की स्वीकृति तथा निर्माण में कानून की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं. पैसों के खुले लेन-देन का चलन आम बात हो गई है.
विपक्षी नेताओं के अखबारी बयानों से यह पता चलता है कि सता पक्ष के नेताओं ने परियोजनाओं की मंजूरी में पैसे लिए. दूसरे दिन सत्तारूढ़ नेता इल्जाम लगाते दिखते हैं कि विपक्षी पार्टी की सरकार के दौरान परियोजनाओं का गलत आवंटन हुआ. इस तरह कांग्रेस और भाजपा चोर-चोर, मौसेरा भाई का खेल दो दशक से प्रदेश में खेल रही हैं.
हिमाचल प्रदेशः कहां से कहां तक विकास यात्रा
इस पहाड़ी राज्य में किसान आंदोलनों के दबाब में 60 के दशक में ही पूर्ण भूमि सुधार लागू हुआ. 70 और 80 के दशक में कांगड़ा जैसे नए शामिल इलाकों में भी पूर्ण भूमि सुधार लागू हुआ. 70 के दशक में डॉक्टर परमार के नेतृत्व में प्रदेश को फल राज्य बनाने के गंभीर प्रयास किए गए.
बागवानी के विकास पर जोर दिया गया तथा सेब की व्यावसायिक खेती शुरू की गई. किसानों के पास कम जमीनें थीं इसलिए हर परिवार के पास कम से कम पांच बीघा काश्त भूमि पूरी करने के लिए सरकारी और वन भूमि में से किसानों को जमीन दी गई जिसे नबींतोड़ कहा गया. धीरे-धीरे पर्यटन उद्योग का विकास होना शुरू हुआ. सरकारी नौकरी और मजदूरी स्थानीय किसानों के लिए खेती-पशुपालन के अलावा उस दौर में आजीविका के दूसरे आधार थे.
परमार का जमाना चला गया जिसमें स्थानीय जनता के जीवन में सुधार लाने को विकास समझा जाता रहा. पहाड़ की हालत को समझा गया तथा उसी के अनुरूप विकास की रूपरेखा तय की गई. उस दौर में भी भारत सरकार की और से भाखड़ा और पोंग बांध बनाए गए. हजारों परिवार उजाड़े गए, किसी का ठीक से पुनर्वास नहीं हुआ लेकिन राजनीति में उसे प्रदेश की जनता की राष्ट्रहित में कुर्बानी मानी गई.
80 के बाद ओद्यौगिक विकास का दौर चला. विकास की परिभाषा बदलनी शुरू हुई. सीमेंट फैक्ट्रियां लगनी शुरू हुईं. एसीसी बरमाना और अंबुजा दरालाघाट में बड़े घपले हुए, खूब पैसे बनाए गए जो सर्वविदित है. 90 के बाद तो नैतिकता के अर्थ बदल गये. मैं यह सब कहानी इसलिए याद दिला रहा हूं कि देश में आज भी लोग यह सोचते हैं कि हिमाचल में भ्रष्ट सरकार नहीं है. वास्तब में यहां का सच कुछ और ही है.
पिछले एक दशक से हिमाचल ने एक बोर्ड टांग रखा है- एकल खिड़की- मतलब हिमाचल बिकाऊ है. अब प्रदेश सेब राज्य नहीं-बिजली राज्य है. आगे पर्यटन राज्य बनाने वाले हैं. हर छोटी-बड़ी नदी के लिए ग्राहक चाहिए, पावर प्लांट लगाने के लिए. पहाड़ का पत्थर बिकाऊ है सीमेंट के लिए, जंगल-पहाड़-बर्फ सब बिकाऊ है पर्यटन के लिए. खेती की थोड़ी सी समतल भूमि उद्योगों, बंगलों और शहरों के लिए. सरकार कहती है कि हमारे कानून प्रदेश हित में देश में सब से उतम हैं लेकिन विकास के नाम पर (कंपनी के फायदे और अपनी जेब हित) जनहित में छूट मिल सकती है.
जेपी समूह के कारनामे- घोटाला ही घोटाला
अब जय प्रकाश समूह पर बात करें तो सब तरफ घोटाले ही घोटाले हैं. सबसे पहले जेपी नाथपा-झाख्डी जल विद्युत परियोजना में ठेकेदार बन कर आया. उस के बाद वास्पा-दो में तीन सौ मेगावाट की जल विद्युत परियोजना झटक ली. उसमें बिजली की कीमत पर उठे विवाद में जेपी समूह को सरकारी अफसरों की कृपा से करोड़ों का फायदा हुआ. हमारे साथी जो इस केस को देख रहे थे मुंह ताकते रह गए. दूसरी बिजली परियोजना करछम बांगतु, फिर बागा सीमेंट प्लांट, बघेरी सीमेंट ग्राइन्डिंग और थर्मल प्लांट तथा वाकनाघाट जेपी यूनिवर्सिटी इत्यादि में सभी जगह भारी घोटाले हुए हैं.
करछम बांगतुः घोटाले का गढ़
दूसरी बिजली परियोजना करछम बांगतु में अभी हाल ही में बन कर तैयार हुई है. 1000 मेगावाट की मंजूरी पर 1200 का प्लांट लगा लिया गया. यह आदिवासी क्षेत्र है जो संबिधान की पांचवीं अनुसूची में आता है. भूमि हस्तांतरण में पेसा कानून लागू होता है. परियोजना के प्रभाव क्षेत्र में 18 ग्राम पंचायतें आती हैं जिन में से केवल तीन ने ही अनापत्ति प्रमाण पत्र यानी एनओसी दिया है. चार टनल बिना मंजूरी के बना दिए गए. मलबा फेंकने और उसके प्रबंधन में भारी अनियमितता हुईं. हजारों चिलगोजा व दूसरी प्रजातियों के पेड़ काटे गए. कई बार वन विभाग से जुर्माना हुआ. 400 बीघा से उपर वन भूमि पर अवैध कब्जा कई बर्षों से है.
हमारे साथियों ने इस परियोजना का भारी विरोध किया. बर्षों से आंदोलन चल रहा है. प्रदेश सरकार से लेकर केंद्र को कई बार अवगत कराया गया. पिछली सरकार ने आंदोलनकारियों पर गोलियां चलाई. राज्यपाल को भी बुलाया गया ताकि आदिवासी क्षेत्र में हो रही अनियमितताओं को देख कर अपनी विशेष शक्तियों का प्रयोग कर जेपी परियोजना को रोकें. लेकिन कुछ नहीं हुआ और परियोजना बन कर तैयार हो गई. यहां बड़े पैमाने पर पेसा कानून, वन अधिकार कानून तथा हिमाचल प्रदेश भूमि हस्तांतरण व रेगुलेशन कानून व अन्य कानूनों कि धज्जियां उड़ाई गईं. संघर्ष समिति ने अंत में अवैध कब्जा के विरुद्ध जिला प्रशासन पर  मुकदमा दर्ज करवाया जिसे रोजनामचे में चढाया गया पर कोई कार्रवाई नहीं कई गई. आज यह केस भी उच्च न्यायालय शिमला में चल रहा है.
बागा सीमेंट प्लांट
यह तीसरा कारनामा है. यहां भी सैकड़ों बीघा वन भूमि पर अवैध कब्जा किया गया, हजारों पेड़ अवैध रूप से काटे गए. कई बार वन विभाग ने जुर्माना लगाया. मलबा हर कहीं बिखरा है. कई बार यहां आंदोलन हुए पर जेपी मानने वालों में से नहीं है.
बघेरी सीमेंट ग्राइन्डिंग और थर्मल प्लांट
बागा सीमेंट प्लांट के क्लिंकर की पिसाई के लिए यह प्लांट लगा क्योंकि क्लिंकर में फ्लाई ऐश जो 15 प्रतिशत मिलनी होती है जिसे डीपीआर के मुताबिक कंपनी को पानीपत से लाना था. इसलिए भाड़ा कम करने के लिए थर्मल प्लांट का प्रस्ताव लाया गया. जिस से फ्लाई ऐश भी मिल जाए और बिजली भी बन गई. इस परियोजना के लिए बर्ष 2004 में एमओयू किया गया और तभी से बिना किसी पर्यावरण व अन्य मंजूरी के काम शुरू कर दिया गया. इसके लिए कंपनी ने कुछ निजी भूमि खरीदी और बाकी 24 हेक्टर शामलात पर नाजायज कब्जा किया गया जो 2010 में कंपनी के नाम हस्तांतरित हुई.
इस दौरान दोनों भाजपा और कांग्रेस दोनों की सरकार रही. हमारे आंदोलन के साथियों के बार-बार बताने पर भी दोनों में से किसी सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की. 24 मई, 2010 को बघेरी में हमने जलसा किया और 25 मई को सुंदर लाल बहुगुणा जी के साथ मुझे भी सुबह मुख्यमंत्री के आवास पर उनके साथ जाना पड़ा. जब मैंने बहुगुणा जी के सामने बघेरी में जेपी के इस नाजायज कब्जा की बात छेड़ी तो धूमल साहब बिगड़ गए और कहने लगे कि ऐसा इल्जाम लगाने की हिम्मत कैसे हुई. मैं अपने साथ इस भूमि का एक दिन पहले निकला पर्चा ले गया था. जब मैंने पर्चा दिखाया तो धूमल सकपकाते हुए बात टालने लगे.
यहां पर कब्ज़ा की गई शामलात भूमि से 2004 के आसपास हजारों पेड़ नदारद हुए. किसी को समझ नहीं आया कि क्या हो रहा है. कौन ये पेड़ कट रहा है. कुछ दिनों बाद निर्माण कार्य शुरू हो गया. 2007 में जब जन सुनवाई की बात प्रचारित हुई तब जाकर हिम प्रवेश के कार्यकर्ताओं ने मसले को समझने कि शुरुआत की. 24 जून, 2007 को सुंदर लाल बहुगुणा जी और मैं स्वयं पहले विरोध में शामिल हुए. जबकि इस मामले में 23 जून, 2007 को हम सभी उस समय के मुख्यमंत्री से शिमला में उन के कार्यालय में मिले थे.
27 जून को जनसुनवाई हुई. इस में 2MTPA सीमेंट ग्राइन्डिंग यूनिट और integrated multi fuel based captive थर्मल पावर  प्लांट 10 MW और 1×10.89 MW डीजल जेनरेटर सेट को जन सुनवाई के लिए रखा गया. जनता ने भारी विरोध किया और एक स्वर से प्रस्ताब निरस्त कर दिया गया. कुछ दिनों बाद पता चला कि और भी कुछ थर्मल प्लांटों की मंजूरी सरकार ने दे दी है. इसका भारी विरोध हुआ और उस वक्त की सरकार ने सभी थर्मल प्लांट के प्रस्तावों को निरस्त कर दिया. 2008 में नई  सरकार बनते ही इस घपले की जांच के बदले केवल जेपी को 20 मेगावाट थर्मल की मंजूरी फिर से दे दी गई. इस पर भी कोर्ट ने सवाल उठाया है.
इसलिए दूसरी पर्यावरण जन सुनवाई 7 सितंबर, 2009 को आयोजित हुई. अब प्रस्ताब 30 (MW)  captive थर्मल पावर प्लांट, 32MW डीजल जेनरेटर सेट और 2MTPA ग्राइन्डिंग व मिक्सिंग यूनिट का पेश किया गया. इसे भी जनता ने भारी विरोध के साथ ख़ारिज कर दिया. मई, 2010 को जेपी समूह ने मेरे और दुखिया जी के बिरुद्ध कई अदालतों में कैविएट दाखिल कर दी गई. इन कैविएट के नोटिस से पता चला की जेपी कंपनी को पर्यावरण मंत्रालय से मंजूरी मिल गई है. इसके बाद कंपनी के नाम भूमि हस्तांतरित हुई जबकि तब तक पूरी परियोजना गैर-कानूनी तरीके से बन कर तैयार हो चुकी थी.
इसके बाद मामले अदालतों में गए. इस फैसले से साबित हो गया है कि यहां जेपी समूह द्वारा पहले दिन से भारी गड़बड़ी नेताओं और अफसरों की मिलीभगत से की गई है. हिमाचल हाईकोर्ट का यह फैसला इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि पहली बार सारी अनियमितताएं सूचीबद्ध हुईं और कैबिनेट के फैसले पर भी नाराजगी जाहिर की गई. जब एक परियोजना में अदालत द्वारा 100 करोड़ का जुर्माना लगाया जा रहा है तो ऐसे में प्रदेश में हजारों करोड़ के आज तक के घपलों पर कितने का जुर्माना बनेगा.
कौन जिम्मेवार, सवाल क्यों नहीं उठते
पत्रकार-नेता भी जानते हैं कि जेपी समूह के इस घोटाले का सच क्या है. आज मुख्यमंत्री बयान दे रहे हैं कि हमने जनहित में दूसरी बार जेपी को अनुमति प्रदान की. जनहित का अर्थ हो गया कानून तोड़ो, भ्रष्टाचार करो, कंपनी को लूटने दो. मुख्यमंत्री का यह बयान हास्यस्पद है.
कायदे से होना ये चाहिए था कि कांग्रेस सरकार के दौरान की गड़बड़ियों की जांच करते. भाजपा ने सत्ता में आने से पहले चुनाव में यह कहा भी था लेकिन आज वो जेपी की दोस्त बन गई है. शांता कुमार इसलिए जेपी की तारीफ करते दिखे क्योंकि उसने इनके विवेकानंद अस्पताल के लिए पैसे दिए. धूमल साहब क्रिकेट प्रेमी हैं. उसमें भी जेपी ने पैसा दिया होगा. ये तो खुले सौदे हैं. भाजपा के एमपी ने भ्रष्टाचार का मसला उठाया और मुख्यमंत्री का इस्तीफा मांगा. शांता भी बोले. इन्हें बोलते हुए शर्म नहीं आती और अपने पीछे के कर्म भूल जाते हैं.
अब कांग्रेस की बात करें. बर्ष 2004 से भूमि पर नाजायज कव्जा, कानून की धज्जियां उनके सामने उड़ाई गई. कोई तब क्यों नहीं बोला, फिर आज बोल के क्या फायदा. ख़ैर, कभी तो लोग सच समझेंगे.
हिमालय नीति अभियान लंबे दौर से स्थानीय आंदोलनों के साथ कम कर रहा है तथा टिकाऊ व पहाड़ की प्रकृति के अनुसार दोहन मुक्त विकास की वकालत करता रहा है.
हम केंद्र व राज्य सरकार से मांग करते हैं-
उपरोक्त परिस्थितियों को ध्यान में रखकर हम केंद्र सरकार से मांग करते हैं कि उन सभी बड़ी बिजली, सीमेंट और ओद्योगिक इकाइयों की मंजूरी और उसके निर्माण की सीबीआई जांच करवाई जाए जो पिछले 10 बर्षों के भीतर हिमाचल प्रदेश में स्थापित हुई हैं. कानून की अनदेखी करके मंजूरी देने वाले सभी नेताओं और अफसरों को जांच के दायरे में लाकर सजा दी जाए.
जय प्रकाश समूह के प्रदेश में चल रहे सभी उद्यमों की जांच सेवानिवृत जज द्वारा सरकार को तुरंत शुरू करवानी चाहिए क्योंकि इस समूह के सभी उद्यमों में घपले हुए हैं. जय प्रकाश समूह को जांच पूरी होने तक प्रदेश में कारोबार करने से रोका जाय.
इस केस में हिमाचल हाईकोर्ट द्वारा बनाए गए विशेष जांच दस्ते का नेतृत्व हाईकोर्ट के सेवानिवृत जज द्वारा होना चाहिए.
गुमान सिंह

Recent Posts

  • Featured

The Role Of Museums In Telling Missing Stories

On May 18, 1942, Denzo Umino stood before the Aliens Tribunal in the remote town of Hay, New South Wales…

9 hours ago
  • Featured

How Does Foreign Policy Fare In The Biggest Election In The World?

With India positioning itself as a global player, the microscope falls on PM Narendra Modi’s foreign policy. A post on X in…

9 hours ago
  • Featured

People’s Resentment Will Ensure BJP’s Defeat, Says Akhilesh Yadav

On Tuesday, May 21, Samajwadi Party (SP) national president Akhilesh Yadav said that the growing resentment against the BJP's politics…

12 hours ago
  • Featured

Iran’s Prez Raisi Reported Dead And What That Means For The World

Iranian President Ebrahim Raisi, who has been reported dead after the helicopter he was in crashed on May 19, 2024,…

1 day ago
  • Featured

Of Museums And Disability Inclusion

When Akhileshwari*, a person with visual impairment, visited a museum in Bangalore with her visually impaired friends, the authorities told…

2 days ago
  • Featured

Six Elements to Make Our Streets Safer

India’s vibrant streets, a reflection of its dynamic culture, are unfortunately also the setting of a grim reality. Every year,…

2 days ago

This website uses cookies.