गुजरातः कहाँ तक पहुंची इंसाफ़ की लड़ाई?

गुजरात में 2002 में हुए दंगों के पीड़ितों का इंसाफ़ के लिए संघर्ष दस वर्ष बाद भी जारी है.

कुछ मामलों में लोगों को इंसाफ़ ज़रूर मिला है और दोषियों को सज़ा भी सुनाई गई है लेकिन वे दंगे इतने भयावह थे और पीड़ितों की संख्या इतनी ज़्यादा है कि इंसाफ़ की ये लड़ाई कब तक चलती रहेगी, कुछ कहना मुश्किल है.
अयोध्या से गुजरात जा रही साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन में गुजरात के गोधरा के पास हुए हादसे में 58 लोग मारे गए थे जिनमें ज्यादातर हिंदू कारसेवक थे.
इसके बाद गुजरात में भड़के दंगों में आधिकारिक तौर पर लगभग 1200 लोग मारे गए थे और लगभग एक लाख 70 हज़ार लोग बेघर हो गए थे.
इन दंगों में मरने वाले ज़्यादातर मुसलमान थे.
भारत के तत्कालीन गृह राज्य मंत्री श्रीप्रकाश जयसवाल ने 11 मई 2005 को गुजरात दंगों में मारे गए लोगों की संख्या के बारे में राज्य सभा में पूछे गए एक सवाल का लिखित जवाब दिया था.
उनके जवाब के अनुसार दंगों में कुल 790 मुसलमान और 254 हिंदू मारे गए थे और कुल 223 लोग उस समय तक लापता बताए गए थे जिन्हें बाद में मरा हुआ मान लिया गया था.
इस तरह से भारत सरकार की ओर से दिए गए आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक़ गुजरात दंगों में कुल 1267 लोग मारे गए थे.
हालाकि कुछ ग़ैर-सरकारी संगठन और स्थानीय लोगों के अनुसार दंगों में दो हज़ार से भी ज़्यादा लोग मारे गए थे.
लेकिन अगर इंसाफ़ मिलने की बात की जाए तो इन दस वर्षो में अब तक केवल गोधरा कांड, बेस्ट बेकरी, बिल्क़ीस बानो और सरदारपुरा मामले में निचली अदालत ने फ़ैसला सुनाया है जिनमें कुल मिलाकर 83 लोगों को सज़ा सुनाई गई है.
दंगों से जुड़े कुछ प्रमख मामले और मुआवज़े के लिए संघर्ष
बेस्ट बेकरी मामला
वडोदरा के निकट स्थित बेस्ट बेकरी में एक फ़रवरी 2002 को 14 लोगों को जलाकर मार दिया गया था.
बेस्ट बेकरी ज़ाहिरा शेख़ के परिवार वालों का था और मरने वालों में उनके परिवार वाले और बेकरी में काम करने वाले कुछ कारीगर थे. ज़ाहिरा इस मुक़दमे की प्रमुख गवाह थी.
इस मामले में सभी 21 अभियुक्तों को जून 2003 में आए फ़ैसले में निचली अदालत ने बरी कर दिया गया था.
कारण ये था कि गवाहों ने अदालत में अपने बयान बदल डाले थे.
निचली अदालत के इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ गुजरात सरकार हाई कोर्ट भी गई थी लेकिन हाई कोर्ट ने दिसंबर 2003 में दिए गए अपने फ़ैसले में निचली अदालत के फ़ैसले को सही ठहराया था.
बाद में मानवाधिकार संगठनों की मदद से ज़ाहिरा शेख़ ने इसके ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में अपील की और अप्रैल 2004 में सुप्रीम कोर्ट ने बेस्ट बेकरी केस की दोबारा जांच और सुनवाई गुजरात से बाहर महाराष्ट्र में कराने का आदेश दिया.
मुंबई हाईकोर्ट की निगरानी में गठित मज़गांव सेशन कोर्ट ने फ़रवरी 2006 में फ़ैसला सुनाते हुए इस मामले के 21 अभियुक्तों में से नौ को उम्र क़ैद की सज़ा सुनाई थी.
अदालत ने आठ लोगों को बरी कर दिया था जबकि चार लोगों को अभी तक गिरफ़्तार नहीं किया जा सका है.
तमाम नौ दोषी लोग इस समय कोल्हापुर सेंट्रल जेल में अपनी सज़ा काट रहें हैं लेकिन फ़रवरी 2012 में मुबंई हाई कोर्ट ने उनमें से एक मुजरिम जगदीश राजपूत को ख़राब स्वास्थ के कारण ज़मानत पर रिहा करने का आदेश दिया है.
उन तमाम लोगों ने निचली अदालत के फ़ैसले के ख़िलाफ़ मुंबई हाई कोर्ट में अपील दायर की है जिसकी पांच मार्च 2012 से रोज़ाना सुनवाई होगी.
लेकिन इस पूरे मामले में मुख्य गवाह ज़ाहिरा शेख़ को अदालत ने अपना बयान बार-बार बदलने का दोषी क़रार दिया था और उन्हें एक साल क़ैद की सज़ा सुनाई थी और 50 हज़ार रुपए का जुर्माना भी अदा करने का कहा था.
बिल्क़ीस बानो मामला
गुजरात दंगों से जुड़ा ये दूसरा मामला था जिसकी सुनवाई सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात से बाहर कराने का आदेश दिया था.
दाहोद ज़िले के राधिकपुर गावं की रहने वाली बिल्क़ीस बानो दंगों से बचने के लिए अपने परिवार समेत 17 लोगों के साथ तीन मार्च 2002 को भाग रहीं थीं तभी छापरवाड़ गांव के पास दंगाईयों ने उन्हें घेर लिया.
बलवाईयों ने बिल्क़ीस के साथ सामूहिक बलात्कार किया और उनकी साढ़े तीन साल की बेटी समेत उनके परिवार के 14 लोगों की हत्या कर दी थी. बिल्क़ीस उस समय ख़ुद भी गर्भवती थीं.
गवाहों को डराने धमकाने और ठीक से जांच नहीं करने के कारण गुजरात की निचली अदालत से उन्हें इंसाफ़ नहीं मिल पाया था और फिर सुप्रीम कोर्ट ने 2003 में उनके मामले की सुनवाई महाराष्ट्र में कराने का आदेश दिया था.
मुंबई स्थित सीबीआई की विशेष अदालत ने जनवरी 2008 में अपना फ़ैसला सुनाते हुए इस मुक़दमे के कुल 20 अभियुक्तों में से 12 को बलात्कार, हत्या और सबूत मिटाने का दोषी क़रार दिया था.
अदालत ने पर्याप्त सबूत ना होने के कारण सात लोगों को रिहा कर दिया था जबकि एक अभियुक्त की सुनवाई के दौरान ही मौत हो गई थी.
दोषी पाए गए 12 लोगों में से 11 को उम्र क़ैद और एक पुलिसकर्मी, लीमखेड़ा पुलिस थाना के तत्कालीन हेड कॉंस्टेबल, सोमाभाई गोरी को तीन साल के सश्रम कारावास की सज़ा सुनाई गई थी.
एसआईटी के तहत मामले
गुजरात सरकार, वहां की राज्य पुलिस और अभियोजन पक्ष के रवैये से वहां दंगा पीड़ितों को शायद पूरी तरह से इंसाफ़ नहीं मिल पा रहा था.
मानवाधिकार आयोग से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक ने अपने कई फ़ैसलों या टिप्पणियों में दंगा पीड़ितों को इंसाफ़ दिलाने में राज्य की मोदी सरकार की विफलता की जम कर आलोचना की थी.
बेस्ट बेकरी और बिल्क़ीस बानो के केस को सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात से बाहर स्थानांतरण भी कर दिया था लेकिन दंगों से जुड़े सारे मामलों को गुजरात से बाहर भेजना शायद मुमकिन नहीं था.
इसलिए मानवाधिकार आयोग, दंगा पीड़ित और उनको इंसाफ़ दिलाने के लिए लड़ रहे एक ग़ैर-सरकारी संगठन \\\’सिटिज़ेन्स फ़ॉर पीस एंड जस्टिस\\\’ की तरफ़ से दायर याचिका की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मार्च 2008 के अपने फ़ैसले में दंगों से जुड़े कुछ ख़ास मामलों की जांच के लिए एक विशेष जांच दल के गठन का आदेश दिया था और ख़ुद ही उनकी निगरानी करने का फ़ैसला किया था.
सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई के पूर्व निदेशक आरके राघवन की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय एसआईटी के गठन का आदेश दिया था.
एसआईटी जिन मामलों की जांच कर रही है, वे इस प्रकार हैं.
गोधरा मामला- 27 फ़रवरी 2002 को साबरमती एक्सप्रेस के एक डब्बे एस-6 में गुजरात के गोधरा के पास आग लगी जिसमें 58 लोग मारे गए थे.
मरनेवालों में ज़्यादातर लोग अयोध्या से लौट रहे हिंदू कारसेवक थे. इस मामले की सुनवाई जून 2009 में शुरू हुई थी.
इस मामले में अहमदाबाद की विशेष अदालत ने मार्च 2011 में अपना फ़ैसला सुनाते हुए 31 लोगों को दोषी क़रार दिया था.
मुजरिम क़रार दिए गए 31 लोगों में से अदालत ने 11 लोगों को मौत और 20 को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई थी.
सरदारपुरा हत्याकांड- एक मार्च 2002 को सरदारपुरा में हुए दंगों में 33 लोगों को ज़िंदा जला कर मार डाला गया था.
गुजरात के मेहसाणा ज़िले की एक विशेष अदालत ने नवंबर 2011 में इस मामले में 31 लोगों को दोषी क़रार देते हुए उन्हें उम्र क़ैद की सज़ा सुनाई थी.
अदालत ने इस मामले में कुल 73 अभियुक्तों में से 42 को सबूत ना होने के कारण बरी कर दिया था.
गुलबर्ग सोसाइटी हत्याकांड- 28 फ़रवरी 2002 को अहमदाबाद के गुलबर्ग सोसाइटी में भड़की हिंसा में कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफ़री समेत कुल 69 लोग मारे गए थे.
एसआईटी ने इस मामले में अब तक कुल 84 लोगों को अभियुक्त बनाया है जिनमें 70 गिरफ़्तार किए जा चुके हैं, आठ की मौत हो चुकी है और छह अभी फ़रार है.
फ़िलहाल 56 लोगों को ज़मानत मिल चुकी है और इस समय केवल 10 अभियुक्त जेल में हैं.
एसआईटी ने निलंबित डीएसपी के जी एर्दा और दो स्थानीय भाजपा नेता समेत कुल आठ लोगों के ख़िलाफ़ आरोप-पत्र दायर कर दिए हैं.
एहसान जाफ़री की विधवा ज़किया जाफ़री इस मामले में मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को षडयंत्र रचने और उनके पति की हत्या रोकने में असफल रहने के लिए ज़िम्मेदार ठहराने के लिए अदालत से अपील कर रहीं हैं. एसआईटी उनके आरोपों की अलग से जांच कर रही है.
नरोदा पाटिया हत्याकांड- 28 फ़रवरी 2002 को नरोदा पाटिया में हुए दंगे में 95 लोग मारे गए थे.
मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की क़रीबी समझेजानी वाली पूर्व मंत्री माया कोडनानी समेत 67 लोगों को इस मामले में अभियुक्त बनाया गया है.
इस मामले में 13 अभियुक्त जेल में हैं और 49 अभियुक्त ज़मानत पर रिहा हो चुके हैं.
ओड मामला-गुजरात के आनंद ज़िले में स्थित ओड गांव और खमबोडज गांव के दो मामले एसआईटी को दिए गए थे.
ओड में हुई हिंसा में 30 लोगों की मौत हो गई थी.
फ़िलहाल सारे अभियुक्त ज़मानत पर रिहा हो चुके हैं.
नरोदा गाम-नरोदा गाम में 11 लोग मारे गए थे.
एसआईटी ने इस मामले में भारतीय जनता पार्टी की नेता और पूर्व मंत्री माया कोडनानी के ख़िलाफ़ आरोप पत्र दाख़िल किया है.
लेकिन इस केस के सारे 85 अभियुक्तों को ज़मानत मिल चुकी है.
दिपड़ा दरवाज़ा मामला- मेहसाणा ज़िले के दिपड़ा दरवाज़ा इलाक़े में गोधरा कांड के बाद भड़की हिंसा में 11 लोगों की मौत हो गई थी.
एसआईटी ने इस मामले में सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी एमके पटेल के ख़िलाफ़ आरोप-पत्र दाख़िल किए हैं.
मेहसाणा के ही काडी शहर इलाक़े में हुए दंगे में 65 लोग मारे गए थे.
ब्रितानी नागरिकों की हत्या- 2002 के गुजरात दंगों के दौरान तीन ब्रितानी नागरिक भी मारे गए थे.
भारतीय मूल के ब्रितानी नागरिक इमरान दाऊद, सईद दाऊद, शकील दाऊद, और मोहम्मद असवत उसी समय गुजरात के अपने पुश्तैनी गांव लाजपुर में आए हुए थे.
28 फ़रवरी को जब वे सभी आगरा से गुजरात वापस जा रहे थे तभी साबरकंठा ज़िले के प्रांतिज इलाक़े के पास दंगाईयों ने उन्हें घेर लिया और उनके कार को आग लगा दी.
सईद दाऊद, मोहम्मद असवत और कार के ड्राईवर स्थानीय नागरिक यूसुफ़ पिरागर की तुरंत मौत हो गई थी.
शकील दाऊद का कुछ पता नहीं चल सका था जिस कारण उन्हें भी बाद में मरा हुआ मान लिया गया जबकि इमरान दाऊद इस हादसे में बुरी तरह घायल हो गए थे लेकिन पुलिस की मदद से उनकी जान बच गई थी.
इस केस में छह लोग अभियुक्त हैं जिनपर मुक़दमा चल रहा है.
इस मामले में एसआईटी ने ब्रिटेन में रह रहे प्रमुख गवाह इमरान दाऊद और दुबई में रह रहे एक दूसरे गवाह बिलाल दाऊद का बयान अप्रैल 2010 में वीडियो कॉंफ़्रेंसिंग के ज़रिए दर्ज कर किया था.
ज़किया जाफ़री केस
कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफ़री अहमदाबाद के गुलबर्ग सोसायटी में 28 फ़रवरी को हुए दंगों में मारे गए थे.
दंगों से बचने के लिए कई मुसलमानों ने गुलबर्ग सोसायटी में रह रहे एहसान जाफ़री के घर इस उम्मीद पर शरण लिया था कि पूर्व सांसद होने के कारण दंगाई शायद वहां तक नहीं पहुंच सकें.
लेकिन दंगाईयों ने गुलबर्ग सोसायटी को घेर लिया और कई लोगों को ज़िंदा जला दिया. इस दंगे में एहसान जाफ़री समेत कुल 69 लोग मारे गए थे.
एहसान जाफ़री की विधवा ज़किया जाफ़री ने आरोप लगाया था कि उनके पति एहसान जाफरी ने पुलिस और मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी सभी को संपर्क करने की कोशिश की थी लेकिन किसी ने उनकी मदद की.
ज़किया जाफ़री ने जून 2006 में गुजरात पुलिस के महानिदेशक से अपील की थी कि नरेंद्र मोदी समेत कुल 63 लोगों के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज की जाए.
ज़किया का आरोप है कि मोदी समेत उन सभी लोगों ने दंगों के दौरान पीड़ितों को जानबूझकर बचाने की कोशिश नहीं की.
पुलिस महानिदेशक ने जब उनकी अपील ठुकरा दी तब ज़किया ने गुजरात हाई कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया.
लेकिन नवंबर 2007 में हाईकोर्ट ने भी उनकी अपील ख़ारिज कर दी.
उसके बाद मार्च 2008 में ज़ाकिया जाफ़री और ग़ैर-सरकारी संगठन \\\’सिटिज़ेन्स फ़ॉर जस्टिस एंड पीस\\\’ संयुक्त रूप से सुप्रीम कोर्ट पहुंचे. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में कोर्ट की मदद करने के लिए जाने माने वकील प्रशांत भूषण को एमाइकस क्योरि नियुक्त किया.
अप्रैल 2009 में सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात दंगों की जांच के लिए पहले से गठित एसआईटी को इस मामले की जांच के आदेश दिए.
एसआईटी ने 2010 के शुरू में नरेंद्र मोदी को पूछताछ के लिए बुलाया और मई 2010 में सुप्रीम कोर्ट में अपनी रिपोर्ट पेश कर दी.
इस बीच अक्तूबर 2010 में प्रशांत भूषण इस केस से अलग हो गए जिसके बाद अदालत ने राजू रामचंद्रन को एमाइकस क्यूरी नियुक्त किया. राजू रामचंद्रन ने जनवरी 2011 में सुप्रीम कोर्ट को अपनी रिपोर्ट सौंपी.
मार्च 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने एसआईटी को इस मामले में और जांच करने के निर्देश दिए क्योंकि अदालत के अनुसार एसआईटी ने जो सबूत पेश किए थे और जो नतीजे निकाले थे उन दोनों में तालमेल नहीं था.
मई 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने एमाइकस क्यूरी को गवाहों और एसआईटी के अफ़्सरों से मिलने के आदेश दिए.
जूलाई 2011 में राजू रामचंद्रन ने एक बार फिर अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंपी.
सितंबर 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने मोदी के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज करने का आदेश तो नहीं दिया लेकिन ये कहा कि एसआईटी निचली अदालत में अपनी रिपोर्ट पेश करे.
ज़किया जाफ़री और नरेंद्र मोदी दोनों ने इसे अपनी-अपनी जीत की तरह देखा. नरेंद्र मोदी ने इसे अपने लिए क्लिन चिट क़रार दिया तो ज़किया ने इसे एक क़ानूनी-प्रक्रिया की तरह देखा.
बहरहाल फ़रवरी 2012 में एसआईटी ने अहमदाबाद की निचली अदालत में अपनी रिपोर्ट सौंप दी.
मीडिया में सूत्रों के हवाले से ख़बरें आने लगीं कि एसआईटी ने नरेंद्र मोदी को ये कहते हुए क्लीन चिट दे दी है कि एसआईटी के पास मोदी के ख़िलाफ़ मुक़दमा चलाने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं हैं.
ज़किया जाफ़री ने निचली अदालत से एसआईटी की रिपोर्ट मांगी थी.
अदालत ने 15 फ़रवरी को एसआईटी को रिपोर्ट की एक प्रति एक महीने के अंदर ज़किया जाफ़री को सौंपने के निर्देश दिए हैं.
दंगों के अन्य मामले
गुजरात दंगों के दौरान लगभग चार हज़ार मामले दर्ज हुए थे.
लेकिन लगभग सारे मामले गुजरात पुलिस ने ये कहते हुए बंद कर दिए थे कि उसके पास केस को जारी रखने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं हैं.
अगस्त 2004 में सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को उनमें से लगभग दो हज़ार मामलों को दोबारा खोलने के आदेश दिए थे.
लेकिन मौजूदा जानकारी के अनुसार उनमें से भी ज़्य़ादातर मामले पुलिस ने या तो बंद कर दिए हैं या फिर ऐसे हालात पैदा हो गए हैं कि पीड़ितों ने मजबूर होकर अदालत के बाहर समझौता कर लिया.

मुआवज़े के लिए संघर्ष
जिस तरह से गुजरात दंगा पीड़ितों की न्यायिक लड़ाई पिछले दस वर्षों से जारी है उसी तरह से मुआवज़ा के मामले में भी उनको कुछ ख़ास सफलता नहीं मिल पाई है.
दस वर्षों के बाद भी ज्यादातर लोग ऐसे हैं जिन्हें अभी तक या तो मुआवज़ा नहीं मिला है या फिर बहुत मामूली सी मदद मिली है.
सरकार के अपने आंकड़ों के हिसाब से लगभग 1000 लोग इन दंगों में मारे गए थे और लगभग 223 लोग लापता थे. उनके अलावा लगभग 2100 लोग उन दंगों में घायल हुए थे.
गुजरात सरकार ने मारे गए लोगों के लिए प्रत्येक के परिजन को एक लाख 50 हज़ार रूपए देने की घोषणा की थी. उनमें से भी 60 हज़ार रूपए के नर्मदा बॉंड देने की बात कही गई थी.
ये रक़म बहुत कम है क्योंकि दिल्ली हाई कोर्ट ने 1996 में दिए गए अपने फ़ैसले में1984 के सिख विरोधी दंगों में मारे गए लोगों के परिजनों को साढ़े तीन लाख रूपए मुआवज़ा देने का आदेश दिया था.
गुजरात सरकार ने ऐसा कुछ नहीं किया और उनमें से भी कई लोगों को अभी तक मुआवज़ा नहीं मिला है.
गुजरात सरकार ने ख़ुद माना है कि उन दंगों में लगभग पांच हज़ार घर पूरी तरह तबाह हो गए थे और 19 हज़ार घर आंशिक रूप से नष्ट हुए थे.
राज्य सरकार ने क्षति ग्रस्त हुए घरों के लिए 50 हज़ार रूपए की अधिकतम राशी तय कर दी थी और वो भी कई लोगों को नहीं मिलें हैं.
गुजरात सरकार ने पूरी तरह क्षति ग्रस्त हुए घरों के लिए सात करोड़ 62 लाख और आंशिक रूप से टूटे हुए घर के लिए 15 करोड़ 50 लाख रूपए का मुआवज़ा दिया है यानी लगभग 23 हज़ार टूटे हुए घरों के लिए सरकार ने सिर्फ़ 23 करोड़ रूपए मुआवज़े के तौर पर दिया है.
2002 दंगों के बाद केंद्र सरकार ने 150 करोड़ रूपए दंगा पीड़ितों के लिए राज्य सरकार को भेजे थे लेकिन फ़रवरी 2003 में राज्य सरकार ने लगभग 19 करोड़ रूपए केंद्र को ये कहते हुए लौटा दिए थे कि सभी पीड़ितों को मुआवज़ा मिल चुका है.
अब तक गुजरात सरकार ने लगभग 186 करोड़ रूएए मुआवज़े के तौर पर दिए हैं जिनमें मारे गए लोगों के परिजन, घायल हुए लोग, दंगों में नष्ट हुए घर, राहत शिविरों को दिए गए राशन वग़ैरह के नाम पर दिए गए कुल मुआवज़े शामिल हैं.
गुजरात सरकार के अनुसार उन दंगों में महिलाओं पर हमले के 185 मामले , बच्चों पर हमले के 57 मामले और बलात्कार के 11 मामले सामने आए थे लेकिन सरकार ने आज तक उन पीड़ितों को कोई मुआवज़ा नहीं दिया है.
इसी सिलसिले में गुजरात हाई कोर्ट ने दंगों के दौरान जला दी गई 56 दुकानों के मुआवज़े के मामले में 15 फ़रवरी को नरेंद्र मोदी सरकार को अदालत की अवमानना का नोटिस जारी किया था.
पीड़ित दुकानदारों की याचिका पर सुनवाई करते हुए अखिल कुरैशी और सीएल सोनी की एक पीठ ने अहमदाबाद के ज़िलाधीश को नोटिस जारी करते हुए पूछा था कि क्यों न अदालत की अवमानना का मुक़दमा चलाया जाए.
अदालत ने ज़िलाधीश को जवाब देने के लिए 14 मार्च तक का समय दिया है.
(इक़बाल अहमद बीबीसी हिंदी सेवा के संवाददाता हैं. यह रिपोर्ट उन्होंने बीबीसी हिंदी ऑनलाइन के लिए तैयार की थी.)

Recent Posts

  • Featured

A New World Order Is Here And This Is What It Looks Like

On Sept. 3, 2025, China celebrated the 80th anniversary of its victory over Japan by staging a carefully choreographed event…

2 days ago
  • Featured

11 Yrs After Fatal Floods, Kashmir Is Hit Again And Remains Unprepared

Since August 20, Jammu and Kashmir has been lashed by intermittent rainfall. Flash floods and landslides in the Jammu region…

3 days ago
  • Featured

A Beloved ‘Tree Of Life’ Is Vanishing From An Already Scarce Desert

The social, economic and cultural importance of the khejri tree in the Thar desert has earned it the title of…

3 days ago
  • Featured

Congress Labels PM Modi’s Ode To RSS Chief Bhagwat ‘Over-The-Top’

On Thursday, 11 September, the Congress party launched a sharp critique of Prime Minister Narendra Modi’s recent tribute to Rashtriya…

3 days ago
  • Featured

Renewable Energy Promotion Boosts Learning In Remote Island Schools

Solar panels provide reliable power supply to Assam’s island schools where grid power is hard to reach. With the help…

4 days ago
  • Featured

Are Cloudbursts A Scapegoat For Floods?

August was a particularly difficult month for the Indian Himalayan states of Uttarakhand, Himachal Pradesh and Jammu and Kashmir. Multiple…

4 days ago

This website uses cookies.