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कभी आमिर से पूछिए सबसे बड़े लोकतंत्र का सच

Jun 1, 2012 | सैय्यद फ़हद

मोहम्मद आमिर को जेल से छुटे तकरीबन एक माह से ज्यादा हो गया हैं. आमिर ने अपने जिंदगी के 14 साल जेल में बिताये है. इन 14 सालों उसके अपने शहर दिल्ली में और उसकी अपनी जिंदगी मे काफी बदलाव आये है जो उसे जेल से रिहा होने के बाद उसे साफ दिखने लगा है. मसलन आमिर के लिए दिल्ली मे मेट्रो का चलना, मोबाइल फोन का आम चलन में आना, दिल्ली फ्लाई ओवर से घिरा होना यह सब नया है. 

 
कुछ बदलाव उसकी जिंदगी मे भी हुए है जैसे आमिर के रिहाई से पहले आमिर के अब्बू का इंतकाल हो गया. उसका केस लड़ते लड़ते उनकी माली हालात खराब हो गयी थी. ब्रेन हेमरेज की वजह से उसकी अम्मी का आवाज खो देना… जाहिर ये बदलाव किसी के जिंदगी के लिए अच्छे नही है. अब आमिर को अपनी जिंदगी फिर से शुरू करनी पड़ रही है.
 
आमिर जब 18 साल के थे पुलिस ने उन्हे आंतकवादी होने के शक में गिरफ्तार कर लिया था. बाद में पुलिस ने उस पर 1997 में हुए दिल्ली और दिल्ली के सटे एनसीआर में हुए बम विस्फोट के साजिश रचने और बम प्लान्टिंग का आरोप लगाया. उसमें खिलाफ पुलिस ने 20 आरोप लगाये जिसमें से देश के खिलाफ युद्ध छेड़ना, हत्या और आतंकवाद था.
 
आमिर को अपनी बेगुनाही साबित करते–करते 14 साल जेल में बिताने पड़े. अदालत ने 20 आरोपों में से 18 आरोपो से बरी कर दिया. पुलिस की तरफ से लगाया कोई आरोप सही साबित नही हो सका. यहां तक कि उसके खिलाफ एक चश्मदीद या एक सबूत तक अदालत में पेश नही कर पाई.  
 
दिल्ली की एक अदालत ने आमिर को पुरी तरह बेगुनाह बताया लेकिन इस बेगुनाही की कीमत 14 साल जेल मे रह कर उसे चुकानी पड़ी. उसके वकील एनडी पंचौली का कहना है कि यह केस पुलिसिया कार्रवाई पर सवाल उठाता है जो दबाव और गलत अवधारणा पर काम करती हैं. आमिर को महज शक के आधार पर गिरफ्तार किया गया था. पुलिस ने उसे बम धमाकों का मास्टर माइंड तो बता दिया लेकिन उसके खिलाफ एक सबुत तक नही जुटा पायी. 
 
अब सवाल यह उठता है कि इंसानों के समन्दर में अकेले आमिर को ही पुलिस ने बम धमाकों का अभियुक्त क्यों बताया. इस पर एनडी पंचौली का कहना है कि हमारी पुलिस पर केस सॉल्व करने का गहरा दबाव रहता है जिसकी वजह से वे अवधारणा के अनुसार से गिरफ्तारी करती है. आमतौर पर ये अवधारणा बनी है मुस्लिम युवा ही आंतकी घटनाओं मे शामिल होते है. 
 
आमिर भी इसी गलत अवधारणा का शिकार हुआ. दुसरी वजह यह हो सकती है आमिर एक युवा मुस्लिम हैं जिसके रिश्तेदार पाकिस्तान के शहर कराची में रहते हैं. इस पर आमिर का कहना है कि वो वर्ष 1997 में अपनी चचेरी बहन की शादी में एक महीने का वीज़ा लेकर पाकिस्तान गया जहां उसे पीलिया हो गया. इस वजह से उसे एक महीने और रुकना पड़ा. शायद यही उसका कुसूर था. पुलिस ने अपने शक में इस घटना को आधार बनाया. 
 
आमिर बताता है कि उस पर इल्जाम लगाया गया कि वो वहां पर आंतक की और बम बनाने की ट्रेनिंग लेने गया था. हालांकि बाद में पुलिस का यह तर्क निराधार साबित हुआ. आमिर का कहना था कि य़ह कैसे मुमकिन है बम धमाके अक्तुबर 1997 में हुआ हो जबकि वो पाकिस्तान 12 दिसंबर मे गया था. यानि पहले उसने बम बनाये बाद में बम बनाने की ट्रेनिंग ली. 
 
दिल्ली की मस्जिद मिनारों से फज्र के वक्त अल्लाह हो अकबर अल्लाह हो अकबर की सदा बुलंद हो रही है. आमिर तेजी से अपने घर निकल कर नमाज अदा करने जा रहे है. उनके कदम तेज है और वह पुराने दिनों को भुलना चाहते है. मस्जिद में उनको आजादी का अहसास होता है और बरसों से जेल में गुजरे दर्दनाक दिन को भुलने मदद करता है. 
 
आज आमिर आजाद है. 14 साल जेल में बिताने के बाद उनको अपनी जिंदगी पटरी पर लाने के लिए काफी जद्दोजहद करनी पड़ रही है लेकिन वह घबराये नहीं हैं. हालांकि अपनी अम्मी की हालात उन्हें मायूसी की तरफ ले जाती है. वे कहते है कि मेरा केस अब्बू ही देखते थे. वकीलों के पास जाना, लोगों से मिलने जाना, सारा काम वही देखते थे. वह जल्द से जल्द मुझे रिहा करवाना चाहते थे लेकिन मेरे केस के दौरान ही उनका इंतकाल हो गया. उसके बाद सारी जिम्मेदारी मेरी अम्मी ने ले ली. मुझे रिहा कराने के लिए वो दर-दर ठोकर खायी. शायद ये सब बर्दाश्त नही कर पायी वो. उन्हे ब्रेन हेमरेज हो गया जिसके बाद उनकी जान तो बच गयी लेकिन सुझ बुझ और आवाज दोनो चली गयी. आज मेरी मां इस हालत मे नही है कि खुशियां मना सके. लोग कहते है कि इनका इलाज संभव है. इलाज के लिए खर्चे की जरुरत पड़ती है. मेरे घर की सारी जमा पुंजी मेरा रिहाई के लिए खर्च हो गयी.
 
ये थी आमिर की कहानी. यकीकन ये अकेले आमिर की कहानी नही है, देश के हजारों नौजवान जेल में सड़ रहे है. हमारी जेलें ऐसे लोगों से भरी पड़ी हैं, जिन पर कभी मुकदमा नहीं चलाया गया. हमारी अदालतों के गलियारे ऐसे लोगों से भरे पड़े हैं, जिन्हें अपनी सफाई में कभी कुछ कहने का कोई मौका नहीं मिला. हमारे आसपास ऐसे बेशुमार लोग हैं, जो घृणा, आक्रोश और हिकारत से भरे हुए हैं. लगता है जैसे प्यार, उम्मीद और मैत्री के लिए कहीं कोई जगह ही नही है . आमिर तो खुशकिस्मत है कि उनके केस की सुनवाई हुई और इंसाफ मिला लेकिन हजारों नौजवान अभी भी राह देख रहे है इंसाफ की.
 
इंसाफ़ कभी उनकी मुकद्दर का दरवाज़ा भी खटखटाएगा क्या.

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