बहार आई तो खुल गए हैं, नए सिरे से हिसाब सारे- ये पंक्तियां हैं फ़ैज़ अहमद फैज़ की. मंच उत्तर प्रदेश का है और किस्सा एनएचआरएम यानी राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन का जिनके बारे में एकदम सही बैठती हैं फैज़ साहेब की ये पंक्तियां.
सैकड़ों करोड़ के घोटाले में लिपटी सच्चाई ऐन चुनाव के मौके पर आपके सामने हैं.
प्रतिरोध डॉट कॉम के पास उत्तर प्रदेश में एनएचआरएम में हुए घोटाले की रिपोर्ट है और इसका संक्षिप्त ब्यौरा हम प्रकाशित भी कर रहे हैं. सात पेज के इस संक्षिप्त ब्यौरे में पूरी रिपोर्ट के मूल तथ्यों को सामने लाया गया है जिससे स्पष्ट होता है कि लोगों के स्वास्थ्य के नाम पर राज्य में क्या हो रहा था.
निहायत ही भ्रष्ट और चोरियों से भरी है इस स्वास्थ्य मिशन की कहानी. इसकी चोरियों पर हम आगे चर्चा करेंगे पर उससे पहले एक सवाल यह भी है कि रिपोर्ट किस समय आ रही है और कितनी अवधि के आकलन के साथ आ रही है.
राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के लिए उत्तर प्रदेश में इसकी जांच की अवधि है अप्रैल 2005 से मार्च 2011 तक की. यानी छह बरस. सालाना, तीन बरस या पाँच बरस पर चीज़ों को देखने और उनकी जाँच करने की परंपरा से इतर जाँच छह वर्ष के खर्च पर आधारित है. अगस्त से नवंबर के दौरान इसकी जाँच होती है और फिर यह चुनाव की दहलीज पर खड़े सूबे के सामने भ्रष्टाचार का गागर फोड़ देता है. इससे लाभ किसे है और नुकसान किसे, यह भी समझना होगा. भ्रष्ट को घेरकर सज़ा देनी चाहिए पर भ्रष्टाचार पर राजनीति करके अपना उल्लू सीधा करना भी भ्रष्टाचार ही है.
खैर, राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन पर अप्रैल 2005 से मार्च 2011 तक का कुल खर्च 8657.35 करोड़ का है.
चोरी का आलम यह है कि भारत सरकार से जो पैसे दिए गए उसकी रसीद और राज्य द्वारा स्वीकारे गए पैसे के बीच ही 358.18 करोड़ का अंतर है. यह पैसा कहां गया और यह अंतर क्यों है, इसके बारे में कोई मांलूमात नहीं है.
अधिकतर खर्च का कोई भी हिसाब राज्य सरकार के पास नहीं है. कई खर्च तो ऐसे हैं जो कि कागजों में हैं ही नहीं और कई कामों का कोई पक्का बिल या मूल दस्तावेज सरकार के पास उपलब्ध नहीं है.
इसमें से 4938.74 करोड़ का कोई हिसाब-किताब राज्य स्वास्थ्य योजना (एसएचएस) के पास है ही नहीं. धनराशि के इस्तेमाल के संबंधित प्रमाण पत्रों (यूटिलाइजेशन सार्टिफिकेट) में दिए गए पैसे पर बने ब्याज़ का भी कहीं ज़िक्र नहीं है. आकलन के मुताबिक यह राशि 57.45 करोड़ रूपए की है.
कई कामों के आवंटन में सुप्रीम कोर्ट, सीवीसी और राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के नियमों-निर्देशों की अनदेखी की गई है.
राशि का एक बड़ा हिस्सा राज्य सरकार ने अपंजीकृत एजेंसियों के ज़रिए वितरित कराया जबकि ऐसा नियम के विरुद्ध है. इसके अलावा राज्य सरकार ने अपनी कई सहकारी समितियों और जल निगम आदि को निर्माण व अन्य कार्यों के लिए पैसा आवंटित कर दिया. ऐसा कतई नहीं किया जाना था और पैसे का इस्तेमाल शुद्ध रूप से स्वास्थ्य सेवाओं के लिए ही किया जाना था.
मातृ सहायता से लेकर कुष्ठ रोगियों के उपचार उपकरणों तक और आइरन की गोलियों से लेकर दवाओं और बाकी शारीरिक जाँच उपकरणों की खरीद तक यह रिपोर्ट चोरियों की अंतहीन कथा है. जिस तरह 2जी की चोरी का सही अनुमान नामुमकिन है, वैसा ही हाल इस योजना का भी हुआ है.
अपने ही अधिकारियों की रहस्यमयी मौतों, हत्याओं से घिरी और लाखों लोगों के स्वास्थ्य से खेलती यह योजना और इसकी रिपोर्ट के किनको सज़ा मिलेगी और कौन हैं असली गुनहगार, यह तो पता नहीं कब स्थापित होगा पर राजनीति के दंगल में यह तुरुप का पत्ता ज़रूर है. देखिए, कितना सही निशाने पर बैठता है.