आतंकवाद के आरोप में ऐसे फांसाती है एटीएस

उसे आज भी एटीएस का फोन आता है. यह सिलसिला पिछले चार-पांच महीनों से चल रहा है. वो मानता है कि उसके पूरे परिवार की तबाही का कारण भी एटीएस है. पर जब कभी आतंकवाद के आरोप में बंद उसके परिजनों से उसके परिवार की बात करायी जाती है या एटीएस वाले बुलाकर मिलाते हैं तो एक संतोष भी होता है कि इसके अलांवा और कोई चारा भी नहीं है ‘शायद अल्ला को यही मंजूर है.’बूढ़े पिता मोहम्मद यूसुफ की निगाहों में अपने बच्चों की खुशहाली लौट आने के सपने जहां हैं वहीं जैनब को अब भी याद है कि बशीर रोज सुबह-शाम बाहर से पानी लेकर आते थे, जब वे गर्भवती थीं. और वे कह उठती हैं कि मैं कैसे मानूं की उन्होंने कुछ किया वो रोज पानी लाते थे सुबह-शाम, तब जाकर खाना पकता था. कानून की भाषा में यह सबूत नहीं टिकता पर जैनब की नजरों में यह बशीर की बेगुनाही का सबसे बड़ा सुबूत है. इस भूचाल में जैनब का पांच महीने का बच्चा जहां गर्भ में ही दम तोड़ दिया तो वहीं जैनब के भाई इशहाक की पत्नी के गर्भ में पल रहा दो महीने के बच्चे को भी यह दुनिया मयस्सर नहीं हुयी.

अब इशहाक ही वो कड़ी है जो एटीएस की इस पूरे आतंकी जाल पर खुद एक सवाल है. उसे एटीएस की एक-एक बातें और नम्बर याद हैं जिनसे उसके मोबाइल पर बात की गयी. उसने इसे यूपी के नये मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को भी सुपुर्द किया है. उसे अखिलेश पर पूरा भरोसा है और यह कहने पर की उसके एक भाई की गिरफ्तारी तो सपा कार्यकाल में हुई, पर वो कहता है कि सरकार ने आतंकवाद के नाम पर जेलों में बंद बेगुनाहों को छोड़ने का वादा किया है. 5 फरवरी 2012 को इशहाक के बहनोई बशीर हसन की और 12 मई को भाई शकील को एटीएस आतंकवाद के आरोप में उठा चुकी है. इशहाक ही इस पूरी कहानी के आखिरी सुबूत और गवाह है जो फिलहाल सलाखों के बाहर हैं उनके कुछ अनुभवों और बातों से इस पूरे फसाने को आगे बढ़ाते हैं.
इशहाक बताते हैं कि पांच फरवरी 2012 को जब उनके बहनोई बशीर हसन अपने तीन साल के बेटे मुसन्ना, जो की काफी बीमार था, को दवा के लिए अपने आवास वांगरमउ जिला उन्नाव से संडीला जिला हरदोई जा रहे थे उसी दरम्यान उन्हें एटीएस ने उठा लिया. इसके बाद लखनउ एटीएस के साहब ने मोबाइल नम्बर 09792103104 से मेरे मोबाइल नम्बर 08948044829 पर मुझे फोन किया और मेरा पता पूछा. दूसरे दिन 9 बजे ही एटीएस का तनवीर मेरे आफिस नदवा कालेज आ गया. आते ही उसने अपने साहब को फोन कर इत्तला दी की मैं उसके साथ हूं और उनसे मेरी बात कराई. उन्होंने बशीर के बारे में जो भी पूछा उसे मैंने उन्हें बता दिया. उन्होंने कहा कि अगर आप हमारा सहयोग करेंगे तो हम भी आपका सहयोग करेंगे. फिर मैंने उनसे कहा कि मेरी बहन जैनब जो बांगरमउ में अकेली है, साथ में दो छोटे-छोटे बच्चे हैं वहां वो परेशान है क्या मैं उसे अपने घर लखनउ ला सकता हूं? तो उन्होंने कहा कि अभी उसे वहीं रहने दो, बाद में कहा कि मैं अपने ‘आदमियों को भेज दूंगा’साथ में जाकर ले आना.
यहीं से एटीएस का इस परिवार के साथ जो ‘रिश्ता’ कायम हुआ उसने इस पूरे परिवार को एक तबाही और आतंक में जीने को मजबूर कर दिया है. जो इस पूरे बदले परिदृश्य को एक कुदरती कहर के रुप में स्वीकार करने लगा जो दरअसल उनके खिलाफ उन्हीं के हाथों की जा रही एक घातक साजिश का भ्रूण था. जिसके जख्म इस परिवार के चेहरे पर अब साफ देखे जा सकते हैं.
इस परिवार द्वारा किसी भी तरह का प्रतिरोध न होने पर एटीएस ने अपने लिए हरी झण्डी मान ली. फिर क्या था एटीएस का तनवीर दो बजे दोपहर के करीब गाड़ी लेकर आया और इशहाक को लेकर वांगरमउ गया. इशहाक बताते हैं कि वहां पहुंचकर एटीएस ने आस-पास के लोगों और बशीर के मकान मालिक से कहा कि तुम लोग भी कहीं जाना नहीं और जब भी लखनऊ बुलाया जाएगा तो तुम लोगों को आना पड़ेगा. इशहाक अपनी बहन और बच्चों को लेकर वहां से निकला तो एटीएस ने गाड़ी का रास्ता गोमती नगर अपने ऑफिस की तरफ मोड़ दिया. वहां इशहाक और जैनब से लंबी पूछताछ की गई. जब रात के वक्त जैनब के छोटे-छोटे बच्चे रोने-बिलखने से परेशान हो गए तब जाकर एटीएस वालों ने उन्हें छोड़ा. वहीं पर एटीएस के एक अधिकारी जिसे वहां के लोग साहब कहते थे के बारे में इशहाक बताता है कि भाई शकील से पूछताछ करने के लिए फोन बाहर के पीसीओ से करने के लिए कहा और साथ ही कहा कि कह दो वो मेरे पास आ जाए और अपना मोबाइल बंद कर ले. किसी से कोई बात न करें.
एटीएस द्वारा पीसीओ से फोन करवाना यह पुष्ट करता है कि वो यह पूछताछ गैरकानूनी तरीके से अपराधियों की तरह कर रही थी. और हर उस सबूत से बचने की कोशिश कर रही थी जिससे वो कहीं नक्से में न दिखे जिसे आम बोलचाल की भाषा में गोपनीयता कहा जाता है. अब इशहाक के सामने सही वक्त का इंतजार करने के अलांवा कुछ भी नहीं दिख रहा था.
बहरहाल, इशहाक बताते हैं कि 8 फरवरी 2012 को शकील जब मेरे पास नदवा आए तो एटीएस का तनवीर उनसे आकर मिला और दोपहर तक बातचीत करता रहा. उसके बाद करीब 3 बजे एटीएस शकील को अपने आफिस ले गयी और फिर रात में ही उन्हे छोड़ा. फिर क्या था यह एक सिलसिला बन गया और हर आहट के साथ एटीएस की आहट इस पूरे परिवार को सुनाई देने लगी. दूसरे दिन यानी 9 फरवरी को एटीएस फिर आ धमकी. शकील और जैनब को लेकर फिर गयी और बच्चों के ज्यादा रोने पर जैनब को नदवा वापस छोड़ दिया. शकील को फिर रात तक पूछताछ के नाम पर आतंकित करने का काम अपराधी एटीएस करने लगी. एक हफ्ते से ज्यादा वक्त तक यह सिलसिला चलता रहा. जब माने तब एटीएस फोन करती या पूछताछ के नाम पर उठा ले जाती. शकील, जैनब समेत पूरा परिवार मानसिक बीमारी की चपेट में आ गया. बच्चे बुरी तरह से बीमार हो गए और जैनब के पांच महीने के बच्चे का गर्भपात हो गया. इशहाक यह बताते हुए सदमें में चले जाते हैं क्योंकि जिंदगी के इस दुरुह रास्ते पर उनके पूरे परिवार के अन्दर हर बात को छुपाने का जो दबाव उन पर था इस मानसिक हालात और बार-बार इशहाक से पूछताछ के सिलसिले से उनकी पत्नी की मानसिक स्थिति काफी खराब हो गई थी. उनके पेट में पल रहा दो महीने का बच्चा इस दुनिया में आने से पहले ही रुखसत हो गया. लखनऊ के हयात नर्सिंग होम में बहन जैनब और पत्नी दोनों को इलाज के लिए भर्ती कराया.
हाथ पर हाथ धरे बैठे इशहाक को यह नहीं मालूम था कि उनके लिए एक नई मुसीबत की कब्र एटीएस खोद रही है. एटीएस का सिलसिला नहीं रुका और एटीएस के तनवीर के आने के साथ ही हर बार कोई नई मुसीबत इस परिवार के सामने खड़ी हो जाती. इशहाक बताते हैं कि शकील पर तनवीर का दबाव बढ़ता ही जा रहा था. वो बार-बार कहता कि मैं जैसा बताऊं वैसे चलकर तुम आॅफिस में कहना वरना तुम भी अन्दर हो जाओगे. शकील पर घर से न निकलने का और मोबाइल बंद रखने का दबाव लगातार एटीएस वाले बनाए रहते थे. वे कहते थे कि हमें कुछ पूछना होगा तो हम खुद आकर या तुम्हारे भाई इशहाक के जरिए बात कर लेंगे.
इस पूरी परिघटना में लखनऊ एटीएस ने शकील को प्रायोजित तरीके से समाज से काट दिया और छुपकर रहने की आड़ में उसे अपने आतंकी जाल में फसाने की पूरी पुलिसिया पटकथा लिखनी शुरु कर दी. एटीएस के कहने पर ही शकील लखनऊ में अपने साढू मुशीर अहमद जो दुबग्गा में रहते हैं के यहां अपनी बीबी साइमा खातून और 3 साल की बेटी उम्म-ए-ऐमन के साथ रहने लगा. इस बीच जो भी पूछताछ लखनऊ एटीएस को करनी होती इशहाक के मोबाइल नम्बर 08948044829 पर बात करते या नदवा कालेज आते या नदवा के बाहर बुलाते.
इसी बीच इशहाक के इसी मोबाइल पर दिल्ली पुलिस का फोन आया कि वो बशीर से आकर मिल ले और उसके कपड़े लेता आए. इस बात से परेशान इशहाक ने लखनऊ एटीएस के साहब से कहा कि क्या करुं एक तो आप लोग बराबर पूछताछ कर रहें हैं और अब दिल्ली वाले फोन कर रहे हैं. इस पर उस एटीएस के अधिकारी ने कहा कि दिल्ली मत जाना नहीं तो वे तुम लोगों को पकड़ लेंगे. इस भंवर जाल ने इशहाक को दिमागी रुप से पैदल कर दिया और हर उस बात के लिए जिससे उसे असुरक्षाबोध होता उसके लिए लखनऊ एटीएस के ऊपर निर्भर रहने लगा कि वो क्या कहते हैं.
इस बीच यूपी के विधानसभा चुनावों के दौरान लखनऊ एटीएस वाले इशहाक के गांव कुतुबपुर, बिस्वा सीतापुर गए. गांव में उन्होंने बताया कि वे इशहाक और शकील के दोस्त हैं, उनसे जमीन लेने के बारे में कुछ बात हुई थी इधर चुनावों की ड्यूटी में आए तो सोचा कि मिल लें. गांव वालों से घंटों पूछताछ की. इशहाक बताते हैं कि एटीएस वालों का क्या था वे बार-बार गांव जाते और सड़क पर पान की दुकान वाले से भी फोन पर हम लोगों के आने-जाने की पूछताछ करते. कई बार देर रात में किसी अनजान व्यक्ति को भेंजते जो हमारे घर का चक्कर काट कर चला जाता. इस पूरी परिघटना में एटीएस ने परिवार के अन्दर हर स्तर पर डर पैदा करने के साथ ही गांव वालों के साथ उनके सम्बन्धों को तोड़ने की हर सम्भव कोशिश की.
सत्ता का नकाब बदल गया पर एटीएस नहीं बदली यानि की यूपी में बसपा से सपा पूर्ण बहुमत में आ गई और मंचों और मीडिया में मुस्लिम वोटों को इस जीत की वजह मुलायम ने माना पर बेगुनाहों पर सियासत का चाबुक वही पुराना था.
इशहाक बताते हैं कि वो 4 मई की तारिख थी जब तनवीर ने मोबाइल नम्बर 09792103153 से फोन किया कि गेट (नदवा कालेज, लखनऊ) पर आ जाओ कुछ जरुरी बात करनी है. मैं गया तो उन्होंने कहा कि एक बार फिर तुम सबको आफिस बुलाया जाएगा. तनवीर के ऐसा कहते ही इशहाक को नई मुसीबत आने का अंदाजा हो गया.
5 मई को एटीएस का तनवीर इशहाक के घर आया और कहा कि बशीर से मिलने दिल्ली जाना चाहो तो साहब से बात कर लो, मैंने बशीर के पत्र के बारे में बताया कि उसने कपड़े मंगाये हैं, तो साहब ने कहा कि अब कोई खतरा नहीं है कह दो जाकर मिल ले हम अपना आदमी भेज देते है. एटीएस लखनऊ ने 10 मई को लखनऊ मेल से रात 10 बजे इशहाक को चलने के लिए कहा, पर छुट्टी न मिलने की बात कह वो जाने से इन्कार कर दिया.
इशहाक का एटीएस को किया इन्कार उसके ऊपर कहर बन के टूट पड़ा. एटीएस लखनऊ ने 7 मई को इशहाक से शकील का नया नम्बर लिया, और उससे नदवा कालेज के भटकली लड़कों की लिस्ट और कुछ के फोटो मांगे. इशहाक बताते हैं कि 9 मई को दिन में कई बार फोन करके इस काम के लिए शकील पर एटीएस ने दबाव बनाया, पर उसने कहा कि यह काम मेरे बस से बाहर है. 11 तारीख को एक आदमी के जरिए लखनऊ एटीएस ने मुझे फोन न0 7275265518 पर फोन करवाया कि तुम लोग होशियार रहना.
आगे इशहाक कहते हैं कि 12 मई को 9 बजे तनवीर को फोन किया कि क्या बात है? तो तनवीर ने कहा कि पीसीओ से बात करो तो मैंने दूसरे नम्बर 7388923992 से बात की तो उन्होंने शकील के बारे में पूछा कि वह कहां है? मैंने बताया कि दुबग्गा में अपने साढू के घर पर है. इस वक्त पढ़ाने गया होगा, तो तनवीर ने कहा कि पता कर लो. फिर मैंने शकील को फोन किया तो उसका मोबाइल बंद था. जब शाम तक घर नहीं पहुंचा तो मैंने फिर तनवीर को फोन किया तो उनहोंने कहा कि पहले बता दिया था कि होशियार रहना और बताया कि दिल्ली एटीएस वाले ले गए हैं. फिर मैंने एटीएस के साहब को फोन किया और शकील के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि हमें नहीं मालूम है. मैंने तनवीर की बात का हवाला दिया तो उन्होंने कहा कि दिल्ली वाले ले गये होंगे.
इशहाक ने इस आफत की घड़ी में अपनी सफाई देते हुए ‘एटीएस के साहब’से कहा कि फरवरी में जब आपने उसे बुलवाया था तो वह फौरन आपके पास हाजिर हो गया था, और आप ने उससे पूरी इनक्वाइरी कर ली थी, और तीन महीने से आप के सम्पर्क में था, अगर वह मुजरिम था तो आपने उस वक्त उसे क्यों नहीं पकड़ा? और अब आप ने दिल्ली वालों के हवाले कर दिया. आपके लोग ही उसको पहचानते थे और आपके पास ही उसका नम्बर था, तो उन्होंने कहा कि हमें उसकी कोई जरुरत नहीं थी, दिल्ली वालों को रही होगी इसलिए वो ले गए. लखनऊ आओ तो बात करेंगे, और फोन काट दिया.
जब हम इशहाक के घर से निकल रहे थे तो उनके बूढ़े पिता मोहम्मद यूसुफ अपने मुंह को मेरे कान पर लाते हुए कहते हैं कि इशहाक कह रहा था कि आप लोग मदद करेंगे तो वो छूट जाएंगे, कब तक वो छूट जाएंगे? और उनकी आंखों में आंसू आ गए जिसे वे दिन की रोशनी में छुपाने का हर संभव प्रयास करने लगे.

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