Skip to content
Hindi News, हिंदी समाचार, Samachar, Breaking News, Latest Khabar – Pratirodh

Hindi News, हिंदी समाचार, Samachar, Breaking News, Latest Khabar – Pratirodh

Primary Menu Hindi News, हिंदी समाचार, Samachar, Breaking News, Latest Khabar – Pratirodh

Hindi News, हिंदी समाचार, Samachar, Breaking News, Latest Khabar – Pratirodh

  • Home
  • Newswires
  • Politics & Society
  • The New Feudals
  • World View
  • Arts And Aesthetics
  • For The Record
  • About Us
  • Featured

सुप्रीम कोर्ट में पैरवी के पेंच

Apr 25, 2012 | हिमांशु शेखर

न्याय व्यवस्था को साफ-सुथरा बनाने के मकसद से न्यायिक सुधार की बात चल रही है. न्यायधीशों की जवाबदेही तय करने के लिए न्यायिक जवाबदेही विधेयक लाने की बात भी हो रही है. लेकिन देश की सर्वोच्च अदालत की स्थितियों को देखते हुए यह लगता है कि सुधार की जरूरत सिर्फ जजों के स्तर पर नहीं बल्कि वकीलों के स्तर पर भी है. सभी वकीलों को उच्चतम न्यायालय में मुकदमा लड़ने का अधिकार देने वाला कानून एडवोकेट्स एक्ट 1961 में बना था. इस कानून की धारा-30 के तहत सभी वकीलों को बगैर किसी भेदभाव के देश के सभी अदालतों में वकालत करने का अधिकार देने का प्रावधान किया गया था लेकिन इसकी अधिसूचना जारी नहीं हुई. इस कानून के बनने के 50 साल बाद 2011 में धारा-30 की अधिसूचना जारी होने के बावजूद अब भी यहां वकीलों की एक खास श्रेणी का एकाधिकार बना हुआ है और बगैर भेदभाव के सभी वकीलों को मुकदमा लड़ने का अधिकार अब तक नहीं मिला है. इस वजह से देश की सर्वोच्च अदालत में वकीलों के स्तर पर कई तरह की गड़बड़ियों की बात कानून के कई जानकार कह रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट के हजारों वकील सम्मानपूर्वक वकालत करने के अपने अधिकार हासिल करने के लिए कानूनी संघर्ष कर रहे हैं.

 
दरअसल, इस पूरे मामले को समझने के लिए उच्चतम न्यायालय के गठन और यहां वकालत करने के नियमों की पृष्ठभूमि को जानना जरूरी है. जब भारत में अंग्रेजों का राज था तो उस दरम्यान काफी समय तक भारत में सर्वोच्च अदालत जैसी कोई न्यायिक व्यवस्थाे नहीं थी. भारत से संबंधित मामलों में आखिरी न्यायिक फैसला का अधिकार ब्रिटेन के ज्यूडिशियल कमिटी ऑफ प्रिवी काउंसिल के पास था. इसके कामकाज के लिए पहले 1920 में एक कानून बना और बाद में फिर 1925 में एक कानून बनाया गया. इसके तहत \’एजेंट\’ की व्यवस्थान कायम की गई. इस व्यवस्था  के तहत होता यह था कि जिनका भी मुकदमा सुनवाई के लिए लंदन जाता था उनका मुकदमा लड़ने वाला वकील वहां एक \’एजेंट\’ नियुक्त करता था. आसान शब्दों में समझें तो यह \’एजेंट\’ प्रिवी काउंसिल और वकील के बीच की कड़ी होता था. जो खुद तो वकालत नहीं कर सकता था लेकिन अगर कोई भी दस्तावेज न्यायालय के पास देना हो या फिर न्यायालय को कोई सूचना संबंधित वकीलों तक पहुंचानी होती थी तो इसका माध्यम \’एजेंट\’ था. इसके बाद 1937 में भारत में फेडरल कोर्ट की स्थावपना दिल्ली में हुई. उस वक्त दिल्ली में किसी उच्च न्यायालय की कोई पीठ नहीं थी इसलिए यहां नए सिरे से बार के गठन की जरूरत महसूस की गई. इसके बाद फेडरल कोर्ट ने खुद ही अपने नियम बनाए और वकीलों को तीन श्रेणी में बांटा सीनियर एडवोकेट, एडवोकेट और एजेंट. इसमें एजेंट की भूमिका वही रखी गई जो प्रिवी काउंसिल में थी. 1947 में भारत की आजादी के बाद फेडरल कोर्ट को प्रिवी काउंसिल के सारे अधिकार दे दिए गए.
 
इसके बाद 28 जनवरी, 1950 को भारतीय संविधान के अंतर्गत दिल्ली में ही सुप्रीम कोर्ट की स्था पना हुई. भारतीय संविधान के अनुच्छेद-145 के तहत सुप्रीम कोर्ट को अपने कामकाज के संचालन के लिए नियम बनाने का अधिकार दिया गया है. इसी अधिकार के तहत सुप्रीम कोर्ट ने 1950 में सुप्रीम कोर्ट रूल्स बनाए. वकीलों के कामकाज के लिए यहां भी फेडरल कोर्ट के नियमों को आधार मानकर फेडरल कोर्ट के सारे एजेंटों को सुप्रीम कोर्ट ने भी एजेंट का दर्जा दे दिया. गौरतलब है कि उस समय भी यह व्यवस्था  कायम रखी गई कि न तो एजेंट वकील का काम कर सकता है और न ही वकील एजेंट का काम कर सकता है. 1951 में फिर एक कानून बना जिसके जरिए सुप्रीम कोर्ट में वकालत कर रहे वकीलों को उच्च न्यायालयों में वकालत करने की भी अनुमति दे दी गई. देश भर में काम कर रहे वकीलों के कामकाज से संबंधित अलग-अलग कानूनों में एकरुपता लाने के लिए ऑल इंडिया बार कमिटी का गठन किया गया.
 
1954 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने नियमों में संशोधन किया और \’एजेंट\’ का नाम बदलकर \’एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड\’ कर दिया. उस वक्त कई लोग यह मांग उठा रहे थे कि एजेंट शब्द सुनने में अच्छा नहीं लगता इसलिए इसे बदला जाए. इस संशोधन के जरिए एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड को वकीलों वाले अधिकार यानी मुकदमा लड़ने का अधिकार तो मिल गया लेकिन वकीलों को एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड का अधिकार नहीं मिला. इसके बाद 1958 में लॉ कमीशन ऑफ इंडिया की रिपोर्ट आई जिसमें यह सिफारिश की गई कि भारत के हर वकील को हर कोर्ट में वकालत करने का अधिकार दिया जाना चाहिए. आयोग की सिफारिशों के आधार पर भारतीय संसद ने 1961 में एडवोकेट्स एक्ट बनाया. इस कानून की धारा-30 के तहत हर वकील को देश की हर अदालत में वकालत करने का अधिकार देने का प्रावधान किया गया. लेकिन इस प्रावधान की अधिसूचना नहीं जारी हुई और 50 साल से अधिक वक्त गुजरने के बावजूद इस प्रावधान को अब तक लागू नहीं किया जा सका. अपने इस अधिकार को हासिल करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के वकीलों ने जो संस्था  बनाई है उसके एक प्रमुख सदस्य रवि शंकर कुमार आरोप लगाते हैं, \’धारा-30 की अधिसूचना जारी करने में सरकारों ने तो हीलाहवाली की ही लेकिन सबसे नकारात्मक भूमिका रही सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड की. इस धारा के लाभ से देश भर के वकीलों को वंचित रखने के लिए एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन तरह-तरह के हथकंडे अपनाते रहा है.\’ 
 
इस बीच 1985, 1988 और 2003 में कम से कम तीन मौके ऐसे आए जब सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रावधान पर टिप्पणी करके इस ओर कार्यपालिका का ध्यान आकृष्ट कराने की कोशिश की. इसके बावजूद उस प्रावधान को लागू करने को लेकर कोई प्रगति नहीं हुई. 19 अप्रैल, 2011 को वरिष्ठ अधिवक्ता और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के उस समय के अध्यक्ष राज जेठमलानी ने कानून मंत्री एम. वीरप्पा मोइली को पत्र लिखकर उस प्रावधान की अधिसूचना जारी करने का अनुरोध किया. उस पत्र में जेठमलानी ने लिखा, \’देश में वकालत करने वाले सभी लोगों को इस बात पर घोर आपत्ति् है कि कानून पारित होने के 50 साल से अधिक वक्त गुजरने के बावजूद धारा-30 को लागू नहीं किया गया. यह संसद का अपमान है और कानूनी पेशे का गंभीर नुकसान है.\’ उन्होंने आगे लिखा, \’आपके रूप में एक ऐसा कानून मंत्री है जिसने खुद वकालत किया है. इसलिए आपसे मुझे यह उम्मीद है कि आप इन आपत्तिनयों की कानूनी वैधता को समझेंगे और बगैर समय गंवाए इस बारे में जरूरी कदम उठाएंगे.\’ 
 
जेठमलानी के इस पत्र ‌लिखने के बाद कानून मंत्रालय हरकत में आया और दो महीने के अंदर 9 जून, 2011 को भारत सरकार ने धारा-30 लागू करने की अधिसूचना जारी कर दी गई. इसमें बताया गया कि एडवोकेट्स एक्ट, 1961 की धारा-30 को 15 जून, 2011 से लागू किया जाता है. इसके बाद 1966 के सुप्रीम कोर्ट रूल्स का वह नियम अप्रासंगिक हो गया जिसके तहत एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड को विशेष अधिकार दिए गए थे. इसके तहत सीनियर एडवोकेट और अन्य एडवोकेट को सुप्रीम कोर्ट में वकालत का अधिकार तो था लेकिन वे कोई मुकदमा खुद दायर नहीं कर सकते थे और इसके लिए उन्हें एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्डस का सहारा अनिवार्य तौर पर लेना था. जबकि एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड मुकदमा दायर करने के अलावा खुद ही उसकी पैरवी भी कर सकते थे.
 
मुकदमा दायर करने के मामले में एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड के एकाधिकार की वजह से कई तरह की दिक्कतें पैदा हो रही हैं. रवि शंकर कहते हैं, \’कई मौकों पर अदालत ने इस बात को स्वीकार किया है कि इस श्रेणी के वकील याचिका पर दस्तखत करके अपने कर्तव्यों की इतिश्री मान ले रहे हैं और इसका नतीजा यह हो रहा है कि याचिका दायर करने वाले, उसके वकील और अदालत के बीच में कई मामलों में खाई पैदा हो रही है. मुकदमों को लेकर किसी जिम्मेदारी का अहसास एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड में नहीं रह रहा है.\’ इसका खामियाजा उन लोगों को भुगतना पड़ रहा है जो न्याय की आस में उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाते हैं. भारतीय संविधान के तहत हर नागरिक को समान न्याय और अपने पसंद का वकील रखने का अधिकार मिला हुआ है. लेकिन सुप्रीम कोर्ट के नियम इस अधिकार के आड़े आ रहे हैं. क्योंकि मौजूदा व्यवस्थाक के तहत न चाहते हुए भी लोगों को एक एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड के पास जाना पड़ रहा है, भले ही वह मुकदमा लड़े या नहीं. लोगों को सुप्रीम कोर्ट से न्याय हासिल करने में दोहरे आर्थिक बोझ का वहन भी करना पड़ रहा है. इन्हें पहले तो अपने पसंद के वकील को फीस का भुगतान करना पड़ रहा है और तकनीकी वजहों से इन्हें एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड को भी पैसा देने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है. 
 
 
धारा-30 को लागू करवाने के लिए संघर्षरत वकीलों का यह आरोप भी है कि एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड का दर्जा देने की प्रक्रिया में भी कई खामियां हैं. एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड के तौर पर खुद को पंजीकृत करवाने के लिए वकीलों को एक लिखित परीक्षा से गुजरना पड़ता है जो सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त समिति लेती है. सिंह कहते हैं, \’इस समिति के कई सदस्य ऐसे हैं जो दशकों से बने हुए हैं. इस प्रक्रिया की एक सबसे बड़ी खामी यह है कि समिति के सदस्यों की नियुक्ति  के लिए कोई स्पष्ट दिशानिर्देश नहीं हैं. बुक कीपिंग और अकाउंट्स जैसे कई ऐसे विषयों की परीक्षा ली जाती है जिसकी अब कोई प्रासंगिकता नहीं है.\’ इन वकीलों का आरोप है कि इन खामियों की वजह से एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड की नियुक्तिन में मनमानी चल रही है और परीक्षा की पूरी प्रक्रिया में कहीं कोई पारदर्शिता नहीं है. 
 
इनका दावा है कि अगर इस परीक्षा की जिम्मेदारी किसी निष्पक्ष एजेंसी को दे दी जाए तो आधे से अधिक एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड फेल हो जाएंगे. इनकी मानें तो सुप्रीम कोर्ट में जो चैंबर एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड को आवंटित किए गए हैं उन्हें ये किराये पर चढ़ाकर उससे पैसा कमा रहे हैं. उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट के नियमों के मुताबिक दस चैंबर में सात एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड को, एक वरिष्ठ वकील को और दो अन्य वकीलों को आवंटित करने का प्रावधान है. इस नियम की वजह से अधिक चैंबर एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड के पास हैं. सिंह कहते हैं, \’सुप्रीम कोर्ट में वकालत करने वाले वकीलों के कुल संख्या तकरीबन 10,000 है. वहीं सर्वोच्च अदालत में अब तक तकरीबन 2,000 एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड बने हैं. इनमें से बमुश्किाल अभी 1,200 एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड सुप्रीम कोर्ट में सक्रिया हैं. इस तरह से देखा जाए तो देश के सबसे बड़े अदालत में मुकदमा लड़ने का रास्ता इन्हीं 1,200 लोगों की हाथों से होकर जाता है.\’
 
अब सवाल यह उठता है कि अधिसूचना जारी होने, हजारों वकीलों के संघर्षरत रहने और इस व्यवस्थाो में इतनी खामी होने के बावजूद नई व्यवस्थाद क्यों नहीं कायम हो रही है? इस बारे में रवि शंकर कहते हैं, \’आधिकारिक वजह यह है कि धारा-30 लागू करने के लिए सुप्रीम कोर्ट रूल्स में संशोधन करना अनिवार्य है और इसके लिए संबंधित सुझावों को रूल्स कमिटी के पास भेजा गया है. लेकिन अनाधिकारिक वजह यह है कि एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन अब भी इस बात को लेकर सक्रिय है कि किसी भी तरह इसे लागू नहीं होने दिया जाए ताकि उनका एकाधिकार बना रहे. यही वजह है कि अधिसूचना जारी हुए एक साल होने वाला है लेकिन अब तक इस दिशा में कोई उल्लेखनीय प्रगति नहीं हुई है.\’

Continue Reading

Previous जिंदल कंपनी ने भीलवाड़ा में मस्जिद तोड़ी
Next मिडनाइट मीडिया- मोटापा, महालक्ष्मी और मुसली पावर

More Stories

  • Featured

Delhi’s Toxic Air Rises, So Does The Crackdown On Protesters

3 weeks ago Pratirodh Bureau
  • Featured

A Celebration of Philately Leaves Its Stamp On Enthusiasts In MP

3 weeks ago Pratirodh Bureau
  • Featured

Groundwater Management In South Asia Must Put Farmers First

3 weeks ago Pratirodh Bureau

Leave a Reply Cancel reply

You must be logged in to post a comment.

Recent Posts

  • Delhi’s Toxic Air Rises, So Does The Crackdown On Protesters
  • A Celebration of Philately Leaves Its Stamp On Enthusiasts In MP
  • Groundwater Management In South Asia Must Put Farmers First
  • What The Sheikh Hasina Verdict Reveals About Misogyny In South Asia
  • Documentaries Rooted In Land, Water & Culture Shine At DIFF
  • Electoral Roll Revision Is Sparking Widespread Social Anxieties
  • Over 100 Journalists Call Sheikh Hasina Verdict ‘Biased’, ‘Non-Transparent’
  • Belém’s Streets Turn Red, Black And Green As People March For Climate Justice
  • Shark Confusion Leaves Fishers In Tamil Nadu Fearing Penalties
  • ‘Nitish Kumar Would Win Only 25 Seats Without Rs 10k Transfers’
  • Saalumarada Thimmakka, Mother Of Trees, Has Died, Aged 114
  • Now, A Radical New Proposal To Raise Finance For Climate Damages
  • ‘Congress Will Fight SIR Legally, Politically And Organisationally’
  • COP30 Summit Confronts Gap Between Finance Goals And Reality
  • Ethiopia Famine: Using Starvation As A Weapon Of War
  • Opposition Leaders Unleash Fury Over Alleged Electoral Fraud in Bihar
  • In AP And Beyond, Solar-Powered Cold Storage Is Empowering Farmers
  • The Plot Twists Involving The Politics Of A River (Book Review)
  • Red Fort Blast: Congress Demands Resignation Of Amit Shah
  • Here’s Why Tackling Climate Disinformation Is On The COP30 Agenda

Search

Main Links

  • Home
  • Newswires
  • Politics & Society
  • The New Feudals
  • World View
  • Arts And Aesthetics
  • For The Record
  • About Us

Related Stroy

  • Featured

Delhi’s Toxic Air Rises, So Does The Crackdown On Protesters

3 weeks ago Pratirodh Bureau
  • Featured

A Celebration of Philately Leaves Its Stamp On Enthusiasts In MP

3 weeks ago Pratirodh Bureau
  • Featured

Groundwater Management In South Asia Must Put Farmers First

3 weeks ago Pratirodh Bureau
  • Featured

What The Sheikh Hasina Verdict Reveals About Misogyny In South Asia

3 weeks ago Shalini
  • Featured

Documentaries Rooted In Land, Water & Culture Shine At DIFF

3 weeks ago Pratirodh Bureau

Recent Posts

  • Delhi’s Toxic Air Rises, So Does The Crackdown On Protesters
  • A Celebration of Philately Leaves Its Stamp On Enthusiasts In MP
  • Groundwater Management In South Asia Must Put Farmers First
  • What The Sheikh Hasina Verdict Reveals About Misogyny In South Asia
  • Documentaries Rooted In Land, Water & Culture Shine At DIFF
Copyright © All rights reserved. | CoverNews by AF themes.