बाल ठाकरे के प्रति श्रद्धांजलि

बाबा नागार्जुन दशकों पहले लिखकर जा चुके हैं. ठाकरे की ऐसी खाल खिचाई किसी और की करने की हिम्मत शायद ही हुई हो जैसी बाबा नागार्जुन ने की है. आज बाबा नहीं हैं और ठाकरे भी दिन पूरे कर खेत रहे. सब लोग ऐसे सुबक रहे हैं कि न जाने कितनी बड़ी सामाजिक, सांस्कृतिक और राष्ट्रीय क्षति हो गई है. मरने पर स्तुतिगान की जैसे होड़ लगी है. ऐसे में बाबा से प्रेरित होकर पुनः एक काव्यात्मक श्रद्धांजलि की आवश्यकता महसूस हुई. कुछ चैनलों का दुख देखा न गया, उन्होंने कलम में स्याही जैसा काम किया. मेरे श्रद्धासुमन-

बाल ठाकरे लाइव

मैंने चश्मे को देखा
माथे पर काली रेखा
आंखें तक वो मिला न पाया
कितना सजधजकर था आया
जैसे रस्सी जली नहीं है
इन-सा कोई बली नहीं है
हैरत है,
तुम दिवस कई
नकली सांसें भरते हो
ऐसा क्यों हैं
कैसे, सप्ताहांत पे ही मरते हो
ओह, बहुत अफ़सोस हुआ, अफ़सोस ठाकरे
मृत शैय्या पर पड़ा हुआ, खामोश ठाकरे
क्या करे
नरकै जाए, या सरगै, या जहाँ जाए, जा मरे
चारण, चैनल बजा रहे हैं गाल ठाकरे
बची नहीं कुछ, उतर गई सब खाल ठाकरे
नफ़रत के बाकी थे जितने बाल, ठाकरे
खाक हो गए, जलकर, रहे न लाल ठाकरे
उद्धव रोए, छिन गई उनकी ढाल ठाकरे
बची-खुची अस्थियां हो गईं माल, ठाकरे
इनका भी कुछ दाम मिलेगा
काजू और बादाम मिलेगा
सबको सौ सौ ग्राम मिलेगा
नंगा, खुल्ले आम मिलेगा
बेटे, परिजन कर देंगे नीलाम ठाकरे
नफ़रत की मृत्यु को यही सलाम ठाकरे
सजा सिनेमा, लगा तिंरगा फिर इतराने
कितनों को खाया है, कितने और हैं खाने
अर्थी हो जाए जब सरकारी परचम के माने
तो लगता है लोकतंत्र खुद से खिसियाने
कोई माने, या न माने
झंडा तो झंडा होता है
सरकारी टंटा होता है
वरना देश का कितना मानुष
अबतक नंगा ही सोता है
क्यों सोता है, कब सोता है
कैसे और क्योंकर सोता है
सोता है या सोने का सपना होता है
सपना, जहाँ तिरंगा
अपना होता है
या कि सड़कों पर, गलियों में,
जिंदल के घर रंगरलियों में,
जो तिंरगा बोता है
उसपर ही बहुमत रोता है
जो रोता है, सो रोता है,
इससे तुझको क्या होता है
तेरे लिए हुजूम जमा था
कैसा लाइव लाइव समा था
संडे की थी, छुट्टी वाली शाम, ठाकरे
डरे हुए हाथों में न था काम ठाकरे
गद्दाफी बेकार हुआ बदनाम ठाकरे
लोकतंत्र के हत्यारे, दंगाई, भक्षक,
और तिरंगा इसका है इनआम ठाकरे
एक तिरंगा जलने को तैयार हो गया
रोते हैं शृगाल, उनका सरदार खो गया
हिंसा का, भय का, नफ़रत का लाल सो गया
बच्चन बोले, कैसे हुआ, ये क्या हो गया
पूर्णाहूति ठोक-बजा के
देह बचा के, मंच सजा के
संवेदना भग गई लजा के
खाओ राजू पान दबा के
बहुत लगे हैं दिल पे टांके
दो बंदर हैं बांके बांके
बेचेंगे ये शेरों का कंकाल ठाकरे
उग आएंगे मुर्दे पर शैवाल ठाकरे
फैलाया है जैसा, जितना जाल ठाकरे
पर जीता है कौन, यही है काल ठाकरे
बाल ठाकरे, बाल ठाकरे
पाणिनि आनंद
18 नवंबर, 2012
नई दिल्ली

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