काशीनाथ सिंह को साहित्य अकादमी पुरस्कार

मुझे याद है उन दिनों की चर्चा जब वो यह उपन्यास लिख रहे थे. बहुत सारी चिंताएं और बहुत सारे नतीजों को समेटे हुए कह रहे थे.. आनंद, हम जिस कॉलोनी में रहते हैं, उसके लगभग सभी निवासी इस बात से सर्वथा अनभिज्ञ हैं कि उनसे पहले यहाँ कौन गाँव था, कौन लोग रहते थे, क्या उनके गीत थे और क्या उनकी बोली, उनके कपड़े, त्योहार और मुद्दे… सारी पहचान कुछ बरसों पहले बनी इस कॉलोनी के नीचे दफन है. हम अपनी मिट्टी से उजड़कर यहाँ बसे हैं और यहाँ की मिट्टी के बारे में कुछ नहीं जानते.

यह संकेत था और प्रस्तावना भी, काशी का अस्सी के बाद के उनके अगले उपन्यास, रेहन पर रग्घू के लिए.
इस कालजयी उपन्यास में मुझे पूर्वांचल के मध्यवर्ग में मज़बूत होती और पसरी भीतों वाले घरों की उजड़ी हुई मेखलाएं दिखती हैं. वर्जनाओं का टूटना, संबंधों की नई परिभाषाओं का जन्मना और सामाजिक-सांस्कृतिक पलायन दिखता है.
बुधवार की शाम ख़बर आई कि रेहन पर रग्घू के लिए काशीनाथ सिंह जी को वर्ष 2011 के साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया है.
वर्ष 2011 में साहित्य अकादमी पुरस्कार पाने वाले अन्य रचनाकारों की सूची देखने के लिए यहाँ क्लिक करें
मेरी खुशी फिलहाल काशीनाथ जी की खुशी से कतई कम नहीं है. एक टीस थी कि काशी का अस्सी क्यों साहित्य अकादमी को नज़र नहीं आया और क्यों पिछले कुछ वर्षों की सर्वश्रेष्ठ कृतियों में से एक, बनारस का स्वाभाविक, वास्तविक और उन्मुक्त वर्णन करने वाला यह उपन्यास साहित्य अकादमी पुरस्कार के योग्य नहीं समझा गया.
वो टीस तो थी. हालांकि लगता था कि एक ऐसी कृति जिसका हम कई मित्र दिल्ली में बैठकर नोस्टैल्जिक मोड में सुरा-समग्र होकर पाठ किया करते थे, किसी साहित्य अकादमी का मोहताज नहीं है और न ही इसकी विशिष्टता इससे प्रतिपादित होती है. पर लगता था कि चिराग तले अंधेरा क्यों
अंधेरा छटा… काशी का अस्सी के लिए न सही, रेहन पर रग्घू के लिए ही. और भले ही बनारसी बोलचाल की शैली में रंगा हुआ, छाना और घोटा हुआ न सुनाई देता हो रेहन पर रग्घू पर इसकी गहराई गंगा से कम नहीं है और उमड़ते प्रश्न खोखले होते शहर को अल्फ नंगा करके सामने ला देते हैं.
उपभोक्तावाद और महात्वाकांक्षाओं की बाहों में पूरी सृष्टि को समेटने के लिए आतुर दिख रहे लोगों का दौर किस तरह से तोड़ता, बिखेरता है जीवन, इसे इस उपन्यास से समझा जा सकता है.
उपन्यास की शुरुआत ही इस तरह होती है-
अगर काशी का अस्सी
मेरा नगर था
तो
रेहन पर रग्घू
मेरा घर है- और शायद आप का भी.
अपने गृह जनपद रायबरेली और प्रिय शहर, बनारस से दूर… यहाँ दिल्ली में रहते हुए समझ आता है कि वाकई रेहन पर रग्घू मेरी भी, हममें से अधिकतर के घरों की, घर के अधिकतर सदस्यों की कहानी है.
काशीनाथ सिंह जी को इस सम्मान के लिए प्रतिरोध की ओर से बधाई.
इस उपन्यास का लेखन जिन दिनों हो रहा था, उन दिनों बीबीसी के लिए काम करता था मैं. इस उपन्यास की भाप आपको नीचे दिए लिंक से मिल सकती है. काशीनाथ सिंह का यह साक्षात्कार बीबीसी हिंदी डॉट कॉम पर प्रकाशित हुआ था.
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