नारायण देसाई : एक सर्वोदय कार्यकर्ता की उद्देश्यपूर्ण जीवन-यात्रा
‘मैं हार सकता हूँ , बार – बार हार सकता हूँ लेकिन हार मान कर बैठ नहीं सकता हूँ ।’ लोहिया की पत्रिका ‘जन’ के संपादक ओमप्रकाश दीपक ने कहा था। नारायण देसाई ने कोमा से निकलने के बाद के तीन महीनों में अपनी चिकित्सा के प्रति जो अनुकूल और सहयोगात्मक रवैया प्रकट किया उससे यही लगता है कि वे हार मान कर नहीं बैठे , अन्ततः हार जरूर गये। आखिरी दौर में हम जो उनकी ‘सेवा’ में थे शायद हार मान कर बैठ गये।