Skip to content
Hindi News, हिंदी समाचार, Samachar, Breaking News, Latest Khabar – Pratirodh

Hindi News, हिंदी समाचार, Samachar, Breaking News, Latest Khabar – Pratirodh

Primary Menu Hindi News, हिंदी समाचार, Samachar, Breaking News, Latest Khabar – Pratirodh

Hindi News, हिंदी समाचार, Samachar, Breaking News, Latest Khabar – Pratirodh

  • Home
  • Newswires
  • Politics & Society
  • The New Feudals
  • World View
  • Arts And Aesthetics
  • For The Record
  • About Us
  • Featured

टाटा के ‘वैल्यूज़’ और हीरो के ‘हीरो’

Oct 24, 2011 | Panini Anand

बाज़ार हर चीज़ में अवसर देखता है. सुख हो, दुख हो, पर्व हो, आपदा हो, लड़ाइयां हों या फिर सामाजिक संदर्भों पर कोई अभियान, बाज़ार जहाँ गुंजाइश देखता है, मौका लपक लेता है. पिछले दिनों दो विज्ञापनों की टीवी संसार में बड़ी धूम रही. इन्हें देखकर लगा कि विज्ञापनों को समझने के लिए जिन बातों का सार्वजनिक होना ज़रूरी है, वो दरअसल, न के बराबर हो रही हैं और इसके कारण कॉर्पोरेट प्रचार अपनी चकाचौंध में लोगों को बहलाने-फुसलाने की कोशिशों में कामयाब हो रहा है. आम आदमी की दृष्टि में जबतक विज्ञापनों के पीछे की रणनीति और सज्जा की चर्चा नहीं होगी, लोग उन्हें आंख बंद करके सही मानते रहेंगे और इस बहाने एक बड़े दुष्प्रचार को आंगीकार करते, सही मानते और विश्वास करते रहेंगे. ऐसा नहीं है कि यह स्थिति केवल इन्हीं दो विज्ञापनों को लेकर है बल्कि सभी विज्ञापन ऐसी ही आंखमिचौली लोगों के साथ खेलते, उन्हें जादू दिखाते और ठगते नज़र आते हैं. पर बाकी की फिर कभी, फिलहाल विज्ञापन जगत की सैद्धांतिक चर्चाओं में जाने के बजाय चर्चा सिर्फ दो विज्ञापनों की. 

 
पहला विज्ञापन है टाटा समूह का. टाटा समूह के प्रति भारत में आम प्रचलित धारणा यह है कि ये एक महान, मानवीय प्रबंधन वाला संस्थान है. इसने देश को स्टील दिया है, परिवहन दिया है. लोगों ने टाटा का नमक खाया है, कपड़े पहने हैं. जमशेदपुर के बारे में लोग खूब जानते-सुनते हैं. भारत को उड्डयन क्षेत्र में लाकर खड़ा करने वाले ये लोग हैं. नैनो और इंडिका तो आप खूब जानते ही हैं… इन पहचानों के बीच टाटा एक निहायत ईमानदार, देशभक्त, मानवीय, मूल्यवान और नैतिक समूह की चादर ओढ़े घूमता रहा है. पर सियार की खाल पर पिछले बरस पानी गिर गया… और वो भी सरे बाज़ार. नीरा राडिया के टेपों का किस्सा एक-एक कर खुलना शुरू हुआ तो टाटा की खाल से नील बहकर निकलने लगा. कई लोग उस चेहरे को पहले से भी जानते रहे हैं, उसकी असलियत पर आवाज़ भी उठाते रहे हैं पर इसबार मामला सीधे सार्वजनिक हो चला था. लाख कोशिशों के बाद कुछ ख़बरें आस्ते आस्ते मीडिया में आईं और मुख्यधारा के कुछ संचार माध्यमों के बाद धीरे-धीरे सभी की विवशता का हिस्सा बनीं, कवर होने लगीं. राडिया-टाटा संवाद की गूंज संसद तक पहुंची और देश ने आम धारणाओं के बीच एक बदले हुए टाटा समूह को खड़ा पाया. मुंबई हमलों के बाद की सहानुभूति में डूबते-उतराते रतन टाटा के एक दूसरे चेहरे से लोग परिचित होने लगे. समझ आने लगा कि कॉर्पोरेट चाहे कितनी बार भी गंगा नहा ले, रहेगा जालसाज और भ्रष्ट ही. खासकर पूंजीवादी ढांचे में तो ऐसा बिल्कुल तय है कि गुड कॉर्पोरेट और बैड कॉर्पोरेट में इनको बांटकर नहीं देखा जा सकता है. इनकी केवल दो पहचानें हैं. एक बैड कॉर्पोरेट और दूसरी वैरी बैड कॉर्पोरेट. 
 
खैर, टाटा के ताज़ा विज्ञापन पर शायद आपमें से कई की नज़र गई होगी. माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली पहली भारतीय महिला, बछेंद्री पाल टाटा के विज्ञापन में दिखाई देती हैं. वो टाटा के सहयोग से लोगों में हिस्सा और विश्वास भरने, उन्हें बड़े मिशनों के लिए, चुनौतियों के लिए तैयार करती दिखाई दे रही हैं. आखिर में लिखकर आता है कि यह विज्ञापन नहीं, टाटा समूह से जुड़े लोगों का जीवन है. और आगे लिखा आता है, वैल्युज़ स्ट्रॉगर दैन स्टील. ऐसी ही एक और महिला की कहानी भी है. इन विज्ञापनों के समय को समझने की ज़रूरत है. टाटा की चाय पिलाकर जागो रे का विज्ञापन कर रहे समूह को अचानक अपने मूल्यों के पुनर्स्थापना की ज़रूरत क्योंकर पड़ गई है. ऐसे में, जबकि देश में संसदीय प्रणाली के लिए चुनकर आने वाले जन प्रतिनिधियों की साख खाक में मिलती नज़र आ रही है. एक के बाद एक मंत्री भ्रष्टाचार के महासागर का सावरकर बना दिख रहा है. नित नए भ्रष्टाचार के मामले उजागर हो रहे हैं, 2-जी का भूत रह-रहकर यूपीए की चूलें हिला रहा है, लोग सत्ता और उसके साथियों, कॉर्पोरेट समूहों की लूट के खिलाफ लामबंद नज़र आ रहे हैं, अचानक से टाटा ने अपनी छवि सुधार के लिए यह विज्ञापन प्रसारित करना शुरू कर दिया है.
 
दरअसल, टाटा का मकसद अपने समूह से जुड़े लोगों के महान उद्देश्य और उनको मिल रही महान मदद का प्रचार करना नहीं है, इस ज़रिए अपने खोए हुए विश्वास को वापस पाने की कोशिश है. समूह चाहता है कि लोग टाटा को इस गहरी घटाटोप में किसी नकारात्मक छवि के साथ न देखें. लोग टाटा में विश्वास करें. टाटा के प्रति आदर रखें, टाटा के महती योगदान को एक अनुकरणीय और उंचे आदर्शों वाले उदाहरण के तौर पर देखें. लूट में रंगे हाथों का खून पोछने के लिए इस तरह के प्रयास बहुत ज़रूरी समझे जा रहे हैं और टाटा इन्हीं प्रयासों में लगा है. टाटा के इस धूंआधार रिपीट टेलीकास्ट प्रचार का लोगों के मानस पर असर भी पड़ेगा. कम से कम, मध्यवर्ग तो ज़रूर इसे सही मानने लगेगा, टाटा की कारगुजारियों को भूलने के लिए एक बहाना खोजने लगेगा. लाख खामियों के बाद भी जैसे अमरीका मध्यवर्ग को बुरा नहीं लगता, टाटा भी अच्छा लगने लगेगा. बाज़ार में बने रहने के लिए और हमलों से बचे रहने के लिए इससे बेहतर प्रोपगेंडा क्या हो सकता है भला.
 
दूसरा विज्ञापन है हीरो समूह का. हीरो समूह का नाम हीरो हांडा के तौर पर हम जानते रहे हैं. कपिल से लेकर सचिन तक के चेहरे इस समूह की शोभा गाते आपको पिछले कई बरसों से टीवी और सिनेमा हॉलों के पर्दे पर नज़र आए होंगे. देश की धड़कन होने का दावा करने वाले विज्ञापनों के सहारे हीरो हान्डा ने भारत के लाखों घरों में अपनी घुसपैठ की है. सिनेमा से लेकर शिखरों पर चढ़ने वाली कैम्पेनों तक हीरो समूह का यह राग-अलाप पसरा पड़ा है. हीरो समूह के कर्मचारियों के साथ हुए अमानवीय और बर्बर व्यवहारों पर इस तरह के अभियान लगातार पर्दा डालते आए हैं. पर इस बार का विज्ञापन कुछ खास है. कुछ खास है और कुछ खास समय के लिए यह टीवी पर काफी प्रभावी और आक्रामक ढंग से दिखाया भी गया. यह अवसर रहा देश में अगस्त के महीने में चले जनलोकपाल अभियान का. इस अभियान के दौरान देश में जब हर ओर भ्रष्टाचार विरोध और जन लोकपाल बिल की मांग को लेकर लोग बहसों, चर्चाओं, प्रदर्शनों में शामिल दिख रहे थे, हीरो समूह का यह विज्ञापन दनादन टीवी पर समाचारों के बीच ब्रेक के तौर पर आ रहा था. खबरों में लोगों की भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में सक्रिय भागीदारी की चर्चा होती थी. लोगों का जज्बा दिखाया जाता था. उनका आक्रोश और कुछ कर दिखाने की हसरत दिखाई देती थी. उनका गुस्सा और देश को बदलने की तैयारी दिखाई देती थी. और इसी के बाद विज्ञापन आ जाता था. हीरो मोटो कॉर्प…. खुलकर कहो, कि, हममे है हीरो… हम में है हीरो… (साथ में नज़र आते थे विकलांग, स्कूल की बच्ची, टूटा हुआ पुल पार करता एक आदमी, इंडिया गेट के पास से गुज़रता लोगों का समूह और आखिर में एक लाइन आती थी- हर भारतीय में एक हीरो है.
 
है, हर भारतीय में… एक हीरो है. इससे कहां इनकार किया जा रहा है. पर हीरो समूह अन्ना के आंदोलन के सापेक्ष ही हर भारतीय के हीरो होने की अवधारणा को विज्ञापन के तौर पर सामने लाता क्यों दिखा, यह समझने की ज़रूरत है. पिछले कुछ समय में जिस तरह से मोटरसाइकिलों की खरीद देश में बढ़ी है, उसके चलते हीरो समूह का एकात्म वर्चस्व भी कमज़ोर पड़ा है. अन्य मोटरसाइकिल कंपनियों ने अपने-अपने मॉडलों और विज्ञापनों के ज़रिए बाज़ार में जगह बनाई है. हीरो का हान्डा के साथ भाईचारा खत्म हो गया है. हीरो एक स्वतंत्र कंपनी बनकर खड़ा हुआ है. ऐसे में, लड़ाई और कठिन, प्रतिस्पर्धा और जटिल हुई है. इस बढ़ी प्रतिस्पर्धा में अपने लिए ज़मीन बनाने और हर घर की बालकनी में अपने लिए जगह बनाने के लिए हीरो समूह को एक मज़बूत प्रचार विज्ञापन की ज़रूरत थी. देश में, जबकि हर आदमी एक हीरो बनता नज़र आ रहा हो, इससे अच्छा क्या हो सकता है कि हीरो का नाम हर उस व्यक्ति से जोड़ दिया जाए जो लोगों का, समाज का और देश का मानस बदलने में लगा है. जो दशा पर प्रहार करता और दिशा बदलता नज़र आ रहा है. हीरो की हर भारतीय में हीरो होने की जुमलेबाज़ी से एक माहौल में खुद को पानी की तरह सींचने और भर लेने की कोशिश दिखाई देती है. विज्ञापन जगत की पाठशालाओं में यह एक अच्छे और सफल विज्ञापन के तौर पर देखा जाएगा. 
 
पर विज्ञापन नीयत की गारंटी नहीं होते. न ही ईमानदारी और विश्वास की. इन विज्ञापनों का समय, विषय, शैली, सरोकार समझना ज़रूरी है. और इन विज्ञापनों के पीछे के कॉर्पोरेट चरित्र को भी बेनकाब, नंगा करके देखने की आवश्यकता है.
 
(यह लेख \’समकालीन जनमत\’ से साभार)

Continue Reading

Previous Kejriwal’s Trust pockets anti-corruption funds
Next Be responsible before it’s too late

More Stories

  • Featured

Delhi’s Toxic Air Rises, So Does The Crackdown On Protesters

2 weeks ago Pratirodh Bureau
  • Featured

A Celebration of Philately Leaves Its Stamp On Enthusiasts In MP

2 weeks ago Pratirodh Bureau
  • Featured

Groundwater Management In South Asia Must Put Farmers First

2 weeks ago Pratirodh Bureau

Recent Posts

  • Delhi’s Toxic Air Rises, So Does The Crackdown On Protesters
  • A Celebration of Philately Leaves Its Stamp On Enthusiasts In MP
  • Groundwater Management In South Asia Must Put Farmers First
  • What The Sheikh Hasina Verdict Reveals About Misogyny In South Asia
  • Documentaries Rooted In Land, Water & Culture Shine At DIFF
  • Electoral Roll Revision Is Sparking Widespread Social Anxieties
  • Over 100 Journalists Call Sheikh Hasina Verdict ‘Biased’, ‘Non-Transparent’
  • Belém’s Streets Turn Red, Black And Green As People March For Climate Justice
  • Shark Confusion Leaves Fishers In Tamil Nadu Fearing Penalties
  • ‘Nitish Kumar Would Win Only 25 Seats Without Rs 10k Transfers’
  • Saalumarada Thimmakka, Mother Of Trees, Has Died, Aged 114
  • Now, A Radical New Proposal To Raise Finance For Climate Damages
  • ‘Congress Will Fight SIR Legally, Politically And Organisationally’
  • COP30 Summit Confronts Gap Between Finance Goals And Reality
  • Ethiopia Famine: Using Starvation As A Weapon Of War
  • Opposition Leaders Unleash Fury Over Alleged Electoral Fraud in Bihar
  • In AP And Beyond, Solar-Powered Cold Storage Is Empowering Farmers
  • The Plot Twists Involving The Politics Of A River (Book Review)
  • Red Fort Blast: Congress Demands Resignation Of Amit Shah
  • Here’s Why Tackling Climate Disinformation Is On The COP30 Agenda

Search

Main Links

  • Home
  • Newswires
  • Politics & Society
  • The New Feudals
  • World View
  • Arts And Aesthetics
  • For The Record
  • About Us

Related Stroy

  • Featured

Delhi’s Toxic Air Rises, So Does The Crackdown On Protesters

2 weeks ago Pratirodh Bureau
  • Featured

A Celebration of Philately Leaves Its Stamp On Enthusiasts In MP

2 weeks ago Pratirodh Bureau
  • Featured

Groundwater Management In South Asia Must Put Farmers First

2 weeks ago Pratirodh Bureau
  • Featured

What The Sheikh Hasina Verdict Reveals About Misogyny In South Asia

2 weeks ago Shalini
  • Featured

Documentaries Rooted In Land, Water & Culture Shine At DIFF

2 weeks ago Pratirodh Bureau

Recent Posts

  • Delhi’s Toxic Air Rises, So Does The Crackdown On Protesters
  • A Celebration of Philately Leaves Its Stamp On Enthusiasts In MP
  • Groundwater Management In South Asia Must Put Farmers First
  • What The Sheikh Hasina Verdict Reveals About Misogyny In South Asia
  • Documentaries Rooted In Land, Water & Culture Shine At DIFF
Copyright © All rights reserved. | CoverNews by AF themes.